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Mata Kushmanda Mantra: नवरात्र के चौथे दिन करें ये उपाय, मिलेगी विद्या, रोग-शोक का होगा नाश

शारदीय नवरात्र की चतुर्थी तिथि पर देवी के कूष्मांडा स्वरूप का दर्शन-पूजन करने का विधान है. शास्त्रों के अनुसार अपनी मंद मुस्कान से पिंड से ब्रह्मांड तक का सृजन देवी ने इसी स्वरूप में किया था.

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(फाइल फोटो)
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Zee Bihar-Jharkhand Web Team|Updated: Sep 29, 2022, 05:54 AM IST

पटनाः Mata Kushmanda Puja: शारदीय नवरात्र की चतुर्थी तिथि पर देवी के कूष्मांडा स्वरूप का दर्शन-पूजन करने का विधान है. शास्त्रों के अनुसार अपनी मंद मुस्कान से पिंड से ब्रह्मांड तक का सृजन देवी ने इसी स्वरूप में किया था. कूष्मांडा स्वरूप के दर्शन पूजन से न सिर्फ रोग-शोक दूर होता है अपितु यश, बल और धन में भी वृद्धि होती है.

भक्त मन अनाहत चक्र में होता है
माता कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं. इनकी आराधना से मनुष्य त्रिविध ताप से मुक्त होता है. मां कूष्मांडा सदैव अपने भक्तों पर कृपा दृष्टि रखती है. इनकी पूजा आराधना से हृदय को शांति एवं लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं. इस दिन भक्त का मन ‘अनाहत’ चक्र में स्थित होता है, अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और शांत मन से कूष्मांडा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा करनी चाहिए.

मां शीघ्र करती हैं भक्तों पर कृपा
संस्कृत भाषा में कूष्मांडा कूम्हड़े को कहा जाता है, कूम्हडे की बलि इन्हें प्रिय है, इस कारण भी इन्हें कूष्मांडा के नाम से जाना जाता है. मां भगवती का चौथा स्वरूप यानी कि देवी कुष्मांडा भक्तों पर अत्यंत शीघ्र प्रसन्न होती है. यदि सच्चे मन से देवी का स्मरण किया जाए और स्वयं को पूर्ण रूप से उन्हें समर्पित कर दिया जाए तो माता कुष्मांडा भक्त पर अतिशीघ्र कृपा करती हैं. जीवन में लगातार आ रही परेशानियों और समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए मां कूष्मांडा के नामावली  मंत्र का जाप अवश्य करें. ऐसा करने से सभी समस्याओं से छुटकारा मिल जाएगा.

बौद्धिक क्षमता में वृद्धि इस विद्या प्राप्ति मंत्र का 5 बार जप करें.
‘या देवी सर्वभूतेषु बुद्धि-रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

किसी भी मनोकामना की पूर्ति के लिए मां को मालपुओं का भोग लगाएं और इस मंत्र का 11 बार जप करें. इसके साथ ही घर में सुख-शांति और समृद्धि बनाए रखने के लिए शांति मंत्र का 21 बार जाप अवश्य करें.
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

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