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Jaya Ekadashi 2023: पाप और पिशाच यौनि से मुक्त कर देती है जया एकादशी, जानिए इसकी कथा

माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जया एकादशी तिथि के नाम से जाना जाता है. यह एकादशी भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है और इसका व्रत अनुष्ठान करने से मनुष्य को उसके पापों से मुक्ति मिल जाती है. इसके साथ ही अगर किसी पाप के साथ कोई श्राप जुड़ा हो तो वह भी नष्ट हो जाता है.

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Jaya Ekadashi 2023: पाप और पिशाच यौनि से मुक्त कर देती है जया एकादशी, जानिए इसकी कथा
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Zee Bihar-Jharkhand Web Team|Updated: Jan 31, 2023, 07:47 AM IST

पटनाः Jaya Ekadashi 2023: माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जया एकादशी तिथि के नाम से जाना जाता है. यह एकादशी भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है और इसका व्रत अनुष्ठान करने से मनुष्य को उसके पापों से मुक्ति मिल जाती है. इसके साथ ही अगर किसी पाप के साथ कोई श्राप जुड़ा हो तो वह भी नष्ट हो जाता है. जया एकादशी की पूजा करने के साथ ही इस दिन इसकी कथा का श्रवण भी करना चाहिए. यह कथा खुद भगवान कृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी. जानिए यह कथा.

यह है जया एकादशी की कथा

वनवास के दौरान जब अर्जुन दिव्यास्त्रों की खोज के लिए निकल रहे थे तो इससे पहले श्रीकृष्ण ने उन्हें जया एकादशी के अनुष्ठान के बारे में बताया था. भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- "हे अर्जुन! माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं. इस एकादशी के उपवास से मनुष्य भूत, प्रेत, पिशाच आदि की योनि से छूट जाता है, अतः इस एकादशी के उपवास को विधि अनुसार करना चाहिए. इस जया एकादशी के उपवास से कुयोनि से सहज ही मुक्ति मिल जाती है. जो मनुष्य इस एकादशी का व्रत कर लेता है, उसने मानो सभी तप, यज्ञ, दान कर लिए हैं. जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक जया एकादशी का व्रत करते हैं, वे अवश्य ही सहस्र वर्ष तक स्वर्ग में वास करते हैं. "

इंद्रदेव ने दिया था श्राप

इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने जया एकादशी की कथा अर्जुन को सुनाई. उन्होंने कहा इन्द्र की सभा में एक गंधर्व गीत गा रहा था. इसी दौरान एक अप्सरा उसे आसक्ति से देखने लगी. अप्सरा के रूप में आसक्त होकर वह अपना गान भूल गया. इस पर इन्द्र ने क्रोधित होकर गंधर्व और उसकी पत्नी को पिशाच योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया. पिशाच योनी में जन्म लेकर पति पत्नी कष्ट भोग रहे थे.

जया एकादशी का फल

संयोगवश माघ शुक्ल एकादशी के दिन दुःखों से व्याकुल होकर इन दोनों ने कुछ भी नहीं खाया और रात में ठंड की वजह से सो भी नहीं पाये. इस तरह अनजाने में उनसे जया एकादशी का व्रत हो गया. इस व्रत के प्रभाव से दोनों श्राप मुक्त हो गए और पुनः अपने वास्तविक स्वरूप में लौटकर स्वर्ग पहुंच गये. देवराज इन्द्र ने जब गंधर्व को वापस इनके वास्तविक स्वरूप में देखा तो वे हैरान हुए. गन्धर्व और उनकी पत्नी ने बताया कि उनसे अनजाने में जया एकादशी का व्रत हो गया. इस व्रत के पुण्य से ही उन्हें पिशाच योनि से मुक्ति मिली है.

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