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शरद यादव: कद्दावर नेता की कहानी जिसकी नहीं थी बिहार में पैदाइश फिर भी करता था राज्य की राजनीति पर राज

प्रमुख समाजवादी नेताओं में शुमार रहे शरद यादव 1970 के दशक में कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल चर्चा में आए और फिर दशकों तक राष्ट्रीय राजनीति की दशा-दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे.

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 (फाइल फोटो)
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Zee Bihar-Jharkhand Web Team|Updated: Jan 13, 2023, 02:02 PM IST

Patna: प्रमुख समाजवादी नेताओं में शुमार रहे शरद यादव 1970 के दशक में कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल चर्चा में आए और फिर दशकों तक राष्ट्रीय राजनीति की दशा-दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे. विश्वनाथ प्रताप सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे पूर्व प्रधानमंत्रियों के नेतृत्व वाली सरकारों में मंत्री रहे यादव हाल के वर्षों में खराब सेहत के कारण राजनीति में बहुत सक्रिय नहीं थे. सात बार के लोकसभा सदस्य रहे शरद यादव का बृहस्पतिवार को गुरुग्राम के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. उन्हें उनके छतरपुर स्थित आवास पर गिरने के बाद अस्पताल ले जाया गया था. समाजवादी नेता गुर्दे की बीमारी से काफी समय से पीड़ित थे और उन्हें नियमित डायलसिस कराना पड़ता था. 

बनाई थी अपनी अलग पहचान

विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में जबलपुर से 1974 में लोकसभा के उपचुनाव में कांग्रेस के खिलाफ शरद यादव की जीत ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ उनकी राजनीतिक लड़ाई को और तेज कर दिया. देश में 1975 में आपातकाल लगा दिया गया और 1977 में उन्होंने फिर से जीत हासिल कर आपातकाल विरोधी आंदोलन से उभरकर आने वाले कई नेताओं में से एक के रूप में अपनी साख स्थापित की. उनकी यह छवि दशकों तक बरकरार रही और इसकी बदौलत वह लगातार संसद का सफर भी तय करते रहे. 

वे सात बात संसद के निचले सदन व तीन बार उच्च सदन के सदस्य रहे. शरद यादव ने 1990 के दशक के अंत में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री के रूप में कार्य किया. वह 1989 में वीपी सिंह सरकार में भी मंत्री थे. वर्ष 1990 में लालू प्रसाद यादव के पहली बार बिहार का मुख्यमंत्री बनने में शरद यादव के समर्थन को महत्वपूर्ण माना गया था. हालांकि, दोनों की सियासी राहें जल्द ही जुदा हो गईं. क्योंकि लालू अपने राज्य की राजनीति पर हावी हो रहे थे और यह सुनिश्चित कर रहे थे कि उनका दबदबा कायम रहे. 

बिहार को माना था कर्मभूमि 

मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और शरद यादव के अलावा दिवंगत नेता रामविलास पासवान राज्य के तीन प्रमुख समाजवादी नेता थे, जिन्होंने करिश्माई नेता (लालू) का मुकाबला करने के लिए अपना अलग रास्ता चुना. शरद यादव का जन्म मध्य प्रदेश में हुआ था और उन्होंने वहीं से अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया लेकिन बिहार उनकी 'कर्मभूमि' बन गई. उनके और लालू प्रसाद यादव के बीच लोकसभा चुनावों में मुकाबले हुए और 1999 में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सुप्रीमो पर उनकी जीत उनके सियासी सफर का अहम पड़ाव रही. कुमार के साथ उनके जुड़ाव और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ उनके गठबंधन ने लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी के 15 साल लंबे संयुक्त शासन को समाप्त कर दिया.

लालू के भ्रष्टाचार के मामलों में फंसने के बाद उनकी पत्नी ने मुख्यमंत्री का पद संभाला था. शरद यादव कभी बहुत बड़े जनाधार वाले नेता नहीं रहे. संसद में जाने के लिए वह लालू और नीतीश जैसे बिहार के दिग्गज नेताओं पर निर्भर रहे लेकिन इसके बावजूद उनका एक राजनीतिक आभामंडल और वजन था जिससे उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में एक मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई. 

नीतीश कुमार द्वारा 2013 में भारतीय जनता पार्टी से नाता तोड़ने का फैसला करने से पहले वह भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजक थे. अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी लालू प्रसाद यादव के साथ कुमार के गठबंधन में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई. उन्होंने बिहार में 2015 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को हराने के लिए लालू से हाथ मिलाया था. नीतीश कुमार के 2017 में फिर से भाजपा के साथ हाथ मिलाने के फैसले के बाद यादव का धैर्य जवाब दे गया और उन्होंने विपक्षी खेमे में बने रहने का फैसला किया. उन्होंने अपने समर्थकों के साथ लोकतांत्रिक जनता दल नामक एक पार्टी का गठन भी किया लेकिन वह कोई खास असर नहीं छोड़ सकी. खराब स्वास्थ्य की वजह से शरद यादव की सक्रिय राजनीति पर लगभग विराम लग गया. उन्होंने 2022 में अपनी पार्टी का राजद में विलय कर दिया. 

(इनपुट भाषा के साथ)

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