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Bihar News: छठ को लेकर बांस से निर्मित दउरा बनाने में लगे कारीगर, महंगाई ने लगाया कारोबार पर ग्रहण

आस्था के महापर्व छठ को लेकर उपयोग में आने वाली सबसे महत्वपूर्ण बांस से निर्मित समान के निर्माण में अभी से ही कारीगर लग गए हैं. लेकिन इस बार महंगाई ने कारोबार पर ग्रहण लगा दिया है. कारीगर कहते हैं कि उनकी माली हालत पहले से ठीक नहीं है.

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 (फाइल फोटो)
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Zee Bihar-Jharkhand Web Team|Updated: Nov 05, 2023, 02:15 PM IST

सुपौल: आस्था के महापर्व छठ को लेकर उपयोग में आने वाली सबसे महत्वपूर्ण बांस से निर्मित समान के निर्माण में अभी से ही कारीगर लग गए हैं. लेकिन इस बार महंगाई ने कारोबार पर ग्रहण लगा दिया है. कारीगर कहते हैं कि उनकी माली हालत पहले से ठीक नहीं है. ऊपर से बांस इतना महंगा हो गया है कि वो मुश्किल से रोजी रोटी चलाने के लिए सामान बना पाते हैं.

 

त्रिवेणीगंज के गंभीरपुर के कारीगर अभी से बांस का दौरा, सूप, कोनिया बनाने में जुट गए हैं. कारीगरों ने कहा कि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, जिसके चलते व्यापक पैमाने पर सामान का निर्माण नहीं कर पाते. उनका कहना है कि बांस डेढ़ से दो सौ रुपए में मिल रहे हैं. काफी मेहनत से सामान बनाया जाता है. पूरा परिवार दिन रात लगकर सामान बनाते हैं, लेकिन जो मुनाफा होना चाहिए नहीं हो पाता. कारीगरों ने अपना दर्द बयां करते कहा कि काश उन्हे पास पूंजी होती तो इसका निर्माण व्यापक स्तर पर कर पाते और उनकी भी माली हालत सुधर पाती. गौरतलब है कि जिले में महादलित समुदाय के सैकड़ों ऐसे परिवार हैं जो इस कारोबार से जुड़े हैं,लेकिन इनकी माली हालत नहीं सुधर सकी है.

पूंजी की कमी की वजह से दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है

किसी भी व्यवसाय में हमेशा से ही पैसों की जरूरत होती है. लेकिन पूंजी के अभाव में ये तमाम महादलित समुदाय से आने वाले कारीगर मुश्किल से रोजी रोटी चला पाने के लिए सामान बना पाते हैं. इनका कहना है कि इन्हें भी सरकार की तरफ से अगर मदद मिलती तो उनकी भी आर्थिक स्थिति में सुधार होता और वो अपने बच्चों को पढ़ा पाते. लेकिन पैसों की कमी की वजह से वो ऐसा नहीं कर पा रहे हैं. गौरतलब है कि सरकार द्वारा दलित और महादलित के उत्थान के लिए तमाम तरह की योजनाएं संचालित की जा रही है. लेकिन शिक्षित ना होने की वजह से ये कारीगर इन योजानों का फायदा नहीं उठा पाते हैं. 

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