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आखिर क्या है सीता सोरेन का केस, जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पलटा 1998 का फैसला?

Sita Soren Case: पीवी नरसिम्हा राव मामले में फैसला, जो विधायिका के एक सदस्य को अभियोजन से छूट देता है. जो वोट देने या भाषण देने के लिए रिश्वत लेने में शामिल है. सार्वजनिक हित, सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी और संसदीय लोकतंत्र पर व्यापक प्रभाव पड़ता है. 

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सुप्रीम कोर्ट
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Zee Bihar-Jharkhand Web Team|Updated: Mar 04, 2024, 03:47 PM IST

Sita Soren Case: सुप्रीम कोर्ट ने साल 1998 के एक महत्वपूर्ण फैसले को रद्द कर दिया है, जिससे संसद और विधानसभाओं के उन सदस्यों के लिए संवैधानिक छूट समाप्त हो गई है, जिन्होंने विधायिका में वोट या भाषण के लिए रिश्वत ली है. सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक पीठ ने कहा कि घूसखोरी की छूट नहीं दी जा सकती है. मामले में माननीय भी प्रिवेंशन ऑफ़ करप्शन एक्ट के दायरे में 1998 में पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 3:2 बहुमत से राहत दी थी. दरअसल, साल 1993 में नरसिंह राव सरकार बचाने को लेकर झामुमो सांसदों पर रिश्वत लेने का आरोप था.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई की सात न्यायाधीशों की पीठ ने चंद्रचूड़, और जस्टिस एएस बोपन्ना, एमएम सुंदरेश, पीएस नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला, संजय कुमार और मनोज मिश्रा ने 26 साल पहले के पीवी नरसिम्हा राव के आदेश को पलट दिया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने कहा था कि सांसद और विधायक अनुच्छेद 105(2) और 194 के तहत रिश्वत के लिए छूट का दावा कर सकते हैं. (2) संविधान के पहले के आदेश में कहा था कि अगर ऐसे कानून निर्माता सौदेबाजी के अपने अंत को बरकरार रखते हैं तो उन्हें अभियोजन से छूट मिल जाएगी.

सीता सोरेन केस को जानिए

दरअसल, साल 2012 में झारखंड मुक्ति मोर्चा नेता सीता सोरेन पर राज्यसभा वोट के लिए रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था. उन्होंने अनुच्छेद 194(2) के तहत छूट का दावा किया था. जब झारखंड हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी, तो सीता सोरेन ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसने अक्टूबर 2023 में मामले की सुनवाई की.

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पीवी नरसिम्हा राव मामले में फैसले को समझिए

पीवी नरसिम्हा राव मामले में फैसला, जो विधायिका के एक सदस्य को अभियोजन से छूट देता है. जो वोट देने या भाषण देने के लिए रिश्वत लेने में शामिल है. सार्वजनिक हित, सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी और संसदीय लोकतंत्र पर व्यापक प्रभाव पड़ता है. अगर फैसले पर पुनर्विचार नहीं किया गया तो इसे अदालत द्वारा त्रुटि को बरकरार रखने की अनुमति देने का गंभीर खतरा है.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत रिश्वत का अपराध रिश्वत लेते ही पूर्ण हो जाता है और यह इस बात पर निर्भर नहीं हो सकता है कि प्राप्तकर्ता ने वादा पूरा किया है या नहीं. पीठ ने कहा कि विधायिका के सदस्यों का भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भारतीय संसदीय लोकतंत्र की नींव को कमजोर करती है. यह संविधान की आकांक्षाओं और विचारशील आदर्शों के लिए विघटनकारी है और एक ऐसी राजनीति का निर्माण करता है जो नागरिकों को एक जिम्मेदार, उत्तरदायी और प्रतिनिधि लोकतंत्र से वंचित करता है.

रिपोर्ट: आयुष कुमार सिंह

 

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