CAA Announcement: बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पाला बदलने के ठीक 42 दिन बाद मोदी सरकार ने पूरे देश में नागरिकता संशोधन कानून लागू कर दिया है. यह कानून संसद भवन से पास होने के 5वें साल में लागू किया गया है. दरअसल, इस कानून के संसद से पारित होने के बाद से ही देश के कई हिस्सों में हिंसा शुरू हो गई थी, जिससे मोदी सरकार ने इस कानून को कुछ समय के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया था. अब जबकि देश 2024 के लोकसभा चुनाव के मुहाने पर है, मोदी सरकार ने इस कानून को लेकर नोटिफिकेशन जारी कर दिया है. यह अजीब इत्तेफाक होगा कि लंदन से आज ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पटना लौट रहे हैं और उन्हें सबसे पहले मोदी सरकार के इस फैसले से रू ब रू होना होगा.
नागरिकता संशोधन कानून 2020 में काफी सुर्खियों में रहा था. एक साल पहले साल 2019 में मोदी सरकार ने 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भारत आकर बसे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी के अलावा ईसाइयों समेत प्रताड़ना झेल चुके गैर मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने के मकसद से इस कानून को संसद से पास कराया था. हालांकि देश भर में इस कानून का मुस्लिम समाज के लोगों ने खासा विरोध किया था और नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में तो इसके विरोध में भारी दंगा भी हुआ था.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बारे में कहा जाता है कि नागरिकता संशोधन कानून को लेकर उनका विरोध जगजाहिर था. यहां तक कि जब नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी हो रही थी, उसी समय मोदी सरकार के कुछ मंत्रियों ने नागरिकता कानून को लागू करने के दावे किए थे. पहले यह कहा जा रहा था कि नीतीश कुमार के एनडीए में लौटने के बाद से मोदी सरकार के लिए सीएए लागू कर पाना आसान नहीं होगा, लेकिन आज 11 मार्च 2024 को मोदी सरकार ने नागरिकता कानून को नोटिफाई कर दिया है.
नीतीश कुमार की खासियत रही है कि दशकों से भाजपा के साथ रहने (बीच के कुछ साल छोड़ दें तो) के बाद भी वे कई मसलों पर भारतीय जनता पार्टी से अलग राय रखते रहे हैं. सीएए और एनआरसी पर भी उनकी अलग राय रही है. नीतीश कुमार जातीय जनगणना के पक्षधर रहे हैं तो भाजपा इसके विरोध में रही है. वहीं भाजपा राम मंदिर के मसले पर भाजपा की आक्रामक राजनीति के भी खिलाफ रही है.
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ऐसा नहीं है कि नागरिकता कानून का पश्चिम बंगाल, दिल्ली, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में ही विरोध किया गया था, बल्कि बिहार के कुछ इलाकों में भी इसका तब असर देखने को मिला था. राजधानी पटना के सब्जी बाग को पटना का शाहीनबाग कहा गया था. इससे पटना समेत बिहार में नागरिकता कानून के खिलाफ आक्रोश की गैविटी को समझा जा सकता है. बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश के अलावा नागरिकता कानून पर नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में भी विरोधी की चिंगारी महसूस की गई थी.