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Ashoka Stambh:क्या है भारत के राष्ट्रीय चिह्न अशोक स्तंभ का इतिहास, जानें कौन-कौन कर सकता है यूज?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को देश के नए संसद भवन के निर्माण कार्य का निरीक्षण किया. इस दौरान उन्होंने संसद भव की छत पर लगाए गए 20 फीट ऊंचे अशोक स्तंभ का अनावरण भी किया. इस अनावरण के बाद से ही इस अशोक स्तंभ की खूब चर्चा हो रही है.

Ashoka Stambh:क्या है भारत के राष्ट्रीय चिह्न अशोक स्तंभ का इतिहास, जानें कौन-कौन कर सकता है यूज?
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Updated: Jul 12, 2022, 02:07 AM IST

History of Ashoka Stambh: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को देश के नए संसद भवन के निर्माण कार्य का निरीक्षण किया. इस दौरान उन्होंने संसद भव की छत पर लगाए गए 20 फीट ऊंचे अशोक स्तंभ का अनावरण भी किया. इस अनावरण के बाद से ही इस अशोक स्तंभ की खूब चर्चा हो रही है. जानकारी के मुताबिक, इस अशोक स्तंभ चिह्न का वजन 9500 किलोग्राम है और यह कांस्य से बनाया गया है, लेकिन इस नए अशोक स्तंभ की चर्चाओं के बीच कई लोग अशोक स्तंभ के इतिहास और इसके महत्व के बारे में भी जानना चाह रहे हैं. आइए विस्तार से जानते हैं इससे जुड़ी हर जानकारी.

क्या है इस स्तंभ का इतिहास

भारत को आजादी तो 15 अगस्त 1947 को मिल गई थी, लेकिन भारत का संविधान 26 जनवरी 1949 को ग्रहण किया गया, जबकि इसे 26 जनवरी 1950 को अपनाया गया. इसी खास दिन को भारत सरकार ने संवैधानिक रूप से राष्ट्रीय चिह्न के रूप में अशोक स्तंभ को भी अपना लिया, लेकिन अशोक स्तंभ का इतिहास इतना भर नहीं है. आखिर अशोक स्तंभ आया कहां से, इसका महत्व क्या है, इसे जानने के लिए आपको सैकड़ों वर्ष पीछे जाना पड़ेगा. यहां जब आप 273 ईसा पूर्व में आएंगे तब भारत में मौर्य वंश के तीसरे राजा सम्राट अशोक का शासन था. सम्राट अशोक इस दौर में काफी क्रूर शासक माने जाते थे, लेकिन कलिंग युद्ध ने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी. इसमें हुए नरसंहार को देखकर सम्राट अशोक को बहुत धक्का लगा और उन्होंने राजपाट त्यागकर बौद्ध धर्म अपना लिया. बस यहीं से अशोक स्तंभ का जन्म होता है. दरअसल, सम्राट अशोक बौद्ध धर्म अपनाने क बाद उसके प्रचार में जुट गए. इसके प्रचार के तहत ही उन्होंने देशभर में इसके प्रतीकों के रूप में चारों दिशाओं में गर्जना करते चार शेरों की आकृति वाले स्तंभ का निर्माण कराया. कई लोगों के मन में सवाल रहता है कि आखिर अशोक स्तंभ में शेर क्यों है. इसके पीछे कई कारण है. दरअसल, भगवान बुद्ध को सिंह का पर्याय माना जाता है. बुद्ध के सौ नामों में शाक्य सिंह, नर सिंह नाम भी हैं. इसके अलावा सारनाथ में भगवान बुद्ध ने जो धर्म उपदेश दिया था, उसे सिंह गर्जना के नाम से जाना जाता है. इसी कारण बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए शेरों की आकृति को महत्त्व दिया गया. यही नहीं सम्राट अशोक ने सारनाथ में ऐसा ही स्तंभ बनावाया जिसे अशोक स्तंभ कहा जाता है. अशोक स्तंभ में यूं तो 4 शेर होते हैं, लेकिन लोगों को नजर तीन ही शेर आते हैं. इसकी वजह इसका गोल आकार का होना है. अशोक स्तंभ के नीचे एक सांड़ और एक घोड़े की आकृति दिखाई देती है. इन दोनों के बीच में जो चक्र नजर आता है वही राष्ट्रीय ध्वज का राष्ट्रीय चिह्न है.

अशोक स्तंभ को लेकर क्या नियम?

ऊपर आपको हमने इसके इतिहास के बारे में बताया. अब आपको अशोक स्तंभ को लेकर मौजूद कानून के बारे में बताएंगे. अशोक स्तंभ के इस्तेमाल की अनुमति सिर्फ़ संवैधानिक पदों पर बैठे हुए व्यक्ति कर सकते हैं. इसमें भारत के राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल, उप राज्यपाल,  न्यायपालिका और सरकारी संस्थाओं के उच्च अधिकारी शामिल हैं, लेकिन लेकिन रिटायर होने के बाद कोई भी पूर्व अधिकारी पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद या विधायक बिना अधिकार के इस राष्ट्रीय चिह्न का यूज नहीं कर सकते. इस कानून के तहत अगर कोई आम नागरिक इस तरह अशोक स्तंभ का इस्तेमाल करता है तो उसे 2 वर्ष की कैद और 5000 रुपये तक का जुर्माना देना पड़ सकता है.

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