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Delhi News: मुफ्त सुविधाओं के बचाव में AAP की SC में याचिका, कहा- वंचित तबके के लिए ऐसी सुविधाएं देना सरकार की जिम्मेदारी

Free Schemes: आम आदमी पार्टी ने कहा है कि मुफ्त पानी, बिजली, ट्रांसपोर्ट, राशन जैसी योजनाएं कोई मुफ्तखोरी नहीं है, बल्कि एक समतामूलक सरकार बनाने के लिए सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है. 

फाइल फोटो
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Arvind Singh|Updated: Aug 09, 2022, 04:29 PM IST

Government Schemes: आम आदमी पार्टी ने मुफ्त सुविधाएं दिये जाने के बचाव में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. AAP ने कहा है कि मुफ्त पानी, बिजली, ट्रांसपोर्ट, राशन जैसी योजनाएं कोई मुफ्तखोरी नहीं है, बल्कि एक समतामूलक सरकार बनाने के लिए सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है. सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर अश्विनी उपाध्याय की याचिका पहले से लंबित है, जिसमें ऐसी घोषणा करने वाले राजनीतिक दलों की मान्यता रदद् करने की मांग की है. आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट से इस मसले पर उसका पक्ष सुने जाने की मांग की है. इसके साथ ही पार्टी ने याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की मंशा पर सवाल उठाते हुए उनकी याचिका खारिज करने की मांग की है.

 

जनकल्याणकारी योजनाएं मुफ्तखोरी नहीं

आम आदमी पार्टी ने कहा है कि मुफ्त पानी, बिजली, ट्रांसपोर्ट, राशन जैसी योजनाएं कोई मुफ्तखोरी नहीं है, बल्कि एक समतामूलक सरकार बनाने के लिए सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है. संविधान के नीति निर्देशक तत्वों के मुताबिक भी ये सरकार की जिम्मेदारी है कि वो जनकल्याणकारी योजनाओं को लाये. समाज के वंचित तबकों को ऐसी सुविधाएं फ्री में या कम कीमत पर उपलब्ध करना मुफ्तखोरी नहीं है, बल्कि समाज के सभी तबकों को साथ लाने के लिए जरूरी है.

बड़े औद्योगिक घरानों को दी जाने वाली रियायत पर सवाल

कोर्ट में दायर याचिका में आप आदमी पार्टी का कहना है कि असल में चर्चा राजनीतिक दलों, ब्यूरोक्रेटस और बड़े औद्योगिक घरानों को सरकार की ओर से दी जाने वाली तमाम रियायतो पर होनी चाहिए, ना कि जनकल्याण के लिए दी जाने वाली ऐसी सुविधाओं पर. पार्टी के मुताबिक अश्विनी उपाध्याय की याचिका में सामाजिक कल्याण के लिए दी जाने वाली सुविधाओं पर तो सवाल उठाए गए है, पर केंद्र और दूसरे राज्यों की ओर से बड़े बिजनेसमैन को टैक्स रियायत और तमाम दूसरी रियायतों के चलते होने वाले आर्थिक नुकसान को नजरअंदाज कर दिया गया है. मंत्री, सांसदों, विधायकों को दिल्ली और राज्यों की राजधानी में मुफ्त आवास और दूसरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं. अगर कोर्ट इस मसले पर जाना चाहता है तो उसे देखना चाहिए कि सरकारें राजनीतिक दलों और बड़े कॉरपोरेट हाउस के लिए कितनी उदारता बरत रही है.

सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि कमेटी में शामिल हो

याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट अगर इस मसले पर विचार के लिए एक कमेटी का गठन करना चाहता है, तो उसमें नीति आयोग, चुनाव आयोग, वित्त आयोग, आरबीआई के अलावा तमाम राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाना चाहिए. कमेटी में सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के अलावा समाज के वंचित तबकों के लिए काम करने वाले एनजीओ के प्रतिनिधियों को भी  शामिल किया जाना चाहिए.

SC और केंद्र सरकार ने गम्भीर मसला बताया था

पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट और केन्द्र सरकार दोनों ने मुफ्तखोरी की घोषणाओं पर चिंता जाहिर करते हुए इस पर लगाम लाये जाने की जरूरत जताई थी. केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का कहना था कि चुनाव के दौरान सियासी दलों की ओर से मतदाताओं को मुफ्त सुविधाओं का वायदा देश की अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक है. ऐसे वायदे ही आर्थिक विनाश की वजह बनते हैं. वही सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि मामले से जुड़े सभी पक्ष लॉ कमीशन, नीति आयोग, सभी दल,वित्त आयोग आपस में चर्चा कर अपने सुझाव दें. सभी पक्ष उस संस्था के गठन पर अपने विचार रखें जो मुफ्तखोरी की घोषणाओं पर लगाम लगा सके. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई 11 अगस्त को होनी है.

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