Two Doctors Terminated Jammu-Kashmir: जम्मू कश्मीर सरकार ने दो सरकारी डॉक्टरों को नौकरी से बर्खास्त कर दिया है. ए दोनों डॉ बिलाल अहमद दलाल और डॉ निघत शाहिन चिल्लू (गॉयकोनोलोजिस्ट) है. दोनों पर आरोप है कि इन्होनें साल 2009 में दो बहनों की डूबने से हुए मौत की रिपोर्ट को बदल दिया और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI और आतंकियों के कहने पर दोनों लड़कियों की मौत को बलात्कार के बाद हत्या बताया. इतना ही नहीं दोनों ने फर्जी सबूत भी दोनों लड़कियों पर प्लांट किए जिससे एजेंसियों को यकीन हो जाए कि लड़कियों के साथ घिनौनी वारदात के बाद हत्या की गयी है. इनकी इस साजिश की वजह से कशमीर महीनों जलता रहा था और 6 हजार करोड़ का नूकसान सरकार को झेलना पड़ा था.
इस घटना की वजह से आतंकियों ने कश्मीर में पत्थरबाजी और दंगे शुरू कर दिए थे जो करीब 7 महीनों तक चलते रहे और 7 नागरिकों की मौत हुई. जून से दिसंबर 2009 तक चले बंद में 103 नागरिक घायल हुए, 29 जम्मू कश्मीर पुलिस के जवान और 6 पैरामिलिट्री के जवान घायल हुए थे.
क्या है पूरा मामला?
29 मई 2009 को कश्मीर के शोपिंया की रहने वाली दो लड़कियां आसियां और निलोफर अपने सेब के बगीचे में गयी थी जहां से शाम को वापस आते समय पैर फिसलने से रम्बी आरा नाला में गिर गयी और डूब कर मौत हो गयी. दोनों लड़कियां रिश्ते में ननद-भाभी लगती थी. रात तक जब दोनों लड़कियां घर नहीं लौटी तो निलौफर का पति शकील अहमद अपने दोस्त के साथ पत्नी और बहन आसियां को ढूढने निकला लेकिन जब पता नहीं चला तो पुलिस को सूचना दी गयी जिसके बाद अगले दिन यानी 30 मई 2009 को दोनों लड़कियों की लाश पानी में मिली. पुलिस को शुरूआत में मौत की वजह को लेकर कोई शक नहीं था इसलिए CrPC 174 के तहत मौत की जांच शुरू की और पोस्टमॉर्टम के लिए दोनो की लाश को भेज दिया. इसी के बाद आतंकियों और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ने मौके का फायदा उठाते हुए माहौल को खराब करना शुरू कर दिया और इन दोनों डॉक्टर के साथ मिल कर मौत को दूसरा रूप दे दिया. दोनों डॉक्टरों ने इसे बलात्कार के बाद हत्या का रूप दे दिया और बकायदा इसके लिए सबूतों को इनके ऊपर प्लांट किया गया. किसी दूसरे व्यकित के सैंपल को इनके ऊपर प्लांट किया गया ताकी अगर दूसरे डॉक्टर के पास भी मामला जाए तो यही लगे की दोनों की बलात्कार के बाद हत्या की गयी है. इसी के बाद वहां माहौल बदलने लगा और लोगों ने सुरक्षा में मौजूद सुरक्षाबलों के लोगों पर इस हत्या के आरोप लगाने शुरू कर दिए. जोकि पाकिस्तान और आतंकी चाहते थे.
कश्मीर में बिगड़ता जा रहा था माहौल
इस मामले में जम्मू कश्मीर सरकार ने 1 जून 2009 को CoI (Commission of Inquiry) कमिशन का गठन किया जिसने 3 जून 2009 से काम करना शुरू कर दिया और इसके अलावा 7 जून को पुलिस ने बलात्कार की धारा 376 में मामला दर्ज कर अपनी जांच शुरू कर दी और बाद में 10 जून को हत्या की धारा 302 भी लगा दी, लेकिन इस बीच कश्मीर में माहौल बिगड़ता जा रहा था और इसके बाद सरकार ने 12 अगस्त 2009 को इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी.
सीबीआई ने शुरू की थी जांच
सीबीआई ने इस मामले की जांच शुरू की और दिसंबर 2009 में जांच पूरी कर अदालत में 13 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की जिसमें 6 डॉक्टर, 5 वकील और 2 गवाह समेत 13 आरोपी बनाए गए जिन्होंने जानबूझ कर और झूठे सबूत पेश कर इसे बलात्कार और हत्या का मामला बनाने की कोशिश की. सीबीआई ने इसमें AIIMS के डॉक्टर और कश्मीर में जांच के दौरान मिले सबूतों को आधार बनाते हुए ए चार्जशीट दाखिल की थी और बताया था कि दोनों लड़कियों की मौत दम घुटने से हुई है यानी पानी में डूबने से.
लड़कियों की मौत डूबने से हुई
सीबीआई की जांच ने बता दिया था कि दोनों लड़कियों की मौत डूबने से हुई है लेकिन बावजूद इसके जम्मू कश्मीर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मियां क्ययूम ने जांच एजेंसियों पर सवाल उटाते हुए मामले में PIL दाखिल कर दी और यहां तक की पाकिस्तान को इस मामले को इंटरनेशल कोर्ट (ICJ) में ले जाने के लिए कहा. इसके अलावा उस दौरान वकीलों ने इस मामले को सुनवाई पर आने ही नहीं दिया और आरोपी वकीलों ने चार्जशीट को खारिज करने के लिए कोर्ट में याचिका तक लगा दी थी. सीबीआई के वकील को लगातार धमकाया जा रहा था जिसका खामियाजा ए हुआ कि इस मामले में हुई 40 सुनवाई में से महज 6 सुनवाई में सीबीआई के वकील पेश हुए जिसकी वजह से 13 आरोपियों को इस मामले में सजा नहीं मिल पाई.
(इनपुट: जितेंद्र शर्मा)