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अंगदान से बच सकती है किसी की जान, फिर भी ऑर्गन डोनेशन में पीछे क्यों हैं भारतीय?

हम में से ज्यादातर लोग ऑर्गन डोनेट करने वालों को हीरो की तरह ट्रीट करते हैं, लेकिन कई गलत धारणाओं के कारण खुद अंदगान को लेकर आगे नहीं आते, ऐसे में जागरूकता बेहद जरूरी है.

अंगदान से बच सकती है किसी की जान, फिर भी ऑर्गन डोनेशन में पीछे क्यों हैं भारतीय?
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Shariqul Hoda|Updated: Aug 22, 2024, 10:16 AM IST

Misconceptions Regarding Organ Donation: ऑर्गन डोनेशन एक रहमदिली और जिंदगी बचाने वाला काम है जो ट्रांसप्लांटेशन का इंतजार कर रहे लोगों को एक नई उम्मीदें देता. लाखों लोग चाहते हैं कि उन्हें कोई डोनर मिल जाए लेकिन इनमें से कई को कभी इसके लिए कॉल नहीं आता. कुछ ही मामले ऐसे हैं जब उसे नए सिरे से जीवन जीने का मौका मिलता है. जो ऑर्गन सबसे ज्यादा ट्रांसप्लांट किया जाता है उनमें लंग्स, हार्ट, किडनी, लिवर और पैंक्रियाज शामिल हैं. इसके अलावा स्किन हड्डी, कॉर्निया और हार्च वाल्व सहित टिश्यू का डोनेशन भी रेसिपिएंट को बेहतर जीवन जीने में मदद कर सकता है. जनता के बीच सही जागरूकता और शिक्षा का अभाव अंगदान को बढ़ावा देने में एक बड़ी रुकावट के तौर पर काम करता है. 

 

ऑर्गन डोनेशन को लेकर गलत धारणाएं

डॉ. हरदीप धरसंडिया (Dr. Hardip Dharsandia) चीफ ऑफ लैबोरेट्रीज, मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर राजकोट, ने बताया कि अंगदान के बारे में कई गलत धारणाएं हैं. हम बेहतर तरीके से समझने की कोशिश करेंगे. ब्रेन डेड एक मेडिकल कंडीशन है जिसे सभी ब्रेन एक्टिविटी, जिसमें ब्रेनस्टेम भी शामिल है, के इर्रिवरसिबल लॉस के जरिए डिफाइन किया जाता है, जो सांस और हार्ट रेट जैसे अहम कामों को कंट्रोल करता है.  कोमा के उलट ब्रेन डेथ हमारे बेन फंक्शन की  समाप्ति है, मस्तिष्क मृत्यु में मस्तिष्क समारोह का अपरिवर्तनीय नुकसान शामिल होता है जबकि दिल अभी भी धड़क रहा होता है. इसके विपरीत कार्डियक डेथ तब होती है जब दिल धड़कना बंद कर देता है और इसे फिर से चालू नहीं किया जा सकता. जब सर्कुलेशन नहीं होता है, तो ऑर्गन डैमेज हो जाते हैं और ब्रेन डेथ से मरने वाले डोनर्स के अंगों की तुलना में कम प्रत्यारोपण के लायक होते हैं.  इस कंडीशन को सर्कुलेटिंग डेथ के रूप में जाना जाता है.

कितनी उम्र कर सकते हैं ऑर्गन डोनेट?

उम्र ऑर्गन और टिश्यू डोनेशन के लिए कोई बैरियर नहीं है क्योंकि इसके लिए कोई निर्धारित एज लिमिट नहीं है. एक गलत धारणा है कि मेडिकल इलनेस की हिस्ट्री मुझे ऑर्गन डोनर बनने से रोक देगा. लेकिन फैक्ट ये है कि बहुत कम मेडिकल कंडीशन आपको खुद ब खुद ही अंगदान के लिए अयोग्य घोषित करती हैं.  हर पोटेंशियल डोनर का इवैलुएशन प्रत्यारोपण की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए केस-दर-केस आधार पर किया जाता है. पुरानी बीमारियों के बावजूद, कुछ अंग सेहतमंद और ट्रांसप्लान के लिए मेल खा सकते हैं.  मिसाल के तौर पर कोई कैंसर सर्वाइवर अपनी आंखें दान कर सकते हैं. मेडिकल फील्ड में विकास ज्यादा से ज्यादा लोगों के लिए दान करना मुमकिन बनाती रहती है.

 

कई स्टडीज से पता चला है कि एक ऑर्गन डोनर आठ रेसिपिएंट की जिंदगी में बदलाव ला सकता है. एक डोनर से दान किए जा सकने वाले अंगों में हार्ट, लिवर, किडनी, पैंक्रियाज, फेफड़े और आंत शामिल हैं. एक टिश्यू डोनर सैकड़ों लोगों की मदद कर सकता है. कॉर्निया डोनर 2 इंसानों को नजरें तोहफे में दे सकता है. दान की गई त्वचा जलने वाले पीड़ितों को गंभीर चोटों से उबरने में मदद करती है. इसके अलावा कई मरीज़ हड्डी, हार्ट वाल्व और टेंडन डोनर्स की मदद के जरिए अपनी सेहत वापिस हासिल कर पाते हैं.

 

ऑर्गन डोनेशन के लिए प्रोत्साहित करना जरूरी

एक और आम बात जो देखी जाती है, खास तौर पर भारत में, वह है अंग दान करने वालों में लैंगिक असमानता. ये आमतौर पर देखा जाता है कि फीमेल डोनर्स का अनुपात पुरुषों से कहीं ज़्यादा है. हाल ही में अलग-अलग सार्वजनिक और सरकारी पहलों के साथ ये असमानता धीरे-धीरे बदल रही है. डॉ. हरदीप धरसंडिया ने कहा, "अंगदान एक निस्वार्थ कार्य है जो जीवन को बदलने और अंग प्रत्यारोपण की सख्त ज़रूरत वाले लोगों को आशा प्रदान करने की शक्ति रखता है. भारत में, 500,000 से ज़्यादा लोग इस ट्रांसफॉर्मेटिव चांस का इंतजार कर रहे हैं; हालांकि, पेश की गई संख्या काफ़ी अपर्याप्त है. गलतफ़हमियों को दूर करके, हम ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को अंग दाता के रूप में रजिस्टर करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं, जिससे आखिरकार अनगिनत लोगों की जान बच सकती है."

 

Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.

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