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Organ Donation: मौत के बाद भी 2 लोगों ने बचाई 7 जिंदगियां, अंदगान बना जीवनदान

Organ Donation In AIIMS: अंगदान एक ऐसा पुण्य कार्य है जिसकी वजह से आप मृत्यु के बाद भी लोगों को नई जिंदगी दे सकते हैं, ऐसा ही 2 लोगों ने किया और मिसाल बन गए. 

Organ Donation: मौत के बाद भी 2 लोगों ने बचाई 7 जिंदगियां, अंदगान बना जीवनदान
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Shariqul Hoda|Updated: Jan 28, 2024, 12:01 PM IST

Organ Donation By 2 Brain-Dead Patients Save 7 Lives: आपने अक्सर हमारे बड़े बुजर्गों से सुना होगा, 'अपने लिए जिए तो क्या जिए, हंसी खुशी जमाने के लिए', हालांकि कुछ लोग मौत के बाद भी कई जिंदगियां बचा देते हैं, उनकी कोशिश से अंगदान जीवनदान बन जाता है. ऐसा ही कुछ हुआ दिल्ली के एम्स अस्पताल में जब 2 ब्रेन डेड लोगों के परिजनों ने मल्टिपल ऑर्गन डोनेशन का फैसला किया और 7 लोगों की जान बच गई.

इतने ऑर्गन डोनेट किए गए
दोनों मृतक की फैमिली के अप्रूवल के बाद 1 हार्ट, 4 किडनी, 2 लिवर और 4 कॉर्निया रिट्रीव किया. सभी कॉर्नियाज को एम्स के डॉ. आरपी सेंटर में बैंक्ड कर लिया गया है. इस डोनेशन में 40 साल की मृतक महिला शामिल रहीं, जिसकी त्वचा को अस्पताल के ह बर्न एंड प्लास्टिक सेंटर में स्थित स्किन बैंड में प्रिजर्व कर दिया गया.

इसके बाद सभी ऑर्गन्स को नेशनल ऑर्गव और टिश्यू ऑर्गेनाइजेशन  (National Organ and Tissue Transplant Organization) अलॉट किया गया. एक लिवर और एक किडनी को एएचआरआर हॉस्पिटल को सौंपा गया. एक किडनी सफदरजंग अस्पताल को दी गई, जब्कि एक हार्ट, एक लिवर और 2 किडनी एम्स में ही किसी जरूरतमंद को ट्रासप्लांट कर दी गई.
 

बच्चू के अंगदान ने बचाई जिंदगी
डॉक्टर्स ने बताया कि 51 साल के शख्स बच्चू (Bacchu), जो राजस्थान के भरतपुर के निवासी थे, उन्हें जय प्रकाश नारायण एपेक्स ट्रॉमा सेंटर में भर्ती किया गया था, जब वो 12 जनवरी 2024 को हरियाणा में पलवल के पास रेलवे ट्रैक पर हादसे के शिकार हो गए थे. तमाम कोशिशों के बाद भी उनकी जान नहीं बचाई जा सकी, फिर 24 जनवरी को बच्चू को ब्रेन डेड डिक्लेयर कर दिया गया. ये शख्स पेशे से राजमिस्त्री थे, जो अपने पीछे पत्नी 18 साल की बेटी और 17 साल के बेटे को छोड़ गए.
 

माया ने भी किया ऑर्गन डोनेट
दूसरे मृतक का नाम माया (40 साल) बताया गया, जो फरीदाबाद में काम करते वक्त छत से गिर गई और फिर 23 जनवरी को उन्हें ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया गया, लेकिन 25 जनवरी को उनकी मौत हो गई. परिजनों ने बताया कि माया एक धार्मिक महिला था जो हमेशा दूसरों की मदद करने में यकीन रखती थी.

डॉक्टर की टीम की कोशिशें हुईं कामयाब
एम्स के ऑर्गन रिट्रीवल बैंकिंग ऑर्गेनाइजेशन (Organ Retrieval Banking Organisation) की प्रोफेसर इंचार्ज डॉ. आरती विज (Dr Aarti Vij) ने परिवार के निस्वार्थ फैसले के लिए गहरा सम्मान व्यक्त किया. उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा कि इलाज करने वाले डॉक्टर्स, ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर्स और काउंसेलर्स, न्यूरोसर्जन, एनेस्थेटिस्ट, ट्रांसप्लांट टीम, प्रशासकों , फोरेंसिक डिपार्टमेंट की समर्पित टीम द्वारा दी गई सलाह, ब्रेन डेथ सर्टिफिकेट और डोनर ऑर्गन मैनेजमेंट के कोऑर्डिनेशन से इस काम को अंजाम दिया गया. गौरतलब है कि एम्स ट्रॉमा सेंटर में पिछले साल 14 ऑर्गन डोनेशन किए गए.

Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमें इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.

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