trendingNow12292501
Hindi News >>Explainer
Advertisement

World Blood Donor Day 2024: ब्लड डोनेट करने और रिसीव करने से क्यों डरते हैं भारतीय?

World Blood Donor Day: हर साल 14 जून को विश्व रक्तदाता दिवस यानी वर्ल्ड ब्लड डोनर डे मनाया जाता है. इसका मकसद सुरक्षित रक्त और रक्त उत्पादों के महत्व को बताना है. इस वर्ष विश्व रक्तदाता दिवस अपनी 20वीं वर्षगांठ मना रहा है. इस साल का थीम है- thank you blood donors!  

World Blood Donor Day 2024: ब्लड डोनेट करने और रिसीव करने से क्यों डरते हैं भारतीय?
Stop
Sudeep Kumar|Updated: Jun 14, 2024, 11:40 AM IST

Blood donation in India: साल 2005 में वर्ल्ड हेल्थ असेंबली ने 14 जून को विश्व रक्तदाता दिवस के रूप में मनाना शुरू किया. तब से यह हर साल मनाया जाता है. इस वर्ष विश्व रक्तदाता दिवस अपनी 20वीं वर्षगांठ मना रहा है. साल 2022 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर साल लगभग 14.6 मिलियन यूनिट ब्लड की जरूरत होती है और हमेशा दस लाख यूनिट की कमी होती है. इसके बावजूद भारत में ब्लड डोनेट करने में कई तरह की बाधाएं हैं.

एक बच्चे को जन्म देने वाली महिला, थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चे और सड़क दुर्घटना में घायल व्यक्ति में क्या समानता हो सकती है? क्योंकि इन तीनों केस में बहुत संभावना है कि जान बचाने के लिए ब्लड की जरूरत पड़े. जब देश में ब्लड बैंकों की बात आती है तो बेहतर स्क्रीनिंग, काउंसलिंग, स्टोरेज और जरूरी उपयोग को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.

ब्लड डोनेशन को लेकर पेचीदा गाइडलाइन

भारत में ब्लड डोनेट करने के लिए जारी गाइडलाइन अंतिम बार 2020 में अपडेट किया था. इस गाइडलाइन में समलैंगिक पुरुषों (gay men) और सेक्स वर्कर्स को 'हाई रिस्क' वाली कैटेगरी में रखा गया है.

यह सच है कि कुछ सेक्सुअल एक्टिवी में संक्रमण का खतरा अधिक होता है, लेकिन इन श्रेणियों से संबंधित लोगों को स्थायी रूप से हाई रिस्क वाले कैटेगरी में रखना ना तो जरूरी है और ना ही उचित है. यह दिशानिर्देश न केवल भ्रामक हैं बल्कि अस्पष्ट भी हैं जो वास्तविक व्यवहार में काफी भिन्नता पैदा करते हैं.

उसी प्रकार थायरॉयड जैसी कुछ बीमारियों से पीड़ित लोगों को भी ब्लड डोनेट करने से कई बार रोक दिया जाता है जबकि वो अक्सर यूथायरॉइड दवा ले रहे होते हैं. हालांकि, इसके लिए गाइडलाइन को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है. यह हेल्थ प्रोवाइडर्स के विवेक पर निर्भर करता है. हालांकि, उनके लिए जानकारी देकर ब्लड डोनेट करवाने से ज्यादा आसान मना कर देना होता है. 

इस तरह के कई उदाहरण हैं जब ब्लड डोनेट करने वाले को डोनेट करने से मना कर दिया जाता है. भले ही उनका इरादा नेक हो, फिर भी कुछ पूर्वाग्रह बने रहते हैं.

समय-समय पर गाइडलाइन को अपडेट करने की जरूरत

हालांकि, ऐसा नहीं है कि ब्लड डोनर को रोकने के लिए प्रोटोकॉल जरूरी नहीं है. ब्लड ट्रांसफ्यूजन के लिए बनाए गए ये जरूरी नियम यह सुनिश्चित करने के लिए है कि जिसे ब्लड दिया जा रहा है उसे सही और सुरिक्षित ब्लड दिया जाए. लेकिन एक सच यह भी है कि इस क्षेत्र में ज्ञान की प्रगति के बावजूद गाइडलाइन को अपडेट नहीं किया गया है.

उदाहरण के लिए ब्रिटेन में स्क्रीनिंग के तौर-तरीकों में बदलाव के कारण पिछले कुछ वर्षों में ब्लड डोनर को मना करने की नीति बदल गई है. ब्रिटेन में ब्लड डोनेट करने से मना करने का आधार टेंपररी और सेक्सुअल एक्टिविटी पर आधारित है ना कि प्रोफेशन, जेंडर और सेक्सुएलिटी के आधार पर. 

ब्लड डोनेट करना कितना स्वैच्छिक है?

1998 में प्रोफेशनली ब्लड डोनेट करने पर बैन लगने के बाद ब्लड बैंकों में ब्लड की कमी को दूर करना एक मुश्किल काम रहा है. आज भी अधिकांश ब्लड बैंकों में ब्लड की पुनः आपूर्ति परिवार या उसके नजदीकी जानकारों पर निर्भर हैं. अक्सर, ब्लड बैंक मरीजों को तब तक ब्लड नहीं देता है जब तक कि उसके परिवार के किसी सदस्य ब्लड डोनेट ना करे.

जबकि ज्यादातर सरकारी गाइडलाइन में 100 प्रतिशत स्वैच्छिक दान की बात कही गई है. जहां इमरजेंसी में किसी डोनर को ढूंढने की जरूरत ना रहे. भारत में यह अभी भी एक दूर का सपना है.

कई बार ऐसा भी होता है कि जब मरीजों के परिवारों से बिना ब्लड डोनेट कराए उसे ब्लड दी जाती है लेकिन बाद में उन्हें रिप्लसमेंट ब्लड की व्यवस्था करने के लिए बार-बार कहा जाता है. यह प्रक्रिया कमजोर समूहों को और अधिक असुरक्षित बनाता है. इस तरह जाति, वर्ग, लिंग, सेक्सुअल एक्टिविटी और अन्य सामाजिक पहचान यह तय करती है कि आप और आपका समुदाय किसी प्रियजन के लिए इस जीवन रक्षक अमृत की व्यवस्था कर सकते हैं या नहीं. 

भारत के लोगों में गलत धाराणाएं व्यापत

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत में एनिमिया की स्थिति कितनी गंभीर है. ऐसे में एक सवाल यह भी उठता है कि कितने लोग वास्तव में ब्लड डोनेट करने में सक्षम हैं?

यहां तक ​​​​कि जब लोग ब्लड डोनेट करने के इच्छुक और सक्षम होते हैं तब भी गलत धारणाएं और अविश्वास व्याप्त होता है . जैसे- ब्लड डोनेट करने से मैं कमजोर हो जाऊंगा. यह एक ऐसा वाक्य है जो लगभग सभी मेडिकल प्रोवाइडर ने सुना है, खासकर पुरुषों से. 

यह कमजोरी अक्सर कम पौरुष क्षमता और काम करने की क्षमता में कमी दोनों का संकेत देती है. आश्चर्य की बात तो यह है कि ये विचार समाज के विभिन्न वर्गों में प्रचलित हैं.

ऐसी स्थिति में मरीज के परिवार वालों के लिए स्वैच्छिक और फिट डोनर ढूंढना भी एक भारी बोझ है. ब्लड डोनेट करने से पहले भरे जाने वाले फॉर्म में भी यह पूछा जाता है कि डोनेट स्वैच्छिक है? और डोनर उसमें हां टिक करता है. फिर भी ब्लड अक्सर किसी के लिए ब्लड रिसीव करने के बदले में होता है. 

हम क्या कर सकते हैं?

विज्ञान जिस तरह से प्रगति पथ पर है. ऐसे में अब समय आ गया है कि ब्लड डोनेट करने संबंधी गाइडलाइन देश की जरूरतों के अनुरुप बनें. इन गाइलाइन को सुलभ बनाना बहुत ही महत्वपूर्ण है. ब्लड ट्रांसफ्यूजन के लिए हमारे पास एक बेहतर प्रोटोकॉल है. ऐसे में ब्लड बैंकों के अधिकोरियों को चाहिए कि वो डोनर को किसी कारणवश मना करने से पहले उससे जरूरी जानकारी देकर उसे डोनेट करने के लिए प्रोत्साहित करें.

हालांकि, इसका कोई शॉर्टकट नहीं है और ब्लड ट्रांसफ्यूजन सिस्टम को रातों-रात ठीक नहीं किया जा सकता है. लेकिन फिर भी हमें यह ध्यान रखना होगा कि ऐसे कई स्वस्थ व्यक्ति हैं जो वास्तव में ब्लड डोनेट करना चाहते हैं और डोनेट कर सकते हैं.

Read More
{}{}