Delhi Highcourt: अगर कोई महिला श्रीमती की जगह सुश्री लिखना चाहती है. पति के सरनेम की जगह अपना शादी के पहले वाला सरनेम यानी मेडन सरनेम लगाना चाहती है तो उसके पास तलाक के कागज या पति की तरफ से NOC होनी चाहिए. अब इस नियम को लेकर नई बहस छिड़ गई है. ऐसा इसलिए क्योंकि दिव्या मोदी टोंग्या ने दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) में एक याचिका दाखिल करके सरकार के नोटफिकेशन को चुनौती दी है, जिसमें पुराना सरनेम अपनाने पर पति की इजाजत या तलाक के आदेश की जरूरत होती है. आइए समझते हैं कि ये पूरा मामला क्या है और याचिका में स्वायत्तता के अधिकार (Right To Autonomy) और निजता के अधिकार (Right To Privacy) के उल्लंघन की बात क्यों कही गई है.
हाईकोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब
बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट ने दिव्या मोदी टोंग्या की याचिका के बाद केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. चार हफ्ते में जवाब दायर करने की बात कही है. याचिकाकर्ता महिला ने अपनी याचिका में कहा है कि आवास और शहरी कार्य मंत्रालय के पब्लिकेशन डिपार्टमेंट की तरफ से जारी नोटिफिकेशन की वजह से उसकी राइट टू ऑटोनॉमी और राइट टू प्राइवेसी का हनन होता है.
आर्टिकल 14, 19 और 21 के उल्लंघन की बात
याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि यह नोटिफिकेशन संविधान के आर्टिकल 14, 19 और 21 का उल्लंघन है. यह जेंडर के आधार पर भेदभाव करने वाला है. अभी के नियम के मुताबिक, जब तक ऐसे मामले में कोर्ट का आदेश नहीं आ जाता है तब महिला अपना मेडन सरनेम नहीं ले सकती है. महिला याचिकाकर्ता ने कहा कि जब तक तलाक के मामले में फैसला नहीं हो जाता तब तक महिला को मेडन सरनेम अपनाने से बिना किसी तथ्यात्मक आधार के रोकना आर्टिकल 14 का उल्लंघन करता है.
पति से NOC की जरूरत क्यों?
दरअसल, महिला ने इस याचिका में लिंग के आधार पर भेदभाव का मुद्दा भी उठाया है. याचिकाकर्ता का कहना है कि संविधान में जब लड़का-लड़की एक बराबर हैं तो नोटिफिकेशन में पति से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) वाली बात क्यों है? अब संविधान के उन आर्टिकल्स के बारे में जान लेते हैं, जिनके उल्लंघन की बात याचिकाकर्ता ने कही है.
आर्टिकल 14 क्या है?
बता दें कि संविधान का आर्टिकल 14 कानून के सामने सभी के बराबर होने की बात करता है. इसके मुताबिक, स्टेट किसी भी व्यक्ति को कानून के सामने समता या कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा. याचिकाकर्ता का कहना है कि मेडन सरनेम लेने के लिए पति से NOC लेने वाली बात कानून के सामने पुरुष और महिला दोनों को बराबर नहीं मानती है. यह आर्टिकल 14 का हनन है.
आर्टिकल 19 क्या है?
जान लें कि आर्टिकल 19 को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार कहते हैं. संविधान का आर्टिकल 19 भाषण की स्वतंत्रता देता है. यह हर किसी को मौखिक, लिखित, इलेक्ट्रॉनिक, ब्रॉडकास्ट या प्रेस के जरिए बिना किसी डर के स्वतंत्र तौर पर अपनी राय देने का अधिकार देता है.
आर्टिकल 21 क्या है?
संविधान का आर्टिकल 21 निजता का अधिकार कहलाता है. आर्टिकल 21 किसी शख्स की लाइफ में किसी अन्य व्यक्ति के जबरदस्ती हस्तक्षेप पर रोक लगाता है. दिल्ली हाईकोर्ट में मेडन सरनेम से जुड़ी याचिका दायर करने वाली महिला ने इन्हीं 3 आर्टिकल के उल्लंघन की बात कही है.