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Explainer: कश्‍मीर में उरी-पुलवामा करने वाले निपटा दिए गए, फिर जम्मू में छोटे-छोटे हमले क्यों कर रहे आतंकी?

Kathua Terror Attack News: कठुआ आतंकी हमला एक ट्रेंड को जाहिर करता है. पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों के लिए कड़ी सुरक्षा वाले कश्मीर को निशाना बनाना मुश्किल हो रहा है. ऐसे में उन्होंने जम्मू का रुख किया जो करीब दो दशक से शांत रहा है.

Explainer: कश्‍मीर में उरी-पुलवामा करने वाले निपटा दिए गए, फिर जम्मू में छोटे-छोटे हमले क्यों कर रहे आतंकी?
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Deepak Verma|Updated: Jul 10, 2024, 12:52 PM IST

Jammu Kashmir Terror Attacks: जम्मू डिवीजन में हालिया आतंकी हमलों ने सुरक्षा ढांचे पर सवाल खड़े कर दिए हैं. सोमवार को कठुआ में सेना के काफिले पर एक और कायराना हमला हुआ. हमारे पांच सैनिक शहीद हुए. अगले दिन, डोडा में मुठभेड़ शुरू हो गई. जम्मू और कश्मीर में, जम्मू डिवीजन अपेक्षाकृत रूप से शांत रहा है. इसलिए हाल के दिनों में यहां हमलों की संख्या बढ़ना चिंता पैदा करता है.

जम्मू के डोडा, ऊधमपुर, राजौरी और पुंछ जैसे जिले 90 के दशक में जरूर आतंक के साये में रहे. लेकिन 2008-09 तक यहां शांति स्थापित हो चुकी थी. जम्मू डिवीजन की तुलना में कश्मीर के अधिकांश जिले आतंक प्रभावित रहे हैं. अनंतनाग, कुलगाम, पुलवामा, शोपियां, बडगाम, बांदीपोरा, कुपवाड़ा और गांदरबल जैसे जिलों में आतंकी सक्रिय रहे.

अभी क्यों बढ़ी हमलों की संख्या?

J&K में हमलों की संख्या बढ़ी है तो उसके पीछे आतंकियों की बदली हुई रणनीति है. 2016 में उरी हमला हुआ और 2019 में पुलवामा में सैन्य काफिले को निशाना बनाया गया. पिछले एक दशक में J&K के भीतर हुए ये सबसे घातक आतंकी हमले थे. लेकिन उनकी प्रतिक्रिया में भारत ने जैसी कार्रवाई की, उससे आतंकियों के लिए फिर उतने बड़े स्तर पर हमले करना बेहद मुश्किल हो गया है. टाइम्स ऑफ इंडिया में भारतीय सेना की 15 चिनार कॉर्प्स के पूर्व कमांडर, सैयद अता हसनैन लिखते हैं कि कश्‍मीर के कुलगाम में छह आतंकियों का मारा जाना यह दिखाता है कि बड़े हमले की कोशिशें नाकाम हो रही हैं.

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हसनैन के मुताबिक, घाटी में स्पेशल फोर्सेज ने अपना प्रभुत्व जमा लिया है. इससे बड़े आतंकी हमलों को समय रहते नाकाम किया जाना संभव हुआ है. ऐसे में आतंकियों का आका मुल्क पाकिस्तान छोटे हमलों पर मजबूर है. इन आतंकी हमलों को जम्मू और कश्मीर के आगामी विधानसभा चुनाव में रुकावट डालने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.

छोटे-छोटे हमलों की संख्या क्यों बढ़ी?

TOI में हसनैन लिखते हैं कि अक्सर छोटे-छोटे हमले करके एक बड़े हमले जितना प्रभाव डाला जा सकता है. मिलिट्री काफिले पर घात लगाकर किए छोटे हमले में कुछ सैनिकों की मौत हो जाए तो भी उससे उरी या पुलवामा जैसा शोर नहीं मचता. हसनैन के मुताबिक, सीमित भौगोलिक इलाके में बार-बार ऐसे हमले होना डीप स्टेट की मौजूदगी की ओर इशारा करता है.

जम्मू में क्यों हो रहे हमले?

हसनैन के अनुसार, कश्मीर पाकिस्तान से पैदा होने वाले आतंकवाद का केंद्र है. 1989 से घाटी में आतंक का जो माहौल बनना शुरू हुआ, उसका असर जम्मू पर भी पड़ा, लेकिन कुछ सालों के लिए ही. पुंछ, राजौरी, डोडा और ऊधमपुर में आतंकी खासे सक्रिय थे. कश्‍मीर में 90s की शुरुआत से ही काउंटर-टेररिज्म (CT) ग्रिड मौजूद रही है. जम्मू डिवीजन की CT ग्रिड भी थी लेकिन इलाके में शांति होने पर 2008-09 में हटा ली गई.

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कम सैनिकों की मौजूदगी को पाकिस्तान और आतंकवादी संगठनों ने 'कमजोर इलाके' के रूप में देखा. यहां घुसपैठ से आतंकियों को जम्मू-पठानकोट नेशनल हाइवे का एक्सेस मिल जाता है. यहां से आतंकी जल्दी से पीर पंजाल रेंज में दाखिल हो सकते हैं जहां के जंगलों में छिपने के तमाम ठिकाने हैं.

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