trendingNow12291695
Hindi News >>Explainer
Advertisement

Explainer: क्या है 'कफाला' सिस्टम, जिसके चलते खाड़ी देशों में 'गुलाम' हो जाते हैं मजदूर? रोते हैं खून के आंसू

What is Kafala System: कुवैत की बिल्डिंग में आग लगने से 41 भारतीयों की मौत के बाद 'कफाला' सिस्टम एक बार फिर चर्चा में है. यह एक ऐसा सिस्टम है, जिसके चलते खाड़ी देशों में पहुंचते ही श्रमिक गुलाम जैसे बनकर रह जाते हैं.

Explainer: क्या है 'कफाला' सिस्टम, जिसके चलते खाड़ी देशों में 'गुलाम' हो जाते हैं मजदूर? रोते हैं खून के आंसू
Stop
Devinder Kumar|Updated: Jun 13, 2024, 05:12 PM IST

Kafala System in Hindi: कुवैत की बिल्डिंग में लगी आग में मरने वाले भारतीय कामगारों की संख्या 41 हो गई है. वे सभी मजदूर अपने परिवार की रोजी- रोटी चलाने के लिए कुवैत गए हुए थे. उनकी नियुक्ति खाड़ी देशों में प्रचलित 'कफाला' सिस्टम के तहत हुई थी. यह सिस्टम नौकरी देने वाले नियोक्ताओं को अपने कामगारों पर असीमित अधिकार दे देता है. इसका फायदा उठाकर नियोक्ता उनके साथ हद दर्जे का अमानवीय व्यवहार करते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो वहां नौकरी गए कामगार उनके गुलाम बनकर रह जाते हैं. 

क्या है कफाला सिस्टम?

'कफाला' खाड़ी देशों में दशकों से चली आ रही एक कानूनी प्रणाली है. सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, कतर, कुवैत और ओमान में विदेशी कामगारों का इसी प्रक्रिया से नौकरी दी जाती है. जॉर्डन, लेबनान और इराक इस प्रणाली में शामिल नहीं है. ईरान 'कफाला' सिस्टम को मानता है लेकिन वहां पर ज्यादा संख्या में प्रवासी श्रमिक काम करने के लिए नहीं जाते. 

क्यों बनाई गई थी यह प्रणाली?

खाड़ी देशों ने तेजी से बढ़ते आर्थिक विकास के युग में सस्ते, प्रचुर मात्रा में श्रम की आपूर्ति करने के लिए इस प्रणाली को बनाया था. इस सिस्टम को लागू करने वाले देशों का तर्क है कि 'कफाला' से स्थानीय उद्यमों को फायदा होता है और इससे मुल्क के विकास की गति बढ़ जाती है. वहीं विरोधियों का कहना है कि यह प्रणाली शोषण से भरपूर है. इसमें प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों के लिए नियमों और सुरक्षा की कमी है. जिसके चलते अक्सर उन्हें कम वेतन, खराब कामकाजी परिस्थितियों और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है. उनके साथ नस्लीय भेदभाव और लिंग आधारित हिंसा भी आम हैं. 

कैसे काम करता है 'कफाला' सिस्टम?

इस प्रणाली के तहत, खाड़ी देशों की सरकारें स्थानीय व्यक्तियों या कंपनियों को विदेशी मजदूरों को अपने यहां काम पर रखने के लिए स्पॉन्सरशिप परमिट देने का अधिकार देती है. वह कंपनी हायरिंग एजेंसीज के जरिए दूसरे देशों से सस्ते श्रमिक हायर करते हैं. इसके बाद उनके मूल देश से आने- जाने और , रहने का इंतजाम प्रायोजक कंपनी ही करती है. 

इन खाड़ी देशों में कफाला सिस्टम आमतौर पर श्रम मंत्रालयों के बजाय आंतरिक मंत्रालयों के तहत आता है. ऐसे में उन देशों में श्रमिकों के लिए बने कानूनों और योजनाओं का उन्हें कोई लाभ नहीं मिल पाता. उन्हें नौकरी देने वाले प्रायोजकों के पास अधिकार होता है कि वे चाहे तो विदेशी कामगारों का कॉन्ट्रेक्ट आगे बढ़ा दें या फिर बीच में ही खत्म कर दें. 

अनुमति के बिना नहीं छोड़ सकते जॉब

इतना ही नहीं, श्रमिक अगर जॉब छोड़कर अपने देश वापस आना चाहे तो वह ऐसा नहीं कर सकता है. बिना प्रायोजक कंपनी की अनुमति के कार्यस्थल छोड़ने पर श्रमिक की गिरफ्तारी हो सकती है. फिर चाहे वह कर्मचारी दुर्व्यवहार की वजह से ही नौकरी क्यों न छोड़ना चाहता हो. नौकरी देने वाली कंपनियां श्रमिकों के पासपोर्ट अपने पास रख लेती हैं, जिससे वे कैद होकर ही रह जाते हैं.

पैन-अरब विचारधारा से डर गए थे अरब देश

सूत्रों के मुताबिक यह 'कफाला' सिस्टम मिस्र, सीरिया जैसे आसपास के अरब देशों के श्रमिकों के लिए बनाई गई थी और वहां पर इनके फेवर में कई बातें शामिल थीं. लेकिन 1970 के दशक में तेल के बिजनेस में उछाल के बाद, सस्ते श्रम की इच्छा और अरब देशों के श्रमिकों में पैन-अरब विचारधारा फैलने के डर से दक्षिण एशिया के लोगों को प्राथमिकता दी जाने लगी. 

खतरे के बावजूद क्यों जाते हैं खाड़ी देश?

विदेश जाने वाले अधिकतर भारतीय मजदूरों को वहां की नारकीय स्थितियों के बारे में पहले से पता होता है. इसके बावजूद अच्छा वेतन उन्हें जानबूझकर यह जोखिम उठाने को मजबूर कर देता है. असल में खाड़ी देशों की वेल्यू भारतीय रुपये से कहीं ज्यादा है. ऐसे में वहां पर श्रमिकों को सैलरी तो बहुत कम मसलन 350 से 400 डॉलर महीना मिलती है. लेकिन जब उसकी भारतीय रुपये से तुलना की जाती है तो वह काफी ज्यादा बन जाती है. यही वजह है कि वे इस जोखिम को मोल लेने को हंसी- खुशी तैयार हो जाते हैं. 

अगर कुवैत की बात करें तो वहां की आबादी 48 लाख है, जिसमें 33 लाख से ज्यादा विदेशी हैं. इनमें से 10 लाख भारतीय श्रमिक हैं. यह कुवैत की कुल वर्कफोर्स का करीब 30 फीसदी है. वहां काम कर रहे विदेशी कामगारों में अधिकतर लोग ऑयल रिफाइनरी, सड़क, बिल्डिंग, होटल निर्माण में  मजदूरी करते हैं. ऐसा नहीं है कि कुवैत में भारतीय महज मजदूरी ही करते हैं. वहां पर करीब 24 हजार नर्स, 500 डेंटिस्ट और एक हजार से ज्यादा डॉक्टर भी काम कर रहे हैं. इनके अलावा बहुत सारे इंजीनियर और दूसरे स्किल्ड प्रोफेशनल भी वहां पर काम में लगे हैं. 

Read More
{}{}