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Buddhadeb Bhattacharjee: रिफॉर्मर राजनेता ने विरोधों के बावजूद बदला वामपंथ का चेहरा, कॉमरेडों से कैसे अलग थे बुद्धदेव भट्टाचार्य?

Reformer-Politician Buddhadeb Bhattacharjee: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी (CPM) नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य साल 2000 में राष्ट्रीय सुर्खियों में आए थे. उस समय भारत के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले सीएम ज्योति बसु के उत्तराधिकारी के रूप में उन्हें चुना गया था.

Buddhadeb Bhattacharjee: रिफॉर्मर राजनेता ने विरोधों के बावजूद बदला वामपंथ का चेहरा, कॉमरेडों से कैसे अलग थे बुद्धदेव भट्टाचार्य?
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Keshav Kumar|Updated: Aug 08, 2024, 06:26 PM IST

Buddhadeb Bhattacharjee Change CPM and Left: पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज कम्युनिस्ट नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य ने 80 साल की उम्र में कोलकाता के बालीगंज स्थित आवास पर गुरुवार सुबह अंतिम सांस ली. वह अपनी पत्नी मीरा और बेटी सुचेतना के साथ पाम एवेन्यू स्थित दो बेडरूम के फ्लैट में रहते थे. उनकी बेटी ने हाल ही में लिंग परिवर्तन के लिए सर्जरी कराई थी. इससे लंबे समय बाद वह फिर से सुर्खियों में आए थे.

दुनिया की सबसे सस्ती कार की उम्मीद में पार्टी के अंदर भी संघर्ष

वामपंथ का सुधारवादी चेहरा और मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य पश्चिम बंगाल को 'दुनिया की सबसे सस्ती कार' के साथ औद्योगीकरण के युग में ले जाने की उम्मीद रखते थे, लेकिन इस मुहिम में अपनी पार्टी को साथ लेने में नाकाम रहे. उससे पहले लेखक-राजनेता बुद्धदेव भट्टाचार्य साल 2000 में तब राष्ट्रीय सुर्खियों में आए, जब उस समय भारत के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले सीएम ज्योति बसु के उत्तराधिकारी के रूप में उन्हें चुना गया था.

मुख्यमंत्री बनने के बाद लगातार दो चुनावों में हासिल की बड़ी जीत

इसके बाद पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2001 में सत्तारूढ़ सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे ने 294 विधानसभा सीटों में से 199 पर शानदार जीत हासिल की. 2006 के चुनावों में बुद्धदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व में 235 सीटें जीतकर दोबारा अपनी सीटें और बढ़ा लीं. बतौर मुख्यमंत्री अपने दूसरे कार्यकाल में बुद्धदेव भट्टाचार्य ने एक औद्योगीकरण अभियान शुरू किया. यह एक वामपंथी नेता के लिए काफी नया, अलग और सुधारवादी रुख था.

औद्योगीकरण अभियान के लिए वामपंथी नेता का भारी विरोध 

इस अभियान में उन्होंने आईटी और आईटीईएस (सूचना प्रौद्योगिकी सक्षम सेवाएं) क्षेत्रों में भारी निवेश, सालबोनी में देश का सबसे बड़ा एकीकृत इस्पात संयंत्र, नयाचर में एक रासायनिक केंद्र, नंदीग्राम में एक स्पेशल इकोनॉमिक जोन ( एसईजेड) और सिंगुर में नैनो प्लांट को शामिल किया. हालांकि, बाद के दो प्रोजेक्ट ने भट्टाचार्य की सियासी बर्बादी की इबारत लिख दी. 2006 में टाटा मोटर्स द्वारा नैनो बनाने के लिए हुगली जिले के सिंगुर में भूमि अधिग्रहण और 2007 में नंदीग्राम में एसईजेड के लिए उन्हें किसानों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा.

आंदोलन में बदला किसानों का प्रदर्शन, सत्ता विरोधी लहर

इस विरोध प्रदर्शन ने आखिरकार मुख्य रूप से तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी के नेतृत्व में एक सरकार विरोधी आंदोलन का रूप ले लिया. राज्य में अकेले ही सीपीआई (एम) से लड़ने वाली तेजतर्रार और जुझारू राजनेता ने इसे वामपंथियों पर हमला करने का मौका बना लिया. वामपंथी पार्टी तब तक बंगाल में 34 वर्षों से लगातार सत्ता में थी और भारी सत्ता-विरोधी लहर का सामना कर रही थी. 14 मार्च, 2007 को पुलिस गोलीबारी में 14 प्रदर्शनकारियों की मौत ने लोगों के गुस्से और ज्यादा भड़का दिया.

सिंगूर और नंदीग्राम भट्टाचार्य सरकार के लिए मौत की घंटी

उसके एक साल बाद नैनो संयंत्र को गुजरात में स्थानांतरित करने के टाटा के फैसले ने बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार के लिए मौत की घंटी साबित कर दी. इन परिस्थितियों में, नंदीग्राम में एसईजेड भी शुरू हो पाने में नाकाम रहा. 2011 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने लेफ्ट का शासन खत्म कर दिया और ममता बनर्जी सीएम बनीं. बुद्धदेव भट्टाचार्य अपनी ही सीट जादवपुर से टीएमसी के उम्मीदवार और अपनी सरकार में मुख्य सचिव रहे मनीष गुप्ता से चुनाव हार गए. इसके बाद उन्हें बंगाल में वामपंथ की हार के लिए एक आसान बलि का बकरा बनाने की कोशिश की गई.

इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने औद्योगीकरण पर जोर क्यों दिया था

बुद्धदेव भट्टाचार्य ने साल 2013 में एक टीवी इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने औद्योगीकरण पर जोर क्यों दिया था? उन्होंने कहा था, “पश्चिम बंगला जोड़ी कोई कारखाना ना होय, चेले मेयेरा अज्ज जारा कॉलेज ई पोर्चे, इंजीनियरिंग कॉलेज पोर्चे... तदेर भोबिस्यत ता की? सुधू सीपीएम तृणमूल एर बयपर नोई. (अगर बंगाल में उद्योग नहीं हैं, तो वे लड़के-लड़कियां जो अभी कॉलेजों में पढ़ रहे हैं, इंजीनियरिंग कॉलेजों में पढ़ रहे हैं... उनके भविष्य का क्या होगा? यह सीपीएम या तृणमूल का मुद्दा नहीं है.)”

भट्टाचार्य ने नंदीग्राम में हुई मौतों के बारे में कहा- खूब ख़राब लगलो

बुद्धदेव भट्टाचार्य ने नंदीग्राम में हुई मौतों के बारे में भी बात की. उन्होंने बताया कि पुलिस के पास कुछ विकल्प नहीं थे और जो हुआ उस पर उन्होंने खेद भी जताया था. उन्होंने कहा था, “एक जिम्मेदार सरकार को जो करने की ज़रूरत थी, वह वहां किया गया. कोई भी सरकार ऐसा करेगी. कानून का राज ध्वस्त हो गया था. लेकिन फायरिंग न होती तो बेहतर होता. क्षेत्र में होने वाली हर चीज़ शीर्ष पर बैठे लोगों के पूर्ण नियंत्रण में नहीं है.” पूर्व सीएम ने कहा कि जब गोलीबारी हुई तब वह विधानसभा में थे और बाद में सुना कि 14 लोग मारे गए हैं. उन्होंने कहा, “खूब ख़राब लगलो (मुझे बहुत बुरा लगा).”

1966 में सीपीआई (एम) के प्राथमिक सदस्य के रूप में शुरुआत

बुद्धदेव भट्टाचार्य ने 1966 में सीपीआई (एम) के प्राथमिक सदस्य के रूप में शुरुआत की. कांग्रेस सरकार में अकाल जैसी स्थितियों के खिलाफ पार्टी के खाद्य सुरक्षा आंदोलन में उन्होंने सक्रिय होकर भाग लिया. बाद में वह सीपीआई (एम) की युवा शाखा डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन के राज्य सचिव बने. बाद में इसका डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया में विलय हो गया. वह 1972 में राज्य समिति के लिए चुने गए और 1982 में राज्य सचिवालय का हिस्सा बने.

पहला विधानसभा चुनाव जीतने के बाद ही मंत्री बनाए गए भट्टाचार्य

कोसीपोर-बेलगछिया सीट से अपना पहला विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भट्टाचार्य ने 1977 से 1982 तक सूचना और जनसंपर्क मंत्री के रूप में कार्य किया. 1982 में कोसीपोर सीट से हारने के बाद भट्टाचार्य जादवपुर विधानसभा क्षेत्र में चले गए और 1987 से 2011 तक वहां से जीते. 1987 में उन्हें ज्योति बसु मंत्रिमंडल में सूचना और संस्कृति मंत्री के रूप में शामिल किया गया. उन्होंने बसु के साथ मतभेदों के कारण 1993 में इस्तीफा दे दिया, लेकिन कुछ महीनों के बाद वापस शामिल हो गए.

सीएम बनने के बाद भी दो कमरे के फ्लैट में ही रहा भट्टाचार्य परिवार 

1996 में वह गृह मंत्री बने और 1999 में बसु के बीमार होने पर उन्हें डिप्टी सीएम बनाया गया. बसु के पद छोड़ने के बाद भट्टाचार्य ने 2 नवंबर 2000 को पहली बार सीएम का पद संभाला. 2002 में उन्हें पार्टी के पोलित ब्यूरो के लिए चुना गया. बुद्धदेव भट्टाचार्य भले ही राज्य में शीर्ष पद पर थे, लेकिन उनकी पत्नी मीरा और बेटी सुचेतना कोलकाता के बालीगंज में दो कमरे के अपार्टमेंट में रहती थीं. उसी आवास में परिवार अब भी रहता है.

संस्कृति और साहित्य में गहराई से डूबे भट्टाचार्य ने लिखीं 8 किताबें

बुद्धदेव भट्टाचार्य राजनीतिक व्यक्तित्व के पीछे संस्कृति और साहित्य में गहराई से डूबे हुए एक शख्स थे. राज्य सरकार द्वारा संचालित संस्कृति और सिनेमा केंद्र 'नंदन' के साथ उनका विशेष संबंध था. नंदन ने 1995 से लगातार कोलकाता फिल्म महोत्सव की मेजबानी की है. मुख्यमंत्री बनने के बाद भी भट्टाचार्य को ज्यादातर शाम नंदन में उनके लिए रिजर्व रखे गए कमरे में बंगाली साहित्यिक हस्तियों के साथ बातचीत करते हुए देखा जाता था. उन्होंने लगभग आठ पुस्तकें लिखीं. इनमें कोलंबियाई लेखक गेब्रियल गार्सिया मार्केज़ और रूसी कवि व्लादिमीर मायाकोवस्की की रचनाओं के अनुवाद भी शामिल हैं.

बंगाल में वामपंथियों ने खोई सत्ता, खुद को समेटने लगे भट्टाचार्य

बंगाल में जब वामपंथियों ने सत्ता खो दी और बुद्धदेव भट्टाचार्य विधायक भी नहीं रहे तो उन्होंने सीपीआई (एम) की राजनीति में पीछे हटना शुरू कर दिया. हालांकि वह कुछ समय तक राज्य में सक्रिय रहे, लेकिन उन्होंने पार्टी की राष्ट्रीय बैठकों में भाग नहीं लिया. अप्रैल 2012 में, खराब स्वास्थ्य और आंखों की रोशनी कम होने के कारण के कारण वह केरल के कोझिकोड में आयोजित 20वीं पार्टी कांग्रेस में शामिल नहीं हो सके. उन्होंने स्वास्थ्य के आधार पर पोलित ब्यूरो से मुक्त होने का भी अनुरोध किया और तीन साल बाद 2015 में उन्होंने पोलित ब्यूरो और केंद्रीय समिति दोनों को छोड़ दिया.

लोकसभा चुनाव 2019 में मेगा रैली में कार से भी निकल नहीं पाए

बीमारी के कारण बुद्धदेव भट्टाचार्य ने साल 2018 में राज्य समिति और सचिवालय से भी बाहर निकलने का विकल्प चुना. उनकी सार्वजनिक उपस्थिति दुर्लभ हो गई. हाल के वर्षों में खराब सेहत के कारण वह काफी हद तक अपने अपार्टमेंट तक ही सीमित थे. विधानसभा में 30 सीटों पर सिमट गई थी और लोकसभा चुनाव 2019 में वापसी की उम्मीद कर रही सीपीआई (एम)  ने भट्टाचार्य को ब्रिगेड परेड ग्राउंड में एक मेगा रैली के लिए बुलाया था. हालांकि, वह अपनी कार से बाहर भी नहीं निकल सके.

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बुद्धदेव भट्टाचार्य ने 2022 में पद्म भूषण पुरस्कार लेने से किया इनकार

बुद्धदेव भट्टाचार्य को पश्चिम बंगाल के ऐसे राजनेता के रूप में देखा जाता था जिसकी पर्याप्त सराहना नहीं की गई थी. जनवरी 2022 में, नरेंद्र मोदी सरकार ने भट्टाचार्य के लिए पद्म भूषण सम्मान की घोषणा की. पूर्व सीएम ने एक मीडिया बयान में कहा कि वह इसे स्वीकार नहीं कर सकते. उन्होंने कहा, “मुझे पद्म भूषण पुरस्कार के बारे में कुछ भी पता नहीं है. इस बारे में किसी ने कुछ नहीं कहा. अगर मुझे पद्म भूषण पुरस्कार दिया गया है, तो मैं इसे स्वीकार करने से इनकार करता हूं"

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प्रचार के लिए AI का सहारा, कैसे आम कॉमरेडों से अलग थे बुद्धदेव भट्टाचार्य?

इस साल, लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण से ठीक पहले, सीपीआई (एम) ने प्रचार अभियान में बुद्धदेव भट्टाचार्य के एआई अवतार का सहारा लिया. इसके जरिए उन्होंने पश्चिम बंगाल के लोगों से वामपंथी और धर्मनिरपेक्ष ताकतों को वोट देने की अपील की. हालांकि, पुजारी के घर में पैदा होने और शिक्षक के रूप में करियर की शुरुआत करने के कारण कॉमरेड उन्हें कई मामले में खुद से अलग बताते थे. 

बुद्धदेव भट्टाचार्य की पार्टी के ही कुछ कॉमरेड उन्हें मार्क्सवादी कम और बंगाली ज़्यादा मानते थे. उनके पहनावे और बातचीत के सलीके के कारण लेफ्ट के कई नेता उन्हें भद्रलोक कहा करते थे. आर्थिक उदारवाद लागू करने और पूंजीवाद के साथ तालमेल बिठाने के चलते कुछ कॉमरेड उन्हें 'बंगाली गोर्बाचोव' और देंग भी कहते थे. बुद्धदेव भट्टाचार्य इन सबको पसंद नहीं करते थे. हालांकि, कभी उन्हें खुलकर मना करते हुए भी नहीं देखा गया.

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