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Electoral Bonds Scheme: क्या है संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a), जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने बंद कर दी चुनावी बॉन्‍ड की दुकान

Supreme Court Judgement On Electoral Bonds: चुनावी बॉन्‍ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) का उल्लंघन करती है.

Electoral Bonds Scheme: क्या है संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a), जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने बंद कर दी चुनावी बॉन्‍ड की दुकान
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Deepak Verma|Updated: Feb 15, 2024, 12:49 PM IST

Electoral Bonds Scheme: सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दिया है. अदालत ने कहा कि यह अनुच्छेद 19(1)(a) और सूचना के अधिकार (RTI) का उल्लंघन करती है. देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि काले धन पर नकेल कसने के लिए RTI का अतिक्रमण ठीक नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) से कहा कि वह फौरन चुनावी बॉन्‍ड जारी करना बंद कर दे. चुनावी बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को मिले चंदे की जानकारी भी SBI को देनी होगी. सुप्रीम कोर्ट ने कंपनीज एक्ट की धारा 182 में संशोधन को भी असंवैधानिक करार दिया. SC ने इलेक्‍टोरल बॉन्‍ड स्‍कीम को रद्द करने के लिए अनुच्छेद 19(1)(a) को आधार बनाया. यह प्रावधान भारतीय नागरिकों को मिली 'भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' से संबंधित है. आइए जानते हैं कि संविधान के इस अनुच्छेद में क्‍या-क्‍या प्रावधान हैं.

चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता पर यह फैसला चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच ने सुनाया. CJI के अलावा बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र शामिल रहे. पांचों जजों ने एकमत से इलेक्‍टोरल बॉन्‍ड स्‍कीम को असंवैधानिक बताया है.

संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) क्या है

भारत का संविधान सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की आजादी देता है. यह स्वतंत्रता अनुच्छेद 19(1)(a) में निहित है. संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) कहता है, 'सभी नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा.' मतलब नागरिक अपनी बात खुलकर रख सकते हैं. इसी अधिकार में सूचना का अधिकार भी समाहित है. सुप्रीम कोर्ट ने इसी व्याख्या के आधार पर RTI को मूल अधिकार बताया था.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा

SC ने कहा कि RTI का दायरा केवल सरकारी कामकाज तक सीमित नहीं है, लोकतंत्र में भागीदारी के लिए जरूरी जानकारी भी इसमें शामिल है. सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि वोटर सही फैसला कर सके, इसके लिए उसके पास राजनीतिक पार्टियों की फंडिंग के बारे में जानकारी होनी चाहिए. SC ने कहा कि काले धन पर अंकुश लगाने के मकसद से सूचना के अधिकार का उल्लंघन ठीक नहीं है.

अदालत ने SBI से कहा कि वह 12 अप्रैल 2019 के बाद खरीदे गए इलेक्‍टोरल बॉन्‍ड्स की डीटेल्‍स चुनाव आयोग को सौंपे. उनमें से कौन-कौन से बॉन्‍ड राजनीतिक दलों ने कैश करा लिए हैं, उसकी जानकारी भी देनी होगी. SBI को यह सब कुछ 6 मार्च 2024 तक करना होगा. SBI से मिली जानकारी चुनाव आयोग को अपने पोर्टल पर 13 मार्च, 2024 तक पब्लिश करनी होगी.

क्या थी चुनावी बॉन्‍ड स्‍कीम

केंद्रीय बजट 2017-18 में चुनावी बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को चंदा देने की योजना लाई गई. यह ऐसा बॉन्‍ड है जिसे खरीदने वाले की जानकारी गोपनीय रखी जाती है. जिसके पास यह बॉन्‍ड होता है, वही उसका मालिक होता है. भारतीय नागरिक एक हजार रुपये, ₹10000, ₹100000, ₹1000000 और ₹10000000 तक के कितने भी चुनावी बॉन्ड खरीद सकते थे. राजनीतिक दलों को 15 दिन के भीतर यह बॉन्‍ड कैश कराने पड़ते थे. अगर 15 दिन के भीतर बॉन्‍ड कैश नहीं कराया जाता तो सारी रकम प्रधानमंत्री राहत कोष (PMRF) में चली जाती.


लगभग पांच साल में बेचे गए 16,518.10 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्‍ड (ग्राफिक्‍स: ADR)

इलेक्‍टोरल बॉन्‍ड स्‍कीम के बाद बढ़ी राजनीतिक पार्टियां: ADR

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), जो SC में पक्षकार भी था, ने अक्टूबर 2023 में एक रिपोर्ट जारी की. इसमें बताया कि तब तक PMRF में कुल 23.8869 करोड़ रुपये की राशि के 189 बांड जमा किए गए थे. यानी राजनीतिक दलों ने 99.8268% बॉन्‍ड भुना लिए. ADR के मुताबिक, चुनावी बॉन्‍ड योजना आने के बाद देश में राजनीतिक दलों की संख्या तेजी से बढ़ी है. जनवरी 2017 में, भारत में 1500 राजनीतिक पार्टियां थीं. ECI की ओर से 23 सितंबर 2021 को जारी गजट नोटिफिकेशन में रजिस्टर्ड पार्टियों की संख्या 2,858 बताई गई. इनमें से 2,796 या 97.83% पार्टियां गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियां हैं.

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