First Dalit PM Candidate: 2024 के आम चुनाव से पहले ओबीसी वोटरों को रिझाने की कोशिश हर तरफ से हो रही है. जेडीयू, कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल देशभर में जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं. पिछले दोनों लोकसभा चुनावों में भाजपा ने जिस तरह से ओबीसी वोटरों में पैठ बनाई है, उससे विपक्षी I.N.D.I.A गठबंधन के लिए भी यह अनिवार्य हो गया है. भाजपा इस बार भी उसी एजेंडे पर है. देश में ओबीसी जातियों की आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है. दोनों खेमे को लग रहा है कि यह समुदाय जिधर झुकेगा, जीत पक्की कर देगा. हालांकि कल इंडिया अलायंस की बैठक में अचानक 'दलित कार्ड' फेंका गया. ममता ने खरगे को कन्वेनर बनाने का प्रस्ताव दिया, उन्होंने दलित पीएम कैंडिडेट की भी बात कही. केजरीवाल ने इसका समर्थन कर दिया. अब देशभर में मोदी के सामने खरगे की चर्चा तेज हो गई है.
मोदी vs खरगे
अगर नरेंद्र मोदी को 'पहला ओबीसी' प्रधानमंत्री बताकर भाजपा पूरे समुदाय को साध रही है तो विपक्ष भारत का पहला दलित प्राइम मिनिस्टर वाला नरेटिव तैयार कर अंबेडकरवादी वोटरों तक पहुंचना चाहता है. शायद यही वजह थी कि कल की बैठक में ममता बनर्जी ने 'दलित पीएम' फेस का जिक्र छेड़ दिया. ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, नीतीश कुमार, लालू यादव और दूसरे विपक्षी नेता साथ जरूर आए हैं पर पीएम कैंडिडेट पर अभी आम सहमति नहीं बना पाए. जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं उससे साफ है कि सबका कांग्रेस से छत्तीस का आंकड़ा है. राहुल के नाम के आगे जुड़ा 'गांधी' सब विपक्षी नेताओं को पसंद नहीं है. वैसे भी विपक्ष जानता है कि मोदी अगर गरीबों के मसीहा की छवि बना पाए हैं तो राहुल से मिडिल क्लास खुद को जोड़ नहीं पा रहा है. यहां यह भी बता दें कि देवगौड़ा खुद को देश का पहला ओबीसी पीएम बताते रहे हैं.
राहुल रेस में नहीं?
दरअसल, राहुल गांधी के विरोधी उनकी छवि 'चांदी का चम्मच लेकर आए' वाली बनाते रहे हैं. अगर मोदी का सामना मल्लिकार्जुन खरगे जैसे दलित नेता से होता है तो भाजपा की तरकश के कुछ तीर बेकार चले जाएंगे. न परिवारवाद चलेगा, न एंटी दलित का मुद्दा आएगा, गरीब-वंचित शोषित वाला नरेटिव भी थोड़ा कम चढ़ेगा. यूपी में 21 प्रतिशत दलित आबादी है जबकि बंगाल में 11 प्रतिशत, बिहार में करीब 9 प्रतिशत, तमिलनाडु में करीब 8 प्रतिशत है. 2011 की जनगणना बताती है कि देश में विभिन्न अनुसूचित जातियों की आबादी 21 करोड़ थी. यह आंकड़ा अब बढ़ गया होगा.
जब खरगे कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बने थे तभी राजनीति के कई पंडितों ने विश्लेषण लिखे थे कि अगर विपक्ष के नेता समझदारी दिखाते हैं तो मई में देश को पहला दलित प्राइम मिनिस्टर मिल सकता है. तब कहा गया था कि विपक्ष एकजुट नहीं हो पा रहा क्योंकि कई मुद्दों पर विरोध है. यह भी पता है कि कांग्रेस के अलावा कोई भी दूसरा दल 40 से ज्यादा लोकसभा की सीटें अपने दम पर जीतने की स्थिति में नहीं है. कांग्रेस समर्थकों का भी यही तर्क है कि जब हालात ऐसे हैं तो कोई दूसरा पीएम के लिए दावेदारी कैसे कर सकता है. कल की बैठक से भी साफ हो गया है कि विपक्ष के कुछ नेता कांग्रेस से ही पीएम कैंडिडेट चाहते हैं लेकिन राहुल गांधी नहीं.
राहुल पर खरगे 'बीस'
एक्सपर्ट का मानना है कि राहुल गांधी के नाम पर विपक्षी नेता सहमत नहीं होंगे क्योंकि पार्टियों के अपने कई बुरे अनुभव हैं. वैसे भी गांधी नाम पर सबका राजी होना मुश्किल है जब तक कि कांग्रेस की स्थिति इतनी मजबूत न हो जाए कि क्षेत्रीय दलों को अपना अस्तित्व बचाने के लिए उसके झंडे के नीचे खड़ा होना पड़े. दूसरी तरफ कांग्रेस भी ममता या केजरीवाल के नाम पर कभी सहमत नहीं होगी. एक और महत्वपूर्ण वजह यह है कि राहुल गांधी की 'यात्रा' के बाद भी उनकी स्वीकार्यता मोदी को टक्कर देने लायक नहीं बनी है. एक लाइन में कहें तो भारत का बड़ा तबका राहुल गांधी के लिए नरेंद्र मोदी को छोड़ने के मूड में नहीं दिख रहा है.
ऐसे में कांग्रेस ही नहीं, पूरे विपक्ष को लग रहा है कि मल्लिकार्जुन खरगे का व्यक्तित्व ऐसा है जिस पर मोदी के खिलाफ माहौल बनाया जा सकता है. उनकी छवि बेदाग रही है, हिंदी भी अच्छी बोल लेते हैं. भारत के मिडिल क्लास को खुद से कनेक्ट कर सकते हैं. अगर वह तेजतर्रार वाली छवि न भी बना पाए तो भी एक सुलझे हुए नेता जरूर दिख सकते हैं. अखिलेश-तेजस्वी जैसे नेता यह मानकर चल सकते हैं कि खरगे को पीएम फेस बनाने के बाद भी उनकी चलेगी.