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कैसे लागू हुई थी मंडल कमीशन की सिफारिशें, जिसने बदल दिया आरक्षण का गणित; जानें सबकुछ

मंडल आयोग की रिपोर्ट की 25 साल पुरानी कहानी: 7 अगस्त 1990, यही वो दिन था जब तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने संसद में मंडल आयोग की रिपोर्ट पेश की, जिससे एक ऐसा भूचाल आया जिसने 'पिछड़ों' की एक नई पीढ़ी को भारतीय समाज को आगे कर दिया.

कैसे लागू हुई थी मंडल कमीशन की सिफारिशें, जिसने बदल दिया आरक्षण का गणित; जानें सबकुछ
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Sumit Rai|Updated: Aug 07, 2024, 08:02 AM IST

Mandal Commission Report Story: 1 जनवरी 1979, ये वो दिन है जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल (BP Mandal) को दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग का प्रमुख चुना. इसके करीब 2 साल बाद यानी 31 दिसंबर 1980 को बीपी मंडल ने अपनी रिपोर्ट पेश की. लेकिन, तब तक मोरारजी देसाई सरकार गिर चुकी थी और इंदिरा गांधी सत्ता में आ गई थीं. इंदिरा गांधी और फिर राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान यह रिपोर्ट ठंडे बस्ते में पड़ी रही. 10 साल के लंबे इंतजार के बाद 7 अगस्त 1990 को तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने संसद में घोषणा करते हुए बताया कि उनकी सरकार ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है. इस रिपोर्ट में सभी स्तरों पर ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की गई थी.

मंडल आयोग की रिपोर्ट में क्या था?

मंडल आयोग की रिपोर्ट में बताया गया था कि देश की 52 फीसदी आबादी ओबीसी वर्ग से है. मंडल आयोग ने शुरुआत में इसको आधार बनाकर सरकारी सेवाओं में आरक्षण को इसी हिसाब से रखने का का तर्क था. लेकिन, यह 1963 के एमआर बालाजी बनाम मैसूर राज्य मामले के खिलाफ होता, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के लिए 50 फीसदी की सीमा तय की थी. एससी और एसटी के लिए पहले से 22.5 प्रतिशत आरक्षण था. इस हिसाब से ओबीसी के लिए आरक्षण 27 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती और इसको इसी पर सीमित कर दिया गया. इसके बाद आयोग ने अपनी सिफारिशों में कहा कि ओबीसी वर्ग को सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण दिया जाना चाहिए. आयोग ने इसे प्रमोशन में भी लागू करने की बात कही थी. इसके अलावा एससी-एसटी की तरह ओबीसी को भी उम्र में छूट प्रदान करने की सिफारिश की गई थी. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया था कि सरकार इन सिफारिशों को लागू करने के लिए आवश्यक कानूनी प्रावधान करे.

कैसे लागू हुई थी मंडल कमीशन की सिफारिशें

मंडल आयोग ने 31 दिसंबर 1980 को अपनी रिपोर्ट दे दी थी, लेकिन इसे लागू करना आसान नहीं था. उस समय की सरकारों को इसकी संवेदनशीलता का अहसास था और यहीं कारण है कि मंडल आयोग का गठन करने वाले मोरारजी देसाई सरकार गिरने के बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. अगले 10 साल इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकार रही, लेकिन उन्होंने इस रिपोर्ट पर कोई एक्शन नहीं लिया. साल 1989 के चुनाव से पहले वीपी सिंह ने जनता दल के नाम से अपनी पार्टी बनाई और चुनावी घोषणा पत्र में मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने की बात कही. चुनाव में 197 सीट जीतन के बावजूद राजीव गांधी ने सरकार बनाने से इनकार कर दिया. तब 143 सीट जीतने वाली जनता दल ने बीजेपी और वाम दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई और वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने. प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने 7 अगस्‍त 1990 में मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का ऐलान किया.

सरकार को करना पड़ा विरोध का सामना

वीपी सिंह द्वारा मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने के बाद उनकी सरकार को व्यापक विरोध का सामना करना पड़ा. इसे लागू करने के बाद दिल्ली में ओबीसी कोटे के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए और दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्र राजीव गोस्वामी ने खुद को आग लगी ली, जिसमें वह 50 प्रतिशत तक जल गया. आत्मदाह की कोशिश में वह बच गया, लेकिन चिंगारी भड़क चुकी थी और दिल्ली के अलावा अन्य कई शहरों में युवाओं ने खुद को आग लगा ली.

वीपी सिंह की सरकार गंभीर संकट में थी, लेकिन वह अपने रुख पर अड़े रहे. हालांकि, तब दक्षिण भारत आंदोलन से अछूता रहा, जिसका पिछड़े समुदायों के अधिकारों के लिए राजनीतिक आंदोलनों का एक लंबा इतिहास रहा है. इस बीच सरकार को बाहर से समर्थन देने वाली भाजपा ने राजनीतिक बहस को मंडल से राम मंदिर की ओर मोड़ने का प्रयास किया और लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी रथ यात्रा शुरू कर दी. लेकिन, इसके तुरंत बाद भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया और वीपी सिंह की सरकार गिर गई.

बदल गई देश की राजनीति की दिशा

वीपी सिंह सरकार ने मंडल कमीशन की सिफारिशें तो लागू कर दी थी, लेकिन इसके कार्यान्वयन को आखिरकार इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले में चुनौती दी गई. मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की और ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण को कानूनी तौर पर वैध माना. हालांकि, इसके साथ ही कोर्ट ने शर्तें भी लगा दी और कहा कि आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. इसके साथ ही कोर्ट ने इसे प्रमोशन में लागू करने से भी रोक दिया. इसके अलावा कोर्ट ने समुदाय के संपन्न लोगों को आरक्षण से बाहर रखने के लिए 'क्रीमी लेयर' का कॉन्‍सेप्‍ट भी पेश किया था. मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू होने के बाद देश की राजनीति की पूरी दिशा बदल गई और अब भी चुनाव में आरक्षण की चर्चा होती रहती है.

पहले भी हुआ था पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन

मंडल आयोग से पहले पिछड़ा वर्ग के लिए साल 1953 में भी आयोग का गठन किया गया था. जनवरी 1953 में सरकार ने समाज सुधारक काका कालेलकर की अध्यक्षता में पहला पिछड़ा वर्ग आयोग गठित किया था. आयोग ने मार्च 1955 में अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसमें 2399 पिछड़ी जातियों या समुदायों को सूचीबद्ध किया गया था. इनमें से 837 को 'सबसे पिछड़े' के रूप में वर्गीकृत किया गया था. लेकिन, ये रिपोर्ट कभी लागू नहीं हो पाई.

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