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Modi 3.0: PM मोदी के तीसरे कार्यकाल में भारत का दुनिया में क्या होगा रोल?

Geopolitics in Modi 3.0: अगले पांच साल दुनिया के विभिन्न हिस्सों में भारत के लिए चुनौतियां और अवसर दोनों आएंगे. ऐसे में यह जानना अहम हो जाता है कि भारत के लिए अभी क्या स्थिति है और उसे अगले कुछ सालों में किन-किन चिंताओं पर ध्यान देना होगा.  

Modi 3.0: PM मोदी के तीसरे कार्यकाल में भारत का दुनिया में क्या होगा रोल?
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Sudeep Kumar|Updated: Jun 15, 2024, 12:25 PM IST

Challenges and Opportunities for India: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे में एनडीए की जीत के बाद नरेंद्र मोदी ने बीते रविवार को लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में यह सिर्फ दूसरी बार है जब किसी नेता ने लगातार तीन बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. प्रधानमंत्री मोदी के पहले दो कार्यकाल में भारत ग्लोबल वर्ल्ड में एक अहम किरदार में रहा. 

अब सवाल यह है कि अपने तीसरे कार्यकाल में नरेंद्र मोदी सरकार की विदेश नीति कैसी रह सकती है? हालांक, विदेश मंत्री में बदलाव नहीं होने से व्यापक निरंतरता का संकेत मिलता है. लेकिन बदलती वैश्विक स्थिति और भारत के लिए रणनीतिक जरूरतों के आधार पर कुछ खास क्षेत्रों के लिए एजेंडे का पुनः निर्धारण संभव है.

पड़ोसी देशों को लेकर क्या हो सकता है रवैया?

भारत के सात पड़ोसी देशों के नेता पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेने आए थे. ये देश हैं- बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव, मॉरीशस और सेशेल्स. हालांकि, इस दौरान किसी भी पड़ोसी नेता के साथ कोई द्विपक्षीय बैठक नहीं हुई. भारत ने पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चीन और म्यांमार को आमंत्रित नहीं किया था. 

भारत को पड़ोस में अपनी कूटनीति में निपुण होना होगा और पारस्परिकता पर जोर दिए बिना एकतरफा उदार होना होगा. कई पड़ोसी बार-बार अपनी ताकत दिखाने वाली दबंग भारत के बजाय एक संयमित और संवेदनशील भारत की आशा करते हैं.

पाकिस्तान: 2014 के अपने शपथ ग्रहण समारोह में मोदी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ समेत सार्क देशों के नेताओं को आमंत्रित किया था. 2016 में पठानकोट और उरी में आतंकवादी हमलों से पहले 2014 और 2015 में पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों में उतार-चढ़ाव आया था.

2019 में पुलवामा और बालाकोट हमलों ने भारत में राष्ट्रवादी भावना को बढ़ावा दिया और इसका भाजपा की जीत में अहम योगदान था. लेकिन पाकिस्तान के साथ संबंधों को गहरा झटका लगा. इसके बाद अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर में धारा-370 खत्म करने के बाद दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध कम हो गए. 

इसके बाद पाकिस्तान के भी हालात बदल गए हैं. इमरान खान जो 2019 में प्रधान मंत्री थे, अब वह जेल में हैं. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था गहरे संकट में है. वर्तमान में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ सेना के समर्थन से सत्ता में वापस आए हैं.

केंद्र की मोदी सरकार की कहना है कि पाक समर्थित आतंकवाद से मुकाबला करना भारत की प्राथमिकता है. पिछले नौ वर्षों से भारत की नीति रही है कि आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते. 

अफगानिस्तान: अगस्त 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान की वापसी के बाद से काबुल के साथ कोई राजनयिक संबंध नहीं है. मानवीय सहायता में मदद के लिए सौंपी गई तकनीकी टीम के माध्यम से दोनों देशों के बीच निम्न-स्तरीय जुड़ाव है. हालांकि, दोनों देशों के बीच कामकाजी रिश्ता जारी रहने की संभावना है.

म्यांमार: म्यांमार की सेना ने फरवरी 2021 में तख्तापलट करके सत्ता पर कब्जा कर लिया था.  लेकिन वर्तमान में सेना ने देश के अधिकांश हिस्से पर नियंत्रण खो दिया है. अक्टूबर 2023 में लड़ाई शुरू होने के बाद से म्यांमार की  सेना डिफेंसिव मोड में है. भारतीय रणनीतिक हलकों में यह सुझाव दिया गया है कि सैन्य शासन के पतन की संभावना को देखते हुए भारत को विपक्षी समूहों के साथ बातचीत शुरू करनी चाहिए.

मालदीव: पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू का आना सबसे महत्वपूर्ण था.क्योंकि मुइज्जू के राष्ट्रपति बनने के बाद से दोनों देशों के बीच रिश्तों में खटास आई है. मुइज्जू "इंडिया आउट" के नारे पर सत्ता में आए हैं.

बांग्लादेश: 'घुसपैठियों' को लेकर बयानबाजी ने अक्सर बंग्लादेश के साथ संबंधों में खटास पैदा की है. पीएम मोदी के तीसरे कार्यकाल में सरकार और सत्तारूढ़ दल के सदस्यों का अधिक संयम बरतने की जरूरत है. क्योंकि दोनों देशों का मकसद उग्रवाद, कट्टरपंथ और आतंकवाद से मुकाबला करना है.

भूटान: भारत अपनी पंचवर्षीय योजना, वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज और गेलेफू माइंडफुलनेस सिटी परियोजना में मदद करने के लिए तैयार है. ऐसे में दोनों देशों के बीच बेहतर रिश्ते जारी रहने की उम्मीद है. खासकर तब जब चीन अपनी शर्तों पर भूटान के साथ सीमा पर बातचीत करने की कोशिश कर रहा है. भारत भूटान को अपने पक्ष में करना चाहता है.

नेपाल: नेपाल के साथ भारत का संबंध एक अलग चुनौती पेश करता है. नेपाल में चीन की मजबूत राजनीतिक पकड़ है. ऐसा माना जाता है कि नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली भारत के खिलाफ चीन कार्ड का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं. नेपाल की एकतरफा पुनर्निर्धारित सीमाओं को नेपाली रुपये पर छापने का निर्णय बताता है कि दोनों देशों के बीच रिश्ता नाजुक ही रहने वाला है. 2015 की आर्थिक नाकेबंदी के बाद भारत को नेपाल का दोबारा विश्वास हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी.

श्रीलंका: श्रीलंका को वित्तीय संकट से निपटने में मदद करने के बाद श्रीलंका के लोगों के मन में भारत ने जो सद्भावना हासिल की थी, चुनाव से पहले कच्चातिवू को अनावश्यक रूप से उछालने के बाद वह सहानुभूति कम हुई है.  इस साल के अंत में श्रीलंका में चुनाव होना है. ऐसे में  वित्तीय सहायता के साथ-साथ निवेश के माध्यम से श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था को मजबूत करना भारत के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.

सेशेल्स और मॉरीशस: भारत द्वारा सेशेल्स और मॉरीशस के बंदरगाहों के बुनियादी ढांचे को बेहतर करने में मदद करने की योजिना समुद्री कूटनीति और सुरक्षा प्रयासों का हिस्सा है. मॉरीशस के अगालेगा द्वीप समूह में भारत को कुछ सफलता हासिल हुई है, लेकिन सेशेल्स में अज़म्प्शन द्वीप को विकसित करने में चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.

पश्चिमी देशों के साथ भारत के रिश्ते

पश्चिमी देशों के साथ मोदी सरकार का जुड़ाव पिछली कई सरकारों की तुलना में अधिक लेन-देन वाला रहा है. इसने अमेरिका, यूरोप, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ भी मजबूत रणनीतिक संबंध बनाए हैं. पश्चिमी मीडिया में सरकार की आलोचना के बाद भारत की ओर से आक्रामक प्रतिक्रिया दी गई. इससे यह भी पता चला कि सरकार पश्चिमी देशों में होने वाली टिप्पणियों के प्रति बेहद संवेदनशील है. चुनावी मौसम में अमेरिका और जर्मनी जैसे मित्र देशों के खिलाफ भी भारत ने डेमार्च जारी किए.

अमेरिका के दोनों दलों के सरकार के साथ भारत का बेहतर संबंध रहा है. ऐसे में नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों के नतीजे से रिश्ते प्रभावित होने की उम्मीद नहीं है. भारत अमेरिका के साथ रक्षा और अत्याधुनिक तकनीकी संबंधों को आगे बढ़ाएगी.

ब्रिटेन भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) करने का इच्छुक है. भारत और यूरोपीय संघ भी अपनी अर्थव्यवस्थाओं के पारस्परिक लाभ के लिए एक एफटीए समाप्त करने के इच्छुक हैं.

हालांकि, खालिस्तानी अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नून की हत्या की कथित साजिश पश्चिमी देशों के लिए एक दुखती रग रही है. क्योंकि ये देश भारत को एक लोकतांत्रिक, नियम-कानून का पालन करने वाले देश के रूप में देखता है. अगले सप्ताह अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन भारत आएंगे. सुलविन की भारत यात्रा अमेरिका के साथ राजनयिक संबंधों की ताकत का परीक्षण करेगी. इसके अलावा शायद पन्नून मुद्दे को सुलझाने का एक रास्ता भी निकल सकता है.

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने जब से भारत पर  खालिस्तानी अलगाववादी की हत्या में हाथ होने का आरोप लगाया है. तब से दोनों देशों के रिश्तों में लगातार गिरावाट आ रही है. 2025 में कनाडा होने वाले आम चुनाव तक स्थिति तनावपूर्ण बने रहने की संभावना है. 

वहीं, पश्चिमी देश चाहेगा कि मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में आलोचना और टिप्पणियों को लेकर कम संकोची हो और उनके साथ बेहतर संबंध स्थापित करने और व्यापार करने के लिए तैयार रहे. भारत के दृष्टिकोण से आदर्श स्थिति यह होगी कि अपने घरेलू मामलों पर टीका-टिप्पणी ना करते हुए भारतीय हितों को सुरक्षित रखा जाए और पश्चिमी पूंजी और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाया जाए. इटली में हो रहे जी-7 समिट में पीएम मोदी की भागीदारी इस दिशा में कदमों का संकेत हो सकती है.

भारत के सामने चीन की चुनौती

चीन के साथ सीमा विवाद पांचवे साल में प्रवेश कर रहा है. मोदी के तीसरे कार्यकाल में चीन के साथ सीमा विवाद को सुलझाना सबसे कठिन और पेचीदा चुनौती है. भारत का कहना है कि जब तक सीमा पर स्थिति सामान्य नहीं हो जाती तब तक सब कुछ ठीक नहीं हो सकता.  भारत कंप्लीट डिसइंगेजमेंट और फिर तनाव कम करना चाहता है. सीमा के दोनों ओर से 50-60 हजार सैनिकों और हथियारों को दूर ले जाने में बहुत समय लगेगा.

रूस के साथ संबंध

यूक्रेन में युद्ध के कारण रूस के साथ भारत के संबंधों की कठिन परीक्षा हो रही है. भारक रक्षा जरूरतों और सस्ते तेल के लिए रूस पर निर्भर है. यही वजह है कि पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद रूस कमजोर नहीं हुआ है और इसे युद्ध में प्रबल भूमिका के रूप में देखा जा रहा है.

स्विट्जरलैंड में 15-16 जून को होने वाले सर्वोच्च स्तर के शांति सम्मेलन में भारत की शामिल होने की संभावना नहीं है. क्योंकि इस सम्मेलन में रूस हिस्सा नहीं ले रहा है. लेकिन उम्मीद है कि भारत इस शांति सम्मेलन में अपना आधिकारिक स्तर का प्रतिनिधित्व भेजेगा. शांति के लिए भारत बातचीत और कूटनीति पर जोर देगा.

पश्चिमी एशियाई देशों के साथ भारत का संबंध

मोदी के पहले और दूसरे कार्यकाल में भारत ने सऊदी अरब से लेकर इजराइल, यूएई से लेकर ईरान, कतर से लेकर मिस्र तक के देशों और नेताओं के साथ संबंध बनाए. यह भारत के ऊर्जा सुरक्षा, निवेश और पश्चिमी एशिया में रहने वाले 90 लाख भारतीय प्रवासी के लिए काफी अहम है. इसमें भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC), I2U2, और INSTC जैसे समूह को गेम चेंजर माना जाता है.

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