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इमरजेंसी पर 2 मिनट का मौन.. लोकसभा में विपक्ष के 2 दिन की मेहनत पर फिर गया पानी

Parliament News: यह गजब संयोग था कि जिस समय लोकसभा का ये सत्र चल रहा है उसी समय इमरजेंसी की बरसी भी आ गई. दो दिन से संविधान की कॉपी लेकर आक्रामक दिख रहे विपक्ष को दो मिनट के मौन ने ठंडा कर दिया. यह सत्तापक्ष की तरफ से गजब की गुगली रही.

इमरजेंसी पर 2 मिनट का मौन.. लोकसभा में विपक्ष के 2 दिन की मेहनत पर फिर गया पानी
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Gaurav Prabhat Pandey|Updated: Jun 26, 2024, 08:10 PM IST

Lok Sabha Proceedings: लोकतंत्र के मंदिर संसद में 18वीं लोकसभा के पहले सत्र में गजब का नजारा दिखा. अब चुनाव परिणाम तो आए ही.. ये परिणाम इस बार विपक्ष को मजबूत कर गए. इसका असर विपक्ष के हाव भाव में भी दिख रहा. संसद में भी यही हुआ. मंगलवार को सत्र के पहले दिन सांसदों के शपथ में भी आक्रामक रवैये के साथ विपक्ष संविधान की कॉपी लिए हुए दिखा. बात-बात में संविधान की बात होने लगी. दूसरा दिन आ गया यानि कि बुधवार. इस दिन लोकसभा स्पीकर का ध्वनिमत से चयन हुआ. ओम बिरला फिर से स्पीकर बने. सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की तरफ से बधाइयां आईं.

इमरजेंसी की बरसी पर निंदा प्रस्ताव

वो तस्वीरें भी आईं जब पीएम मोदी और राहुल गांधी दोनों ओम बिरला को उनकी चेयर तक छोड़ने गए. अपने बधाई भाषण में विपक्ष के नेताओं ने ओम बिरला को संविधान याद दिला दिया और पिछली बार की कार्रवाइयों से नाखुशी भी जताई. इधर ओम बिरला मुस्कुराते हुए सबको सुनते रहे. पीएम मोदी भी सबको सुनते रहे. फिर जब ओम बिरला आखिरी में खड़े हुए तो वहीं खेल कर दिया. हुआ यह कि भाषण के बाद उन्होंने इमरजेंसी की बरसी पर एक निंदा प्रस्ताव भी पढ़ दिया.

दो मिनट के मौन ने पानी फेर दिया

ओम बिरला का प्रस्ताव पढ़ते ही विपक्ष की हवाइयां उड़ गईं. राहुल गांधी भौचक्के रह गए. बगल में बैठे अखिलेश यादव सहम गए. राहुल तो कांग्रेस सांसदों के साथ इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए सुनाई दिए लेकिन अखिलेश चुपचाप बैठे रह गए. फिर जब तक ओम बिरला ने निंदा प्रस्ताव पढ़ा.. संसद में शोर मचता रहा. इतना ही नहीं इसके बाद ओम बिरला ने दो मिनट का मौन भी रखा. इस दौरान भी विपक्ष को कुछ नहीं सूझा और वे शोर मचाते रहे. ओम बिरला और सत्ता पक्ष के इस दांव ने और दो मिनट के मौन ने विपक्ष के दो दिन की मेहनत पर फिलहाल पानी फेर दिया. 

निंदा प्रस्ताव में क्या बोले ओम बिरला.. 

असल में साल 1975 में देश में इमरजेंसी लगाया गया था. इमरजेंसी की बरसी पर लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने सदन में आपातकाल पर प्रस्ताव पढ़ा. ओम बिरला ने कहा कि ये सदन 1975 में देश में आपातकाल (इमरजेंसी) लगाने के निर्णय की कड़े शब्दों में निंदा करता है. इसके साथ ही हम उन सभी लोगों की संकल्प शक्ति की सराहना करते हैं, जिन्होंने इमरजेंसी का पुरजोर विरोध किया, अभूतपूर्व संघर्ष किया और भारत के लोकतंत्र की रक्षा का दायित्व निभाया. भारत के इतिहास में 25 जून 1975 के उस दिन को हमेशा एक काले अध्याय के रूप में जाना जाएगा. इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई और बाबा साहब आंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान पर प्रचंड प्रहार किया.

'इंदिरा गांधी द्वारा तानाशाही थोप दी गई'

उन्होंने कहा कि भारत की पहचान पूरी दुनिया में 'लोकतंत्र की जननी' के तौर पर है. भारत में हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों और वाद-संवाद का संवर्धन हुआ, हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों की सुरक्षा की गई, उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया गया. ऐसे भारत पर श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा तानाशाही थोप दी गई, भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचला गया और अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंट दिया गया. उन्होंने कहा कि इमरजेंसी के दौरान भारत के नागरिकों के अधिकार नष्ट कर दिए गए, नागरिकों से उनकी आजादी छीन ली गई. ये वो दौर था जब विपक्ष के नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया, पूरे देश को जेलखाना बना दिया गया था. सरकार ने मीडिया पर अनेक पाबंदियां लगा दी थीं और न्यायपालिका की स्वायत्तता पर भी अंकुश लगा दिया था. इमरजेंसी का वो समय हमारे देश के इतिहास में एक 'अन्याय काल' था, एक काला कालखंड था.

38वां, 39वां, 40वां, 41वां और 42वां संशोधन

उन्होंने कहा कि आपातकाल (इमरजेंसी) लगाने के बाद उस समय की कांग्रेस सरकार ने कई ऐसे निर्णय किए, जिन्होंने हमारे संविधान की भावना को कुचलने का काम किया. क्रूर और निर्दयी मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट (मीसा) में बदलाव करके कांग्रेस पार्टी द्वारा ये सुनिश्चित किया गया कि हमारी अदालतें मीसा के तहत गिरफ्तार लोगों को न्याय नहीं दे पाएं. मीडिया को सच लिखने से रोकने के लिए पार्लियामेंट्री प्रोसिडिंग्स (प्रोटेक्शन ऑफ पब्लिकेशन) रिपील एक्ट, प्रेस काउंसिल (रिपिल) एक्ट और प्रिवेन्शन ऑफ पब्लिकेशन ऑफ ऑब्जेक्शनेबल मैटर एक्ट लाए गए. इस काले कालखंड में ही संविधान में 38वां, 39वां, 40वां, 41वां और 42वां संशोधन किया गया.

उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार द्वारा किए गए इन संशोधनों का लक्ष्य था कि सारी शक्तियां एक व्यक्ति के पास आ जाएं, न्यायपालिका पर नियंत्रण हो और संविधान के मूल सिद्धांत खत्म किए जा सकें. ऐसा कर नागरिकों के अधिकारों का दमन किया गया और लोकतंत्र के सिद्धांतों पर आघात किया गया. इतना ही नहीं, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कमिटेड ब्यूरोक्रेसी और कमिटेड ज्यूडिशियरी की भी बात कही, जो कि उनकी लोकतंत्र विरोधी रवैये का एक उदाहरण है.

1975 से 1977 का वो काला कालखंड

उन्होंने कहा कि इमरजेंसी अपने साथ ऐसी असामाजिक और तानाशाही की भावना से भरी भयंकर कुनीतियां लेकर आई, जिसने गरीबों, दलितों और वंचितों का जीवन तबाह कर दिया. इमरजेंसी के दौरान लोगों को कांग्रेस सरकार द्वारा जबरन थोपी गई अनिवार्य नसबंदी का, शहरों में अतिक्रमण हटाने के नाम पर की गई मनमानी का और सरकार की कुनीतियों का प्रहार झेलना पड़ा. ये सदन उन सभी लोगों के प्रति संवेदना जताना चाहता है. उन्होंने कहा कि 1975 से 1977 का वो काला कालखंड अपने आप में एक ऐसा कालखंड है, जो हमें संविधान के सिद्धांतों, संघीय ढांचे और न्यायिक स्वतंत्रता के महत्व की याद दिलाता है. 

यह कालखंड हमें याद दिलाता है कि कैसे उस समय इन सभी पर हमला किया गया और क्यों इनकी रक्षा आवश्यक है. ऐसे समय में जब हम आपातकाल (इमरजेंसी) के 50वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, ये 18वीं लोकसभा, बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान को बनाए रखने, इसकी रक्षा करने और इसे संरक्षित रखने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराती है. हम भारत में लोकतंत्र के सिद्धांत, देश में कानून का शासन और शक्तियों का विकेंद्रीकरण अक्षुण्ण रखने के लिए भी प्रतिबद्ध हैं. हम संवैधानिक संस्थाओं में भारत के लोगों की आस्था और उनके अभूतपूर्व संघर्ष, जिसके कारण इमरजेंसी का अंत हुआ, और एक बार फिर संवैधानिक शासन की स्थापना हुई, उसकी सराहना करते हैं.

1975 में 26 जून के दिन

उन्होंने कहा कि 1975 में आज 26 जून के दिन ही देश इमरजेंसी की क्रूर सच्चाइयों का सामना करते हुए उठा था. 1975 में आज के ही दिन तब की कैबिनेट ने इमरजेंसी का पोस्ट-फैक्टो रेटिफिकेशन किया था, इस तानाशाही और असंवैधानिक निर्णय पर मुहर लगाई थी. इसलिए अपनी संसदीय प्रणाली और अनगिनत बलिदानों के बाद मिली इस दूसरी आजादी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराने के लिए, आज ये प्रस्ताव पास किया जाना आवश्यक है. हम ये भी मानते हैं कि हमारी युवा पीढ़ी को लोकतंत्र के इस काले अध्याय के बारे में जरूर जानना चाहिए.

उन्होंने आगे कहा कि इमरजेंसी के दौरान, गैर-कानूनी गिरफ्तारियों और सरकारी प्रताड़ना के चलते अनगिनत लोगों को यातनाएं सहनी पड़ीं थीं, उनके परिवार वालों को असीमित कष्ट उठाना पड़ा था. इमरजेंसी ने भारत के कितने ही नागरिकों का जीवन तबाह कर दिया था, कितने ही लोगों की मृत्यु हो गई थी. इमरजेंसी के उस काले कालखंड में, कांग्रेस की तानाशाह सरकार के हाथों अपनी जान गंवाने वाले भारत के ऐसे कर्तव्यनिष्ठ और देश से प्रेम करने वाले नागरिकों की स्मृति में हम दो मिनट का मौन रखते हैं.

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