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कांग्रेस के बराबर वोट फिर भी UP में खाता नहीं खुला, ये हैं BSP की दुर्गति के बड़े कारण

Mayawati Vote Share: 2019 में जहां पार्टी का वोट शेयर 19.2 प्रतिशत था, वो इस चुनाव में घटकर 9.3 प्रतिशत पर आ गया है. हालांकि 2014 में भी मायावती की पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली थी. लेकिन वोट शेयर 19.6 फीसदी से ज्यादा था. 

कांग्रेस के बराबर वोट फिर भी UP में खाता नहीं खुला, ये हैं BSP की दुर्गति के बड़े कारण
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Rachit Kumar|Updated: Jun 05, 2024, 07:00 PM IST

Mayawati BSP Vote Bank: साल 2019 के लोकसभा चुनाव का जब नतीजा आया तो मायावती की बसपा को 10 लोकसभा सीटें मिली थीं. लेकिन महज 5 साल में ही उसका ग्राफ जीरो पर आ गया. ये हाल उस पार्टी का है, जो अतीत में चार बार सरकार बना चुकी है. 

लगातार घटा पार्टी का वोट शेयर

2019 में जहां पार्टी का वोट शेयर 19.2 प्रतिशत था, वो इस चुनाव में घटकर 9.3 प्रतिशत पर आ गया है. हालांकि 2014 में भी मायावती की पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली थी. लेकिन वोट शेयर 19.6 फीसदी से ज्यादा था. बसपा की सबसे बदतर हालत हुई थी 2022 के विधानसभा चुनाव में, जब उसका 12.8 फीसदी तक आ गया. राजनीतिक पंडित मानते हैं कि मायावती के लिए अब भी करीब 10 फीसदी जाटवों ने वोट डाला होगा, जो खुद भी जाटव समाज से आती हैं. गैर जाटव दलित साल 2014 में ही बीजेपी के पक्ष में आ गए थे. साल 2024 में मायावती के हाथ से जाटव वोट भी छिटकता दिख रहा है. 

एक्सपर्ट्स मानते हैं कि विपक्ष का संविधान बचाओ के नैरेटिव ने मायावती का खेल बिगाड़ दिया और उनको यह लगा कि बीएसपी तो जीत नहीं रही है. ऐसे में बसपा के लिए वोट करना उसके लिए फायदे का सौदा नहीं होगा. सियासी पंडितों का मानना है कि भले ही जाटवों के लिए सपा पहली चॉइस नहीं रही हो लेकिन कांग्रेस यूपी में इंडिया अलायंस के तहत सपा के साथ चुनाव लड़ रही थी, ऐसे में लोगों के सामने विकल्प थे. कभी जाटव यूपी में कांग्रेस का वोट बैंक हुआ करते थे. ऐसे में उनका वोट कांग्रेस के साथ चला गया.

जमीन पर कमजोर दिखी बसपा

चूंकि कांग्रेस ने जमीनी स्तर पर खुद को मजबूत किया और बसपा कमजोर नजर दिखी. कांग्रेस के पास एक ही लोकसभा सीट थी, जो बढ़कर अब 6 हो चुकी है. ऐसे में जाटवों ने वोट कांग्रेस को ट्रांसफर हो गया. बसपा की राजनीति को समझने वालों की माने तो मायावती को दलित वोट ट्रांसफर होने का डर था. इस वजह से उन्होंने 2024 के चुनाव में कांग्रेस के साथ हाथ नहीं मिलाया. 

मायावती हमेशा कहती रही हैं कि विपक्षी पार्टियां उसे बीजेपी की बी टीम बताती हैं. इस वजह से मुस्लिम वोट मायावती को नहीं मिलता. ऐसे में इस चुनाव में ना तो मुस्लिम वोट मायावती को मिला और जाटवों ने भी निष्ठा बदल ली तो बसपा के लिए रही-सही जमीन भी चली गई.

जाटव वोटर्स में था खौफ का माहौल

हर चुनाव के साथ बसपा कमजोर नजर आती रही है. इस वजह से जाटव वोटर्स में खौफ का माहौल था और मायावती के कैंपेन के कारण भी वह गुस्से में थे. कई लोग उन उम्मीदवारों से भी खफा नजर आए, जो पार्टी ने खड़े किए थे. 

मायावती ने साल 2024 के चुनाव में किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं किया था. उनका मकसद था दलित वोट बैंक को फिर से अपने साथ मिलाना. उन्होंने 23 ओबीसी, 20 मुस्लिम, 18 ऊंची जाति, 17 दलित और एक सिख को टिकट दिया था. लेकिन इनमें से एक भी अपना खाता नहीं खोल पाया.

कैडर में गया गलत संदेश 

माना जा रहा है कि मायावती के दलित वोट में बड़ी सेंध चंद्रशेखर ने लगाई है. वह नए दलित चेहरा बनकर उभरे हैं. नगीना लोकसभा सीट से वह 5 लाख से ज्यादा वोटों जीते. इसके अलावा मायावती के लिए भतीजे आकाश को उत्तराधिकारी घोषित करना भी पैर पर कुल्हाड़ी मारना जैसा साबित हुआ. इससे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और कैडर के बीच नाराजगी थी. आकाश आनंद ने अपने भाषणों से प्रभाव डालना तो शुरू किया लेकिन मायावती ने उनके पर कतर दिए. इससे भी कार्यकर्ता निराश हो गए.  

क्या रिकवर कर पाएगी बसपा?

मायावती का वोट बैंक इस तरह से सिकुड़ना हैरान करता है. क्योंकि साल 2007 के यूपी विधानसभा चुनावों में बसपा को 30.43 वोट शेयर मिला था और उसने यूपी में अपने दम पर सरकार बनाई थी. 2012 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने 25.95% वोट हासिल कर 80 सीटें जीती थीं. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने 22.23% वोट हासिल कर 19 सीटें जीतीं और 2022 के विधानसभा चुनाव में वोट प्रतिशत घटकर 12.88% रह गया और बीएसपी सिर्फ़ एक सीट जीत पाई.

2004 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी ने 24.67% वोट हासिल कर 19 सीटें जीती थीं. 2009 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी ने 27.42% वोट हासिल कर 20 सीटें पाईं. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी का वोट प्रतिशत घटकर 19.77% रह गया और बीएसपी अपना खाता भी नहीं खोल पाई. 2019 में बीएसपी ने एसपी के साथ गठबंधन में 19.42% वोट हासिल कर 10 सीटें जीतीं. लेकिन अब पार्टी की जो हालत है उस पर उसके लिए मंथन करना जरूरी हो गया है. क्योंकि अब ना तो बसपा का कोई सदस्य लोकसभा है ना ही विधानसभा परिषद में. उसका एक सदस्य राज्यसभा में है और एक यूपी विधानसभा में.

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