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Blog: मैं अयोध्या का रहने वाला हूं.. मेरी अयोध्या को आप एजेंडा मत बनाइए

Ayodhya: अयोध्या को लेकर कुछ चीजें क्लियर होनी चाहिए, खासकर सभी राजनीतिक पार्टियों और उनके कार्यकर्ताओं को तो जरूर. ये किसी एक के लिए नहीं है. अयोध्या एक भावना है.. अयोध्या व्यवहार है.. अयोध्या सतत है.. अयोध्या संदेश है.. अयोध्या सभ्यता है.. अयोध्या संस्कृति है.. अयोध्या संस्कार है.

Blog: मैं अयोध्या का रहने वाला हूं.. मेरी अयोध्या को आप एजेंडा मत बनाइए
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Gaurav Prabhat Pandey|Updated: Jun 27, 2024, 04:31 PM IST

Agenda In Ayodhya: ज्यादा नहीं करीब तेरह-चौदह साल पहले की बात है. हनुमानगढ़ी के बिल्कुल पीछे इमली बगिया में हम रहा करते थे. बताते हैं प्राचीन समय में यहां सिर्फ इमली के बाग हुआ करते थे. कई सौ एकड़ में फैली इमली बगिया एक ऐसी जगह है जहां अब साधु संतों ने अपने सुंदर आवास बनवा रखे हैं. यहां उन्होंने अपने अपने घरों में ऐसे कमरे भी बनवाए हैं जिसे अयोध्या शहर में रहकर पढ़ने वाले लड़कों को किराए पर दे सकें. इनमें से रहने वाले कुछ बच्चे महाराजा स्कूल में पढ़ते थे, कुछ साकेत कॉलेज में जबकि कुछ फैजाबाद के अन्य स्कूलों में पढ़ने जाते थे. मजे की बात यहां आसपास के जिलों से हर जाति हर धर्म के बच्चे मौज में रहा करते थे. शाम को 4 बजे हनुमान गढ़ी में बाजा लग जाता था और कमाल की आरती इमली बगिया सहित आसपास के इलाकों में गूंजने लगती थी. हर कैंपस में संध्या वाली चहल पहल शुरू हो जाती थी.

फिर उसी हनुमान गढ़ी के सामने वाली सड़क से जो सीधा फैजाबाद चौक की तरफ जाती थी, कई बार ऐसा हुआ जब हमने मुहर्रम के दिनों में ताजिया जुलूस में डफली बजाई है. हम बार-बारी से जाते थे और उस जुलूस में मौज काटते थे. ऐसा ही माहौल होली के दिनों में भी होता था. होली में वहां रहने वाले सारे मुस्लिम शामिल होते थे, रंग खेलते थे. घूमघूम कर लोगों से मिलते थे. हमारा गांव जो अयोध्या मुख्य शहर से कई किलोमीटर दूर है. वहां तो होली में मुस्तफा चाचा के बिना ढोल ही नहीं बजती थी, वे ही ढोल बजाते थे. मजे की बात वे साल भर कीर्तन में भी ढोल बजाते रहे.. अब तो बूढ़े हो चले.

अचानक माहौल गरम किसने कर दिया... 

ऐसा ही माहौल हनुमानगढ़ी मंदिर के अलावा अयोध्या के हर बड़े मंदिर के आसपास हुआ करता था. चाहे वो कनक भवन हो.. दशरथ महल हो.. कारसेवकपुरम हो.. छोटी देवकाली हो या अन्य मंदिर हो. अयोध्यावासियों को कभी इससे दिक्कत नहीं हुई. लेकिन पिछले कुछ समय से अचानक माहौल गरम हो गया है. यह बात सही है कि राम मंदिर बनने की शुरुआत हुई.. मंदिर बन भी गया और देश दुनिया से लोग अयोध्या में आने लगे. भीड़ बढ़ गई.. अयोध्या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छा गई. फिर चुनाव भी हुए और एक बीजेपी हार गई. यहां तक भी ठीक था. लकिन इसके बाद जो हुआ वो नहीं होना चाहिए था.

चुनाव के बाद एजेंडा तेज हो गया

ये तो सही है कि पिछले कुछ सालों से जिस अयोध्या में सरकार के आला नेता और अधिकारी आए दिन नजर आते रहे.. अचानक उस अयोध्या से चुनाव के बाद नेताओं ने भी बेरुखी दिखा दी. अयोध्या के लोगों को भी सोशल मीडिया पर गाली दी गई. बॉयकाट की भी धमकी हुई. लेकिन दूसरी तरफ के पार्टियों ने भी अपने एजेंडे को फैलाने में कसर नहीं छोड़ी. एक तरफ के कह रहे हैं कि हमने अयोध्या का कायाकल्प कर दिया तो दूसरी तरफ के लोग कह रहे हैं कि अयोध्या के साथ धोखा हो गया इसलिए अयोध्या के लोगों ने हरवा दिया. 

एजेंडे की दूसरी बानगी देखिए

दूसरी तरफ वालों के एजेंडे की एक बानगी देखिए.. बारिश हुई.. राम मंदिर परिसर में भी पानी गया.. दूसरी पार्टियों के लोगों ने सोशल मीडिया पर हल्ला उड़ा दिया कि राम मंदिर की छत ही टपक रही है. ऐसा नहीं है भाई.. ऐसा कैसे हो सकता है जबकि अभी वहां कुछ काम चल ही रहा है. ऐसे में तो आपको मक्का पर भी सवाल उठाना चाहिए वहां इतने यात्रियों की मौत हुई.. कोई चूं नहीं बोला. ऐसे में तो आपको दुबई पर भी सवाल उठाना चाहिए.. जहां के शेख सलमान दुनिया का सबसे हाइटेक शहर बसा रहे हैं.. जहां की विकास यात्रा आसमान चूमती इमारतों की गवाह है.. वहां इस बार की बारिश में पूरी दुबई ही डूब के कगार पर पहुंच गई.

अयोध्या पर विपक्ष क्यों डफली बजा रहा?

अब जबकि देश में राजनीतिक वातावरण बदल गया है, चुनाव में अयोध्या से विपक्ष जीत गया है तो वो डफली बजा रहा है कि अयोध्या ने पूरे देश को संदेश दे दिया है. ऐसा नहीं है भाई.. अयोध्या ने किसी को कोई संदेश नहीं दिया है. ये समझना जरूरी है कि ये बस चुनाव ही है.. जीत हार तो लगी रहती है. राजनीतिक लाभ-हानि से परे अयोध्या का जर्रा-जर्रा सदियों से लोगों के लिए खुला रहा है. अयोध्या को लेकर जो नई बहस चल रही है वो बंद हो जानी चाहिए. 

बीजेपी भी बंद करे अपनी बेरुखी..

उधर विपक्ष के इतराने के बीच बीजेपी सरकार को भी अयोध्या पर बेरुखी नहीं दिखानी चाहिए. चुनाव परिणाम के बाद अभी तक प्रदेश या केंद्र से बीजेपी का कोई बड़ा नेता अयोध्या नहीं पहुंचा है. अयोध्या में लोगों का कहना है कि अब सरकार ने कई बड़े फैसले कैंसल कर दिए हैं. ये डैमेज कंट्रोल का संदेश देने की कोशिश है लेकिन ऐसे में तो विकास कार्य भी रुक जाएंगे. यहां एक बात समझने की जरूरत है कि चूंकि मंदिर निर्माण का रास्ता सुप्रीम कोर्ट ने दिखाया. सरकार ने बीड़ा उठाया और अब मंदिर बन गया है. तो ऐसे में बिना चुनाव परिणाम की परवाह किए बिना मंदिर का काम और अयोध्या के विकास का काम ना रुके.. यही समझदारी होगी. 

चुनाव तो आते-जाते रहेंगे 

अब अगर बात लोकसभा चुनाव की हो तो हर पार्टी को अपने अपने परिणाम की समीक्षा करनी चाहिए. करेगी ही. लेकिन असली बात ये है कि यह समझना चाहिए कि लोकतंत्र में हार जीत चुनाव का हिस्सा है और बीजेपी के लिए तो अच्छी बात यह है कि वैसे भी उनकी यूपी में सरकार है.. इसलिए अयोध्या और आसपास के इलाकों में लोगों की नारजगी दूर करने का मौका उनके पास अभी भी बरकरार है.

अयोध्या तो सबकी है.. सबकी रहेगी.. 

अब आखिरी में अयोध्या पर अपना-अपना एजेंडा चलाने वालों को ये भी पता होना चाहिए कि अयोध्या तो सबकी रही है और आगे भी सबकी रहेगी. चुनावी इतिहास देखिए पता चल जाएगा. 1985 में बीजेपी ने राम की राजनीति शुरू की तो भी फैजाबाद से कांग्रेस सांसद निर्मल खत्री जीते. 1989 में जब बीजेपी देश में आगे बढ़ी तो भी फैजाबाद सीट से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के मित्रसेन यादव सांसद बने. अयोध्या सीट से जनता दल के जय शंकर पांडेय जीते. हालांकि 1991 में फैजाबाद लोकसभा सीट से बीजेपी के विनय कटियार जीते. 1992 के बाद विधानसभा चुनाव हुआ अयोध्या सीट बीजेपी जीती लेकिन फैजाबाद की बाकी सीटें दूसरी पार्टियों ने जीते. फिर 1996 में फिर से बीजेपी के विनय कटियार जीते. 2004 में मित्रसेन यादव जीते. दो बार फिर बीजेपी जीती तो इस बार सपा ने बाजी मारी. ऐसे में यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि अयोध्या तो सबकी है, सबकी रहेगी.

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