trendingNow11987853
Hindi News >>शिक्षा
Advertisement

महाभारत के भीषण युद्ध में जहां लाखों योद्धा मारे गए, वहां केवल ये 12 योद्धा बचे थे जीवित

Mahabharata War Survivors: महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला था, जिसमें लाखों योद्धाओं ने अपनी जान गवाई थी. लेकिन इस भीषण युद्ध में केवल 12 योद्धा ऐसे थे, जो युद्ध के आखिर में जीवित बच गए थे.

महाभारत के भीषण युद्ध में जहां लाखों योद्धा मारे गए, वहां केवल ये 12 योद्धा बचे थे जीवित
Stop
Kunal Jha|Updated: Dec 01, 2023, 07:00 PM IST

Mahabharata War Survivors: हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत युद्ध करीब 18 दिनों तक चला था. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुरुक्षेत्र में हुए इस युद्ध में लड़ने वाले लाखों योद्धाओं में से केवल 12 योद्धा ही जीवित बचे थे. वहीं, इन 12 योद्धाओं में केवल 3 कौरव ही शामिल हैं.

बता दें कि यह युद्ध लगभग 3.94 मिलियन योद्धाओं द्वारा लड़ा गया था. कुरूक्षेत्र के मैदान में अनेक योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए थे, लेकिन यहां आज हम उन लोगों के बारे में बात कर रहे हैं, जिन्होंने कुरुक्षेत्र युद्ध में सक्रिय रूप से भाग लिया था और वे युद्ध समाप्त होने के बाद जीवित बचे थे.

महाभारत युद्ध में जीवित बचने वाले 12 योद्धा हैं:

1. कृष्ण
कृष्ण स्वयं भगवान हैं. वह अर्जुन के सारथी के रूप में युद्ध में लड़े थे. वह कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान लगातार अर्जुन का मार्गदर्शन करते रहे.

कृष्ण ने अर्जुन को "भगवद गीता" का उपदेश दिया जब उन्होंने अपने ही परिवार के सदस्यों (कौरवों) के खिलाफ लड़ने से इनकार कर दिया था. अर्जुन को कृष्ण ने अपने क्षत्रिय (योद्धा) कर्तव्य का पालन करने और लड़ने व धर्म की स्थापना करने का निर्देश दिया था.

2. पांडव
युद्ध में पांचों पांडव अर्थात् अर्जुन, भीम, युधिष्ठिर, नकुल और सहदेव भी जीवित बचे थे.

बता दें कि पांडवों में अर्जुन, भीम, युधिष्ठिर कुंती और पांडु के पुत्र हैं. जबकि नकुल और सहदेव माद्री और पांडु के पुत्र थे. दरअसल, पांडु की दो पत्नियां थीं, कुंती और माद्री.

3. युयुत्सु
युयुत्सु धृतराष्ट्र का एकमात्र पुत्र है, जो युद्ध में जीवित बचा था. युयुत्सु गांधारी की दासी सुघड़ा/सावली से धृतराष्ट्र के पुत्र हैं.

युयुत्सु का जन्म अन्य कौरवों के समय ही हुआ था. अतः वह अन्य कौरवों की ही आयु का था. वह कुरूक्षेत्र युद्ध में जीवित बचे योद्धाओं में से एक था.

युयुत्सु का नाम इसलिए प्रसिद्ध है, क्योंकि उसने सदाचार का मार्ग चुना था. कौरव होने के बावजूद वह पांडवों की ओर से लड़ा था. वह एकमात्र कौरव है, जो पांडवों के लिए लड़े था.

36 वर्षों से अधिक समय तक हस्तिनापुर पर शासन करने के बाद, पांडवों ने दुनिया को त्यागने और स्वर्ग की ओर अपनी यात्रा शुरू करने का फैसला किया था. हालांकि, इससे पहले उन्होंने युयुत्सु को राज्य का पर्यवेक्षक (Supervisor) बना दिया था.

4. सात्यकि
सात्यकि यादवों के वृषि वंश से हैं, जिनसे कृष्ण भी संबंधित हैं. वह खुद को अर्जुन का शिष्य और कृष्ण के प्रति समर्पित मानते हैं.

उन्होंने पांडवों की ओर से लड़ाई लड़ी थी, जबकि कृष्ण ने कौरवों को यादव सेना देने का वादा किया था.

5. कृतवर्मा
कृतवर्मा यादव वंश के दो महत्वपूर्ण योद्धाओं में से एक हैं. जहां सात्यकि पांडवों में शामिल हो गए, वहीं कृतवर्मा कौरवों में शामिल हो गए थे और यादव सेना का नेतृत्व कर रहे थे.

वह धृष्टद्युम्न और शिखंडी के साथ द्रौपदी के पांच बेटों (प्रत्येक पांडव के साथ एक) को मारने में अश्वत्थामा की मदद भी करता है.

6. अश्वत्थामा
अश्वत्थामा द्रोणाचार्य और कृपी (कृपाचार्य की बहन) का पुत्र था. वह अपने पिता के साथ कौरवों की ओर से लड़ा था.

चूंकि वह चिरंजीवी पैदा हुए थे, इसलिए उन्हें मारना या हराना किसी के लिए भी लगभग असंभव था. इसीलिए वह कुरूक्षेत्र युद्ध में बचा रहा.

उसे रात्रि के समय द्रौपदी के पांच पुत्रों की हत्या का पाप भी लगा था और इसलिए कृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया था कि वह 3000 वर्षों तक अपनी चोटों से खून और पीप बहता हुआ जंगलों में घूमता रहेगा और मौत के लिए चिल्लाता रहेगा.

ऐसा माना जाता है कि वह आज भी पृथ्वी पर भारत में नर्मदा नदी के आसपास विचरण कर रहा है.

7. कृपाचार्य
कृपाचार्य पांडवों और कौरवों दोनों के गुरु हैं. उनकी बहन का विवाह द्रोण (या द्रोणाचार्य) से हुआ था. वह भी अश्वत्थामा की तरह आठ चिरंजीवियों में से एक हैं.

वह अश्वत्थामा और वृषकेतु सहित केवल तीन कौरवों में से एक हैं जो युद्ध में जीवित बचे थे.

8. वृषकेतु
वृषकेतु कर्ण के नौ पुत्रों में से एक है. वह कर्ण का एकमात्र पुत्र है, जो युद्ध में जीवित बचा था. वह कौरवों की ओर से लड़ा था.

हालांकि, बाद में, अर्जुन को पता चला कि कर्ण उसका असली बड़ा भाई है और उसने ही उसे मार डाला है, तो वह अपने कार्यों के लिए खुद को दोषी महसूस करने लगता है.

इसलिए अर्जुन ने वृषकेतु को अपनी सुरक्षा में ले लिया था. युद्ध के बाद वृषकेतु पांडवों के करीब आ गया था.

युद्ध के बाद उन्होंने कई लड़ाइयों में भाग भी लिया. हालांकि, बाद में अश्वमेध यज्ञ के दौरान अर्जुन के पुत्र बभ्रुवाहन ने उसका वध कर दिया था.

Read More
{}{}