trendingNow11987606
Hindi News >>शिक्षा
Advertisement

पिता के हत्यारों के सजा दिलाने के लिए बेटी बनी IAS अफसर, कातिलों को सलाखों के पीछे भेजकर लिया दम

IAS Kinjal Singh: किंजल जब केवल ढाई साल की थीं, तब उनके पिता की एक फेक एंकाउंटर में उनके साथियों द्वारा ही हत्या कर दी गई थी. अपने पिता को न्याय दिलाने के लिए ही किंजल आईएएस ऑफिसर बनीं. पिता को न्याय दिलाने में किंजल को 31 साल का समय लगा.

पिता के हत्यारों के सजा दिलाने के लिए बेटी बनी IAS अफसर, कातिलों को सलाखों के पीछे भेजकर लिया दम
Stop
Kunal Jha|Updated: Dec 01, 2023, 04:12 PM IST

IAS Kinjal Singh Success Story: आज हम एक ऐसी आईएएस ऑफिसर की सफलता के बारे में जानेंगे, जिन्होंने सिविल सेवा में कदम अपने पिता का सपना पूरा करने और अपने पिता के हत्यारों को सजा दिलाने के लिए रखा था. 

दरअसल, हम बात कर रहे हैं आईएएस ऑफिसर किंजल सिंह की, जो 5 जनवरी, 1982 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में जन्मी थी. किंजल जब केवल ढाई महीने की थीं, तब उनके पिता, केपी सिंह, जो एक डिप्टी सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस थे, उनकी उनके सहयोगियों ने लगभग 35 साल पहले उत्तर प्रदेश के गोंडा में एक फर्जी एनकाउंटर में हत्या कर दी थी.

तब से, किंजल को अपने पिता के लिए न्याय मांगने के लिए नियमित रूप से अपनी मां के साथ अपने होम टाउन से दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ता था.

उसके पिता की हत्या तब कर दी गई जब मुख्य साजिशकर्ता-सरोज को एहसास हुआ कि एक पुलिस अधिकारी के रूप में उसके कुकर्मों को केपी सिंह द्वारा उजागर किया जा सकता है. बता दें कि केपी सिंह ईमानदार पुलिस अफसर थे और भ्रष्टाचार के खिलाफ थे. दोषी पुलिस अधिकारी, जिसके खिलाफ रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के कई मामले लंबित थे, और अन्य लोगों ने केपी सिंह को आपराधिक गतिविधियों की निगरानी के बहाने माधवपुर जाने के लिए मजबूर किया. वहां पहुंचने पर, जब केपी सिंह ने दरवाजे पर दस्तक दी, लेकिन वहां कोई नहीं आया, तो वह पीछे हट गए और सरोज की ओर देखने लगे. फिर सरोज ने उनकी छाती पर अचानक कई गोलियां चला दी. इसके बाद केपी सिंह को अस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया. इस फर्जी मुठभेड़ में करीब 12 अन्य ग्रामीणों की भी हत्या कर दी गई थी.

इसके बाद, केपी सिंह की पत्नी विभा ने एक मजबूत और अकेली मां के रूप में किंजल और उनकी बहन की शिक्षा का पूरा भार उठाया और अपने पति को न्याय दिलाने के लिए बहादुरी से लड़ाई भी लड़ी. न्याय की यह तलाश अगले 31 वर्षों तक जारी रही जब तक कि अंततः उन्हें न्याय नहीं मिल गया.

अपने पिता को दुखद रूप से खोने और दिल्ली में अदालती सुनवाई के लिए रोजाना आने-जाने का इंतजाब करने के सदमे के बावजूद, किंजल ने कड़ी मेहनत से पढ़ाई की और दिल्ली के प्रतिष्ठित लेडी श्री राम कॉलेज में दाखिला लिया.

लेकिन जल्द ही उनके जीवन में एक और घटना घटी, जब उनकी मां को कैंसर हो गया. बीमारी से काफी लड़ाई के बाद, साल 2004 में उनकी मृत्यु हो गई. उनके अंतिम क्षणों में, उनकी बेटियों ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे आईएएस अधिकारी बनकर और अपने पिता की मृत्यु के लिए न्याय पाकर उनका सपना पूरा करेंगी.

अपने माता-पिता के बारे में बात करते हुए किंजल ने कहा, "मुझे अपने पिता पर गर्व है, जो एक ईमानदार अधिकारी थे और मेरी मां जो एक मजबूत और अकेली पेरेंट साबित हुईं और एक साथ ही वह एक मजबूत विधवा थीं, जो अपने पति के साथ हुए अन्याय के खिलाफ खड़ी हुई."

अपनी मां के निधन के बाद, किंजल कॉलेज में अपनी फाइनल परीक्षा देने के लिए लौट आईं और दिल्ली विश्वविद्यालय में टॉप किया. इसके बाद उन्होंने अपनी छोटी बहन प्रांजल सिंह को भी दिल्ली बुला लिया. दोनों बहनों ने मिलकर अपने पिता के आईएएस अधिकारी बनने के प्रबल सपने को पूरा करने की एक और महत्वपूर्ण यात्रा शुरू की.

उन्होंने ईमानदारी से यूपीएससी परीक्षा की तैयारी पर अपना ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया. अटूट मेहनत और दृढ़ संकल्प के साथ, किंजल को साल 2008 में उनके दूसरे प्रयास में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में ऑल इंडिया 25वीं रैंक हासिल हुई, जिसके बाद वह आईएएस (IAS) के पद के लिए चुनी गईं. वहीं, प्रांजल ने भी 252वीं रैंक के साथ इस परीक्षा को पास किया और अब वह एक आईआरएस (IRS) अधिकारी हैं.

इसके बाद किंजल ने अपने पिता को न्याय दिलाने और उनकी हत्या के पीछे के दोषियों को गिरफ्तार कराने की ठानी. उनके दृढ़ संकल्प ने पूरी न्याय प्रणाली को हिलाकर रख दिया और अंततः उनके पक्ष में ही फैसला आया. साल 2013 में, न्याय के लिए उनकी लड़ाई के 31 साल बाद, लखनऊ में सीबीआई की विशेष अदालत ने उनके पिता डीएसपी केपी सिंह की हत्या के सभी 18 आरोपियों को सजा सुनाई.

इस जीत के बारे में बात करते हुए किंजल ने खुशी जताते हुए कहा, "जब मेरे पिता की हत्या हुई थी तब मैं मुश्किल से ढाई महीने की थी. मेरे पास उसकी कोई यादें नहीं हैं. लेकिन मुझे याद है कि कैसे मेरी मां विभा ने सभी बाधाओं के बावजूद न्याय के लिए अपना संघर्ष जारी रखा, जब तक कि 2004 में कैंसर से उनकी मृत्यु नहीं हो गई. अगर वह आज जीवित होती, तो मुझे यकीन है कि वह इस पल को जरूर जीतीं."

सेवा में रहते हुए किंजल पहले लखीमपुर खीरी और सीतापुर की डीएम रह चुकी हैं. इसी साल उन्हें उत्तर प्रदेश के मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट का डीजी नियुक्त किया गया है.

वह अपनी बहन के साथ उन असंख्य लड़कियों के लिए प्रेरणा हैं, जो विपरीत परिस्थितियों में भी कुछ बड़ा करना चाहती हैं.

Read More
{}{}