Teach Kids How To Read: छोटे बच्चे जब बोलना शुरू करते हैं तो उनकी तुतलाती जबान में आधे वाक्य भी बड़े मीठे लगते हैं. कहा जाता है कि 2 साल की उम्र तक बच्चे जो सीखते हैं बड़े होने के बाद उतनी तेजी से नहीं सीख पाते. ऐसे में छोटे बच्चों से ढेर सारी बातें करना चाहिए और उनके साथ वक्त बिताना चाहिए. इससे बच्चे जल्दी बोलने लगते हैं. साथ ही उनका उच्चारण भी बहुत अच्छा होता है. आगे चलकर उनकी रीडिंग स्किल भी अच्छी होती है. ऐसे में उनसे ज्यादा से ज्यादा बात करने से उनका शब्द भंडार में इजाफा होता है और आइक्यू लेवल भी तेजी से बढ़ता है.
दिमाग तेजी से विकास करता है.
वहीं, एक स्टडी के मुताबिक जिन बच्चों से उनके 18 से 24 महीने की उम्र तक लाड़-प्यार के साथ ही उन्हें भरपूर वक्त दिया गया और उनके साथ खूब बातें की गईं तो ऐसे बच्चों का दिमाग ज्यादा तेजी से विकास करता है. स्कूल जाने से पहले परिवार अपने बच्चों का खास ख्याल रखें और बच्चे को अच्छी परवरिश दें, जिसमें उन्हें अक्षर ज्ञान देने के साथ-साथ बोलने की आदत भी डाली जाए.
परिवार होता है बच्चों का पहला शिक्षक
माता-पिता और परिवार के सदस्यों से बच्चों को बहुत कुछ से बच्चे बहुत कुछ सीखते हैं. माता-पिता बच्चों के पहले शिक्षक होते हैं. एनाटॉमिक, साइकोलॉजिकल और जीन स्टडी के मुताबिक बच्चों का दिमाग 2 साल तक काफी हद तक विकसित हो जाता है. वो अपने आसपास की चीजों को समझने लगते हैं. इस स्टडी से यह भी पता चला है कि 6 साल की उम्र तक बच्चे के बौद्धिक विकास के लिए उसका परिवार और स्कूल दोनों की बराबर की भागीदारी होती है.
गिरता जा रहा बच्चों की शिक्षा का स्तर
वहीं, नेशनल एसेसमेंट ऑफ एजुकेशनल प्रोग्रेस रिपोर्ट में यह बात निकलकर सामने आई है कि अमेरिका के बच्चे बुक्स पढ़ने में बहुत ही कमजोर हैं. उन्हें शब्दों के उच्चारण में भी कठिनाई आ रही है. कोरोना काल के दौरान अकेलेपन ने उनके लिए और भी मुश्किलें खड़ी कर दी है. हालांकि, इसके लिए केवल कोरोना जिम्मेदार नहीं है, क्यों कि वहां चौथी ग्रेट तक के स्टूडेंट्स भी बहुत मुश्किल से बुक्स पढ़ पा रहे हैं.
सरकार ने बच्चों की पढ़ाई के लिए उठाए कई कदम
शिक्षा के स्तर में गिरावट आने के कारण सरकार ने बच्चों की पढ़ाई के लिए कई कदम उठाए हैं. रीडिंग कैरिकुलम में बदलाव किए गए हैं. टीचर्स की ट्रेनिंग कराने के साथ ही बच्चों के माता-पिता को अलर्ट किया जा रहा है. जानकारी के मुताबिक अमेरिका अपनी जीडीपी का केवल 0.0 3 प्रतिशत बच्चों की शिक्षा पर खर्च कर रहा है, जो रोमानिया और साइप्रस जैसे देशों के बराबर है. जबकि, आइसलैंड और स्वीडन जैसे देश बच्चों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देते हैं. वह अपनी जीडीपी का 1.5 प्रतिशत से ज्यादा खर्च बच्चों की शिक्षा पर करते हैं.
बच्चे देश का भविष्य होते हैं, उन्हें समझदार और लायक बनाने में जितना पेरेंट्स का योगदान होना चाहिए उनका ही सरकार का भी होना जरूरी है, तभी तो देश का भविष्य बेहतर हो सकेगा.
अगली पीढ़ी समझदार बने इसलिए उठाने होंगे सख्त कदम
बच्चे के जन्म के बाद पेरेंट्स को लंबी अवधि के लिए पेड पैरेंटल लीव दी जाए.
छोटे बच्चों की परवरिश के लिए पेरेंट्स को दी जाए ट्रेनिंग .
छोटे बच्चों के परिवार को टैक्स में छूट देकर उन्हें प्रोत्साहित किया जा सकता है.
सरकार को ऐसा इंतजाम करना होगा कि छोटे बच्चों को घर में बेहतर शिक्षा मिल सके.