trendingNow11700147
Hindi News >>सिनेमा
Advertisement

Ek Din Ek Film: आज तक नहीं बनी ऐसी दूसरी फिल्म; सुना तो बहुत होगा इसके बारे में, यहां देखिए

Yaadein: फिल्म मेकिंग टीम वर्क है. इसे बनाने में एक साथ कई लोग लगते हैं. पर्दे पर भी और पर्दे के पीछे भी. लेकिन आपने सुनील दत्त की फिल्म यादें के बारे में जरूर सुना होगा, जिसमें पूरी कहानी में सिर्फ एक ही व्यक्ति नजर आता है. कोई दूसरा नहीं. यह ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है. जानिए क्या है खास इसमें...  

Ek Din Ek Film: आज तक नहीं बनी ऐसी दूसरी फिल्म; सुना तो बहुत होगा इसके बारे में, यहां देखिए
Stop
Ravi Buley|Updated: May 17, 2023, 10:36 PM IST

Sunil Dutt Film: यूं तो हिंदी फिल्मों में निर्माता-निर्देशकों ने तमाम तरह के प्रयोग किए हैं, लेकिन सुनील दत्त द्वारा 1964 में बनाई फिल्म यादें एक दुर्लभ सिनेमा है. इस फिल्म को 60 साल होने जा रहे हैं, परंतु यादें के बाद किसी बड़े एक्टर-डायरेक्टर ने ऐसी फिल्म बनाने की कोशिश नहीं की. यादें हिंदी ही नहीं बल्कि विश्व सिनेमा की उन चुनिंदा फिल्मों में शामिल है, जिनमें सिर्फ एक ही कलाकार पर्दे पर नजर आता है. गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स की फ्यूएस्ट एक्टर इन अ नरेटिव फिल्म कैटेगरी में यादें को जगह दी गई है. फिल्म में सुनील दत्त एकमात्र एक्टर थे. उन्होंने ही फिल्म का निर्माण और निर्देशन किया था.

अंत भला तो सब भला
फिल्म एक ऐसे पति, अनिल मेहरा (सुनील दत्त) की कहानी है जिसके विवाहेतर संबंध हैं. एक दिन जब वह घर लौटता है तो पता चलता है कि उसकी पत्नी, प्रिया और बच्चा उसे छोड़कर चले गए हैं. इसके बाद वह अपराधबोध से ग्रस्त होकर उदास हो जाता है. पुराने दिनों की यादें उसे घेरती जाती है और कभी वह खुद तो कभी घर की चीजों-तस्वीरों, खिलौनों से बातें करने लगता है. उसका अपराधबोध गहरा होता जाता है और इसी मानसिक स्थिति में वह आत्महत्या का प्रयास करता है. लेकिन तभी उसकी पत्नी और बेटा लौट आते हैं. पत्नी उसे बचा लेती है. फिल्म के आखिर में परिवार एक हो जाता है. अंत भला तो सब भला, वाली कहावत यहां लागू होती है. यादें तो उस साल की बेस्ट फीचर फिल्म (हिंदी) का नेशनल अवार्ड मिला था. वहीं बेस्ट सिनेमैटोग्राफी और बेस्ट साउंड के फिल्मफेयर अवार्ड इसने जीते थे.

दर्शक से सीधी बात
यादें एक अंधेरी, बरसात भरी रात में शुरू होकर खत्म होती है. जहां हीरो अपने जीवन की उन घटनाओं को याद करता है, जिसके कारण उसका परिवार बिखर गया. यहां घटनाक्रम फ्लैशबैक में मुड़ता है, जहां हम हीरो और उसकी पत्नी की बातचीत भी सुनते हैं. जो उनके जीवन के अच्छे दिनों को सामने लाती है. फिल्म के शुरूआती हिस्से में सिर्फ डायलॉग्स सुनाई देते हैं. लेकिन धीरे-धीरे फिल्म विजुअली अतीत में जाने लगती है. लेकिन अतीत में भी सिर्फ हीरो दिखाई देता है. बाकी पात्र नहीं दिखते. कैमरा हीरो के ही सामने होता है और देखते हैं कि वही जैसे कैमरे से बात कर रहा. ऐसे में फिल्म देखते हुए लगता है कि हीरो सीधे दर्शक से मुखातिब है.

एक बड़ा जोखिम
हालांकि करीब 60 साल पुरानी इस फिल्म को देखते हुए आप कुछ बातों से असहमत हो सकते हैं क्योंकि यहां नायिका का किरदार पूरी तरह से घरेलू और पतिव्रता पत्नी तथा ममतामयी मां का है. इसके अलावा उसकी कोई और पहचान ही नहीं है. यहां तक कि अंत में जब वह पति के पास लौटती है तो सबसे पहले उससे माफी मांगती है कि वह उसे और घर को छोड़कर चली गई थी. वह सोचती है कि उसने अपने घर या शादी से बाहर निकलकर बहुत बड़ी गलती की है. भले ही उसका पति व्यभिचारी है. परंतु उसकी कोई गलती नहीं. इसी तरह से कुछ दृश्यों में आपको लगेगा कि ड्रामा बहुत ज्यादा है. इन बातों के बावजूद यादें देखने लायक है. इसका कैमरावर्क, डायरेक्शन और एक रचनात्मक प्रयोग. जो किसी जोखिम से कम नहीं है. आज जबकि बॉलीवुड में अकूत धन है, कहानी पर जोखिम लेने वाले निर्माता-निर्देशक-एक्टर लगभग खत्म हो चुके हैं. यह फिल्म आप यूट्यूब पर फ्री में देख सकते हैं.

Read More
{}{}