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Ek Din Ek Film: 12 घंटे में तैयार हो गई थी इस फिल्म की स्क्रिप्ट, हमेशा रही शो मैन के दिल के करीब

Raj Kapoor Films: राज कपूर हिंदी फिल्मों के पहले शो मैन थे. उन्होंने वही सिनेमा बनाया, जो सही लगा. उन्होंने फिल्म बिजनेस में जोखिम भी लिए और नतीजा यह हुआ कि कई बार आर्थिक नुकसान झेला. जागते रहो उनकी ऐसी ही फिल्म है, जो सिनेमाघरों में नहीं चली. परंतु हिंदी सिनेमा की यादगार फिल्मों में इसे रखा जाता है.  

Ek Din Ek Film: 12 घंटे में तैयार हो गई थी इस फिल्म की स्क्रिप्ट, हमेशा रही शो मैन के दिल के करीब
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Ravi Buley|Updated: Apr 13, 2023, 05:53 PM IST

Jagte Raho: कम लोग जानते हैं कि बॉलीवुड के कपूर परिवार का कलकत्ता से भी संबंध रहा है. पृथ्वीराज कपूर (Prithviraj Kapoor) वहां न्यू थिएटर्स से जुड़े थे. कपूर परिवार कालीघाट के नजदीक हाजरा रोड पर रहता था. राज कपूर (Raj Kapoor) ने वहां सेंट जेवियर्स स्कूल में पढ़ाई की. राज कपूर और शम्मी कपूर (Shammi Kapoor) ने जहां इस शहर में एक अर्सा गुजारा, वहीं शशि कपूर (Shashi Kapoor) का जन्म कलकत्ता में ही हुआ था. यह 1930 के दशक की बात थी. मगर 1940 के दशक में कपूर परिवार मुंबई आ चुका था और राज कपूर यहां आरके स्टूडियो को खड़ा करने और जमाने की तैयारी कर रहे थे. वहीं कलकत्ता में एक्टर-डायरेक्टर शंभू मित्र खुद को जमा रहे थे. शंभू मित्र राइटर-डायरेक्टर के.ए. अब्बास से रंगमंच के माध्यम से जुड़े थे. अब्बास के साथ काम करते हुए उनका राज कपूर से परिचय हुआ. अब्बास ने राज कपूर के लिए अवारा (1951) से हिना तक (1991) तक कई फिल्में लिखीं.

दो भाषाएं, एक फिल्म
शंभू मित्र जब 1950 के दशक में मुंबई में अपने एक नाटक को लेकर आए, तो उनकी राज कपूर से मुलाकात हुई. तब तक राज कपूर सोशलिस्ट अंदाज वाली श्री 420 (Shree 420) और बूट पॉलिश (Boot Polish) जैसी फिल्में बना चुके थे. शंभू मित्र और राज कपूर के बीच आगे मिलकर कुछ तरह की फिल्म बनाने पर बातचीत हुई. तब शंभू और उनके दोस्त अमित मोइत्रा ने मात्र 12 घंटे में एक स्क्रिप्ट लिख दी. स्क्रिप्ट सुनकर राज कपूर ने कहा कि मैं इस डायरेक्ट करूंगा और आप इसमें एक्टिंग करें. शंभू मित्र ने कहा कि उल्टा करते हैं. आप एक्टिंग करें और मैं डायरेक्ट करूंगा. तय हुआ कि फिल्म दो भाषाओं में बनेगीः हिंदी और बंगाली.

समाज को दिखाया आईना
फैसला हुआ कि शंभू मित्र और अमित मोइत्रा मिलकर फिल्में डायरेक्ट करेंगे. आरके बैनर्स तले फिल्म प्रोड्यूस की जाएगी. के.ए. अब्बास ने स्क्रिप्ट को कुछ और पॉलिश किया. हिंदी में फिल्म का नाम रखा गया, जागते रहो (1956). बंगाली में फिल्म थी, एक दिन रात्रि. दोनों में लीड एक्टर राज कपूर थे. दोनों वर्जन लगभग समान थे. फिल्म एक सीधे-सरल गांव के किसान की कहानी थी, जो एक दिन शहर में आ जाता है. वह सड़कों पर भटकते हुए पानी की तलाश कर रहा है, ताकि प्यास बुझा सके. लेकिन इसे शहर में अजीबोगरीब लोग मिलते हैं और एक इमारत में उस चोर समझ लिया जाता है. भीड़ उसकी जान के पीछे लगी है. उस दौर में देश की आजादी को एक दशक पूरा हो रहा था और इस फिल्म के बहाने सत्ता, व्यवस्था और समाज में फैले भ्रष्टाचार और दोहरे चरित्र की कलई खोली गई थी. स्क्रीन प्ले सीधा सरल था. सलिल चौधरी ने संगीत दिया था और हिंदी में शैलेंद्र तथा प्रेम धवन ने गीत लिखे थे.

नहीं बदला कुछ खास
जागते रहो आज भी समाज की हकीकत से रू-ब-रू कराने वाली फिल्म है. आपको लगेगा कि कुछ खास नहीं बदला है. सत्ता, व्यवस्था और समाज का चरित्र वही है. फिल्म में अपने दौर के दिग्ग्ज एक्टर मोतीलाल (Actor Motilal) पर फिल्माया गीत जिंदगी ख्वाब है... आज भी सुना जाता है. भारत में फिल्म ने अच्छा बिजनेस नहीं किया, परंतु विदेशों में इसने अच्छी कमाई की और कुछ पुरस्कार भी इसे मिले. राज कपूर उस दौर में रूस में बहुत लोकप्रिय थे और यह फिल्म वहां बड़ी हिट रही. लेकिन की कॉमर्शियल नाकामी के बाद शंभू मित्र ने खुद को फिल्म निर्देशन से अलग कर लिया. इसके बाद उन्होंने सिर्फ एक बंगाली फिल्म डायरेक्ट की थी, शुभ विवाह. जागते रहो को राज कपूर हमेशा अपने दिल के बहुत करीब मानते रहे. फिल्म को आप यूट्यूब, एमएक्स प्लेयर या जियो सिनेमा पर फ्री देख सकते हैं.

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