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Ek Din Ek Film: फाइटिंग सीन में चली गई थीं इस डायरेक्टर की आंखें, फिर मिली जब रोशनी तो बनाई नवरंग

Film Navrang: एक समय आज की तरह धड़ल्ले से फिल्में नहीं बनती थीं. योजना और सोच के साथ उन्हें बनाया जाता था. अपने समय से आगे के फिल्ममेकर कहे जाने वाले वी.शांताराम की फिल्मों को आप इसी श्रेणी में रख सकते हैं. उनकी फिल्म नवरंग आज भी याद की और खूब देखी जाती है. कैसे बनी यह फिल्म, जानिए...  

Ek Din Ek Film: फाइटिंग सीन में चली गई थीं इस डायरेक्टर की आंखें, फिर मिली जब रोशनी तो बनाई नवरंग
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Ravi Buley|Updated: Mar 07, 2023, 11:30 PM IST

V.Shantaram: दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित वी.शांताराम (1901-1990) का सिनेमा बताता है कि वह अपने समय से आगे के फिल्मकार थे. वी.शांताराम ब्लैक एंड व्हाइट दौर के मेकर थे, लेकिन जीवन में हुए एक हादसे के बाद उन्होंने रंगीन फिल्म बनाई. नाम दिया, नवरंग (1959). नवरंग एक क्लासिक है, जिसका गीत-संगीत-नृत्य आज भी बेमिसाल माना जाता है. 1957 में वी.शांताराम की फिल्म आई थी, दो आंखें बारह हाथ. कई इतिहासकार इसे हिंदी की ऑल टाइम ग्रेट फिल्मों में भी शामिल करते हैं. यह अपराधियों के सुधार तथा हृदय परिवर्तन की कहानी थी. जिसमें वी.शांताराम और संध्या थे. फिल्म का एक गाना, ऐ मालिक तेरे बंदे हम... आज भी दिल को छूता है. कई स्कूलों में इसे प्रार्थना की तरह भी गाया जाता रहा है.

बिखरे रंग-बिरंगे फूल
दो आंखें बारह हाथ ऐसे जेलर की कहानी थी, जो इंसान की अच्छाई में भरोसा करता है और अपने जोखिम पर बारह खूंखार कैदियों को खुली जेल में रखता है. उसे विश्वास है कि इन्होंने परिस्थितिवश अपराध किए हैं. ये सुधर जाएंगे. इसी फिल्म के क्लाइमेक्स सीन में वी.शांताराम और एक सांड की लड़ाई दिखाई गई थी. शूटिंग के दौरान शांताराम की आंखें सांड के सींग लगने की वजह से बुरी तरह जख्मी हो गई थीं. डॉक्टरों ने तत्काल ऑपरेशन करके आंखें बचाई. मगर महीनों तक उनकी आंखों पर पट्टी बंधी रही. तब एक्ट्रेस संध्या ने चौबीसों घंटे साथ रह कर उनकी सेवा की. जिस दिन वी.शांताराम की आंखों से पट्टी हटाई गई तो संध्या ने पूरे कमरे को रंग-बिरंगे फूलों से सजा रखा था. फूलों से सजे कमरे को देख कर शांताराम ने कहा कि यह तो नवरंग. उन्होंने नवरंग नाम से फिल्म बनाने का फैसला किया.

अरे जा रे हट नटखट...
नवरंग एक कवि दिवाकर की कहानी थी, जो पत्नी जमुना से बहुत प्यार करता है मगर वह अपनी प्रेरणा के रूप में ख्वाबों में एक तस्वीर बुनता है. जिसे वह मोहिनी नाम देता है. जमुना को लगता है कि दिवाकर अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को छोड़कर मोहिनी के खयालों में डूब कर कविता करता रहता है. जिससे न केवल उसकी नौकरी छूट जाती है, बल्कि उसकी आर्थिक स्थिति भी खराब होती जाती है. नतीजतन जमुना उसके बच्चे को लेकर उसे छोड़ जाती है. मोहिनी कौन है, यही अंत में सामने आता है. फिल्म में महिपाल तथा संध्या ने मुख्य भूमिकाएं निभाई थीं. होली आ रही है और हर होली पर इस फिल्म का गाना, अरे जा रे हट नटखट... खूब बजता है. यह फिल्म आप यूट्यूब पर देख सकते हैं.

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