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Ek din Ek film: राजा हरिश्चंद्र थी देश की पहली फीचर फिल्म, इसका हुआ था रीमेक लेकिन फिर...

Dadasaheb Phalke: दादासाहेब फाल्के को देश में सिनेमा का जनक माना जाता है. पारसी थियेटर के अंदाज में बनी इस फिल्म से शुरू हुआ सफर, आज 110 साल पूरे कर रहा है. आज फिल्मों के रीमेक की भी खूब बात होती है. फाल्के ने ही पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र का चार साल बाद रीमेक किया था, मगर...  

Ek din Ek film: राजा हरिश्चंद्र थी देश की पहली फीचर फिल्म, इसका हुआ था रीमेक लेकिन फिर...
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Ravi Buley|Updated: Mar 17, 2023, 09:53 PM IST

First Indian Film: रोचक बात यह है कि जिन्हें शुरुआती हिंदी फिल्में कहा जाता है, वे वास्तव में मूक फिल्में थीं! भारतीय फिल्मों का इतिहास बताता है कि देश में यूं तो दादा साहेब फाल्के से पहले भी कुछ लोग कैमरे का इस्तेमाल करके विज्ञापन फिल्में बनाते हुए चलते-फिरते दृश्य या छोटी-छोटी फिल्में बना रहे थे, मगर पहली फीचर फिल्म फाल्के ने बनाई. नाम था, राजा हरिश्चंद्र. 1913 में, लगभग 110 साल पहले. करीब 3700 फीट लंबाई की राजा हरिश्चंद्र को सिने-जानकार तथा इतिहासकार भारत की पहली फीचर फिल्म मानते हैं. आज यह पूरी फिल्म को उपलब्ध नहीं है, मगर इसमें से करीब 1400 फीट लंबाई की फिल्म मिलती है.

लगा दी जमा पूंजी
दादासाहेब फाल्के ने 1910 में मुंबई में एक अमेरिकी डॉक्युमेंट्री देखी थी, द लाइट ऑफ क्राइस्ट. इसे देखकर उन्हें फिल्म बनाने की प्रेरणा मिली. तीन साल बाद उन्होंने खुद अपनी फिल्म बनाई. इसके लिए अपनी सारी जमा पूंजी खर्च कर दी. मुंबई के कोरोनेशन सिनेमैटोग्राफ थियेटर में राजा हरिश्चंद्र का पहला शो दो अप्रैल 1913 को हुआ और अगले दिन से इसकी स्क्रिनिंग दर्शकों के लिए शुरू कर दी गई, जिसके टिकट रखे गए. यह फिल्म महाभारत में मिलने वाली राजा हरिश्चंद्र की कथा पर आधारित थी. जिसमें अयोध्या के सूर्यवंशी राजा हरिश्चंद्र से महर्षि विश्वामित्र कहते हैं पिछली रात सपने में तुमने अपना राज्य मुझे दान कर दिया था. अब मैं राज्य को लेने आया हूं. महर्षि को राजा अपना राज्य देकर पत्नी और पुत्र समेत चले जाते हैं और वर्षों तक कष्ट उठाते हैं. अंतः में उन्हें राज्य वापस मिल जाता है.

नहीं मिली एक्ट्रेस तो...
दादा साहेब फाल्के ने फिल्म बनाने के लिए मुंबई के दादर में स्टूडियो बनाया था. पूरी ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म में घटनाक्रम ऐसे चलता है, जैसे किरदार नाटक के मंच पर आते-जाते हैं. फिल्म में राजा हरिश्चंद्र की भूमिका दत्तात्रेय दामोदर डबके ने निभाई थी, जबकि रानी तरामती का रोल निभाने के लिए निर्देशक दादासाहेब फाल्के को कोई अभिनेत्री नहीं मिली, तब एक होटल में काम करने वाले युवक अन्ना सालुंके को तारामती बनाया. इसके बाद सालुंके ने कई शुरुआती फिल्मों में स्त्री पात्र निभाए और एक सिनेमैटोग्राफर के रूप में भी काम किया. फाल्के की पहली फिल्म सात महीने 21 दिनों में पूरी हो सकी. राजा हरिश्चंद्र को उस दौर में तारीफ मिली और आर्थिक कामयाबी भी. इन दिनों रीमेक फिल्मों पर खूब बात होती है. तमाम फिल्मों की रीमेक होता है. फाल्के ने 1917 में राजा हरिश्चंद्र का रीमेक किया था. फिल्म का नाम था, सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र. मगर बाद में यह फिल्म आग में जलकर राख हो गई. अब यह नहीं मिलती.

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