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Lok Sabha Chunav: ओडिशा में क्यों होते-होते रह गया भाजपा-बीजद गठबंधन, लोकसभा पर कैसे भारी पड़ा विधानसभा चुनाव का गणित?

BJP Rethink Over BJD Tie-Up: भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर शुरू में धैर्य बनाए रखा, लेकिन आखिरकार शीर्ष नेतृत्व को अपने राज्य यूनिट की बात सुननी पड़ी. क्योंकि पिछले अक्टूबर से ही भगवा पार्टी ओडिशा विधानसभा चुनाव 2024 को लेकर भी सर्वेक्षण कर रही है.

Lok Sabha Chunav: ओडिशा में क्यों होते-होते रह गया भाजपा-बीजद गठबंधन, लोकसभा पर कैसे भारी पड़ा विधानसभा चुनाव का गणित?
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Keshav Kumar|Updated: Mar 24, 2024, 02:18 PM IST

Odisha Politics News: भारतीय जनता पार्टी ने आखिरकार यह आधिकारिक घोषणा कर दी है कि ओडिशा में लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनाव को अकेले लड़ेगी. ओडिशा में भुवनेश्वर और पुरी जैसे कुछ लोकसभा सीटों पर जारी चर्चा को छोड़कर भाजपा-बीजद के बीच लोकसभा चुनाव 2024 की डील लगभग तय हो गई थी. हालांकि, भाजपा की ओडिशा इकाई विधानसभा चुनाव में सीट-बंटवारे समझौते पर फिर से बातचीत करने की मांग कर रही थी.

गठबंधन के पुराने फॉर्मूले पर भाजपा राजी, बीजद का इनकार

भाजपा शीर्ष नेतृत्व को ओडिशा यूनिट की ओर से लगातार की जा रही मांग पर विचार करना पड़ा और यह भाजपा-बीजद गठबंधन फाइनल होने में बाधा बन गई. जबकि विधानसभा चुनाव को लेकर एक समझौता हुआ था कि भाजपा 47 सीटों पर और बीजद 100 सीटों पर लड़ेगी. दूसरी ओर, ओडिशा भाजपा इस बात पर अड़ी थी कि वे उस फॉर्मूले पर फिर से बातचीत करेंगे जब दोनों दल गठबंधन में थे. 

भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को माननी पड़ी राज्य यूनिट की बात

हालांकि, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने शुरू में उन्हें धैर्य रखने के लिए कहा, लेकिन आखिरकार राज्य नेतृत्व की बात सुननी पड़ी. क्योंकि भगवा पार्टी पिछले अक्टूबर से ओडिशा में अपने पक्ष में सर्वेक्षण भी कर रही है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, पता चला है कि अब तक ऐसे कम से कम चार सर्वे हो चुके हैं. 2023 की सर्दियों में पहले सर्वेक्षण से पता चला कि अगर भाजपा अकेले चुनाव लड़ती है तो वह लोकसभा में केवल आठ सीटें और ओडिशा विधानसभा चुनाव में 32 सीटें जीत पाएगी. 

4 महीने में भाजपा ने ओडिशा में करवाए 3 और सर्वे

उसके बाद  से, ओडिशा में कम से कम तीन और सर्वेक्षण हुए हैं जो भगवा पार्टी के पक्ष में धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़ते रुझान दिखाने वाले हैं. सूत्रों का कहना है कि सबसे ताजा सर्वे के अनुसार, अगर भाजपा अकेले लड़ने का फैसला करती है तो उसे लोकसभा में 17 सीटें और विधानसभा में 70 सीटें मिलेंगी. भाजपा के एक हाई लेवल सूत्र ने कहा, "जब भाजपा को अपने दम पर 70 विधानसभा सीटें जीतने का अनुमान है तो 47 सीटों पर लड़ना समझदारी नहीं होगी."

क्या रहा बीजद- भाजपा गठबंधन का डील-ब्रेकर

बीजद के साथ भाजपा की सीट-बंटवारे की बातचीत के अनुसार दोनों दल इस बात पर सहमत हुए कि भाजपा ओडिशा की कुल 21 लोकसभा सीटों में से 14 और 147 विधानसभा सीटों में से 47 पर लड़ेगी. हालांकि, भाजपा को जब एहसास हुआ कि वह लोकसभा में अपने दम पर तय सीटों से अधिक सीटें जीत सकती है तो यह विधानसभा चुनाव के लिए 100-47 सीट-बंटवारे का समझौता डील-ब्रेकर साबित हुआ.

बातचीत की टेबल पर वापस नहीं जाएगा बीजद

भाजपा के ओडिशा प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल और उपाध्यक्ष पृथ्वीराज हरिचरण की दलीलें भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को समझ में आने लगीं.  दूसरी ओर, दोनों पक्षों के बीच "सैद्धांतिक रूप से" समझौता हो जाने के बाद बीजद ने तय किया कि वह बातचीत की टेबल पर वापस नहीं जाएगा. हालांकि, लोकसभा की सीट-बंटवारे का समझौता ज्यादा अड़चन वाला मुद्दा नहीं था, लेकिन भुवनेश्वर और पुरी सीटें असली बाधा थीं.

भुवनेश्वर सीट छोड़ने पर राजी था बीजद

भाजपा की अपराजिता सारंगी ने 2019 में भुवनेश्वर लोकसभा सीट जीती थीं. जिसे उन्होंने 1998 के बाद से लगातार पांच बार जीता. सूत्रों का कहना है कि नवीन पटनायक ने अमित शाह से बातचीत के लिए अपने निकटतम सहयोगी वीके पांडियन और प्रणब प्रकाश दास को 7 मार्च को एक चार्टर्ड प्लेन से दिल्ली भेजा था. इसके बाद बीजद ने इसे छोड़ने पर सहमति व्यक्त की. सूत्रों का कहना है कि अगले दिन बीजद की ओर से संदेश दिया गया कि भाजपा भुवनेश्वर को बरकरार रख सकती है.

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पुरी लोकसभा सीट पर भी फंसा था पेंच

भाजपा सूत्र ने कहा, “लोकसभा चुनाव 2024 में ओडिशा में बातचीत में अहम मुद्दा पुरी सीट रही, जिसे हम पिछली बार 11,714 वोटों के मामूली अंतर से हार गए थे. लेकिन बीजेडी पुरी को जाने देने के लिए तैयार नहीं थी. विधानसभा सीट-बंटवारे का समझौता डील-ब्रेकर था. क्योंकि यह भाजपा के हित में नहीं था. बीजेडी के लिए दोबारा बातचीत का सवाल ही नहीं उठता. वहीं, हमारे लिए अब सिर्फ 47 सीटों पर ही लड़ना मुमकिन नहीं था. इसलिए हमने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया.'' 

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