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पहले राउंड की काउंसलिंग के बाद करीब 75 फीसदी सरकारी MBBS सीटें खाली

MBBS में एडम‍िशन के ल‍िए पहले राउंड की काउंसल‍िंग खत्‍म हो चुकी है. पहले राउंड की काउंसल‍िंंग के बाद अब सरकारी कॉलेजों में 75 फीसदी सीटें बची हुई हैं, ज‍िसके ल‍िए अगले राउंड की काउंसल‍िंग जल्‍द ही शुरू की जाएगी.   

पहले राउंड की काउंसलिंग के बाद करीब 75 फीसदी सरकारी MBBS सीटें खाली
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Vandanaa Bharti|Updated: Sep 10, 2024, 10:32 AM IST

MBBS Admission 2024: डायरेक्‍टरोट जनरल ऑफ हेल्‍थ सर्व‍िसेज हर साल एमबीबीएस में एडम‍िशन के ल‍िए काउंसल‍िंग आयोज‍ित करता है और इस बार पहले राउंड के बाद करीब 75 फीसदी सीटें खाली हैं. आंकडों की मानें तो पहले दौर के बाद देश भर के सरकारी कॉलेजों में ऑल इंड‍िया कोटा MBBS की हर चार में से तीन सीटें खाली हैं. इन छात्रों ने "फ्री एग्जिट" का ऑप्‍शन चुना है और वे राज्य या केंद्रीय कोटे के तहत काउंसलिंग के अगले दौर में फिर से आवेदन कर सकते हैं.   

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अंडरग्रेजुएट मेडिकल सीटों पर एडम‍िशन के लिए काउंसलिंग एक मेडिकल काउंसलिंग समिति द्वारा ऑनलाइन आयोजित की जाती है. हर साल, राज्य भारत कोटे के जरिये एडम‍िशन के लिए राज्य द्वारा चलाए जाने वाले मेडिकल कॉलेजों से 15% एमबीबीएस सीटें सरेंडर करते हैं. तमिलनाडु में, सरेंडर की गई 771 सीटों में से 597 (77%) खाली हैं. चेन्नई, मदुरै और कोयंबटूर के प्रीमियम सरकारी मेडिकल कॉलेजों में भी सीटें खाली हैं.

मेडिकल कॉलेजों में शामिल होने वाले 174 छात्रों में से केवल 38 ने अपनी सीटें बरकरार रखी हैं. बाकी 136 ने अपनी पसंद के दूसरे कॉलेज में अपग्रेड करने की मांग की है. अगर उन्हें प्लेसमेंट मिल जाता है तो इन छात्रों को आर2 में उनकी पसंद के कॉलेज में भेज दिया जाएगा. देश भर में सरकारी कॉलेजों में 7918 में से 5768 सीटें खाली हैं. 2150 उम्मीदवारों ने उन्हें अलॉटेड सीटों में शामिल होने के लिए 1530 ने अपग्रेड का ऑप्‍शन चुना है.

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AIQ के साथ-साथ समिति, केंद्रीय संस्थानों, केंद्रीय और डीम्ड विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए काउंसलिंग आयोजित करती है. डीम्ड विश्वविद्यालयों में, जहां पूरे कोर्स की फीस 80 लाख से 1.5 करोड़ के बीच है, लगभग 67% सीटें भरी गईं. डेटा से पता चला कि AIIMS और JIPMER सहित केंद्रीय संस्थानों/विश्वविद्यालयों में MBBS की 14% सीटें और ESIC मेडिकल कॉलेजों में 11% सीटें खाली थीं. 

डीम्ड यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने वाले लोगों में से बड़ी संख्‍या में छात्र दूसरे विश्वविद्यालयों का विकल्प नहीं चुनता है. ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि जो छात्र जानते हैं कि उन्हें सरकारी या स्व-वित्तपोषित कॉलेजों में सीटें नहीं मिल सकती हैं, उन्होंने डीम्ड यूनिवर्सिटी में ही रहने का फैसला किया है. साथ ही, डीम्ड यूनिवर्सिटी सहित सभी कॉलेजों में कट-ऑफ बढ़ गया है. 

जिन छात्रों ने AIQ सीटें नहीं लीं, वे राज्य और केंद्रीय दोनों कोटे में दूसरे दौर के लिए आवेदन कर सकते हैं. सवाल ये उठ रहा है क‍ि जो छात्र खुद अपनी पसंद से कॉलेज चुनते हैं, वह एडम‍िशन लेने के बाद सीटें क्‍यों छोड़ना चाहते हैं और क्‍या उन्‍हें ऐसा करने देना चाह‍िए.  

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