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TISS ने 4 कैंपस के 100 से ज्यादा कर्मचारियों को एक झटके में निकाला, ये प्रोफेसर 10-15 साल से यहां कर रहे थे काम

TISS: टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज ने शुक्रवार को अपने चार परिसरों से बिना किसी सूचना के 100 से ज्यादा कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया है. इसमें 55 फैकल्टी मेंबर्स और करीब 60 नॉन-टीचिंग स्टाफ शामिल हैं.  

TISS ने 4 कैंपस के 100 से ज्यादा कर्मचारियों को एक झटके में निकाला, ये प्रोफेसर 10-15 साल से यहां कर रहे थे काम
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Arti Azad|Updated: Jun 30, 2024, 02:28 PM IST

Tata Institute of Social Sciences: टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज ने शुक्रवार को अपने चार परिसरों से बिना किसी सूचना के 100 से ज्यादा कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया है. इन कर्मचारियों में कुछ एक दशक से भी ज्यादा समय से संस्थान में काम कर रहे थे. सभी संविदा कर्मचारी थे और उनकी बर्खास्तगी का कारण टाटा एजुकेशन ट्रस्ट से अनुदान प्राप्त न होना बताया जा रहा है, जो उनकी सैलरी की फंडिग कर रहा था.  

इन कैंपस से निकाले कर्मचारी
बर्खास्त किए गए टीचिंग स्टाफ में से 20 मुंबई, 15 हैदराबाद से, 14 गुवाहाटी और 6 तुलजापुर कैंपस से हैं. TISS कैंपस में बाकी का टीचिंग स्टाफ विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) पेरोल पर परमानेंट फैकल्टी मेंबर हैं.  

फैकल्टी मेंबर ने इसे यूजीसी नियमों में बदलाव से जोड़ा है, जिसने पिछले साल जून में केंद्र से 50 प्रतिशत से ज्यादा फंडिंग प्राप्त करने वाले अन्य डीम्ड-टू-यूनिवर्सिटीज के साथ TISS को केंद्र सरकार के नियुक्तियों के दायरे में ला दिया. हालांकि, TISS ने दोनों घटनाओं के बीच किसी भी तरह के संबंध को खारिज कर दिया है.

नहीं मिला नोटिस पीरियड
TISS गुवाहाटी की एक फैकल्टी मेंबर ने मीडिया को बताया, "हमारा एनुएल कॉन्ट्रैक्ट वास्तव में मई में समाप्त हो गया था, लेकिन इस महीने की शुरुआत में हमें एक ईमेल मिला जिसमें हमसे टाटा ट्रस्ट की फंडिंग अपडेटेड होने तक संस्थान का काम जारी रखने का अनुरोध किया गया था. इसलिए लगा कि कॉन्ट्रैक्ट रिनेवल किया जाएगा. कल तक हममें से ज्यादातर लोग अपने ऑनलाइन एडमिशन पर काम कर रहे थे और शाम तक हमें यह लेटर मिल गया. मैंने यहां 11 साल दिए हैं और हम कुछ समय से लंबे कॉन्ट्रैक्ट की मांग कर रहे थे. हमारे कॉन्ट्रैक्ट में कहा गया है, लेकिन हमें एक महीने की नोटिस पीरियड भी नहीं दी गई है. हमें अपने जून की सैलरी क्लेम करने के लिए नो-ड्यूज फॉर्म भरने के लिए सिर्फ दो दिन का समय दिया गया है."

ऐसे निकाले जाने का नहीं था जरा भी अंदाजा 
गुवाहाटी परिसर के एक फैकल्टी मेंबर ने कहा, "कल एमए प्रवेश का आखिरी दिन था और हम सभी लोग 31 मई से ऑफिशियल कॉन्ट्रैक्ट नहीं होने के बावजूद उस प्रक्रिया में शामिल थे. सभी फैकल्टी मैंबर्स ने नए कोर्स को डेवलप करने के लिए काम किया और आगामी सेमेस्टर के लिए सिलेबस अलॉट किए गए. हमें इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि वे हमें दिए गए कमिटमेंट का सम्मान नहीं करेंगे."

निकाले गए लोग सालों से कर रहे थे यहां काम
मुंबई के एक फैकल्टी मेंबर का कहना है, "ये सभी पद टाटा एजुकेशन ट्रस्ट की फंडिंग के आधार पर TISS द्वारा संचालित विभिन्न स्कूलों और सेंटर्स के तहत बनाए गए थे. बर्खास्त किए गए ज्यादातर लोग पिछले 10-15 सालों से यहां काम कर रहे हैं, उनका कहना है कि बिना कोई विकल्प तैयार किए इतनी बड़ी संख्या में कर्मचारियों की मनमाने ढंग से बर्खास्तगी के बाद संस्थान कोर्स संचालित करने की योजना कैसे बना रहा है?"

शनिवार को TISS टीचर्स एसोसिएशन ने इस मामले पर चर्चा के लिए एक जरूरी बैठक की. संस्थान एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक उसने पिछले 6 महीनों में कई बार टाटा एजुकेशन ट्रस्ट से संपर्क किया है. प्रशासन को अनुदान जारी रखने के लिए एक प्रपोजल देना जरूरी था. 

कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर मनोज तिवारी ने कहा, "संस्था पहले ही टाटा एजुकेशन ट्रस्ट को लिख चुकी है. इस मामले को आगे बढ़ाने के लिए एक कमेटी बनाई गई है. अगर अनुदान मिलता है तो इसे वापस किया जा सकता है, लेकिन स्थिति में बदलाव न होने पर कोई विकल्प नहीं है. संस्थान को कोर्सेस चलाने के लिए वैकल्पिक तरीके खोजने होंगे."

इस प्रपोजल को तैयार करने की है योजना
प्रशासन के एक सदस्य का कहना है कि यह प्रस्ताव रखने का योजना है कि समान फैकल्टी मेंबर्स घंटे के आधार पर काम करें, ताकि टीचिंग का काम जारी रखा जा सके. इसके साथ ही रेगूलर अपॉइंमेंट के लिए नोटिफिकेशन जारी करने के लिए जरूरी पदों का पूरा रोस्टर भी तैयार किया जा सके. 

TISS में काम करने के लिए दूसरे अच्छे ऑफर्स ठुकराए
मुंबई में TISS के एक सीनियर ऑफिसर ने कहा, "सभी प्रभावित लोग टाटा एजुकेशन ट्रस्ट के पेरोल पर थे. सरकार ने उन्हें समाहित करने से इनकार कर दिया और ट्रस्ट ने अपना पल्ला झाड़ लिया है. निकाले गए फैकल्टी मेंबर्स केवल नेट क्वालिफाईड पीएचडी स्कॉलर नहीं थे, बल्कि टाटा एजुकेशन ट्रस्ट के एक हाईली रिस्पेक्टेड पैनल द्वारा चुने गए लोग भी थे. इनमें से कई प्रोफेसर्स ने दिल्ली और अन्य महानगरीय शहरों की प्राइवेट यूनिवर्सिटीज के आकर्षक प्रपोजल को ठुकरा दिया था." 

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