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Success Story: इंजीनियरिंग कर बन गए कबाड़ी वाले; बस में बैठे-बैठे आया एक आइडिया, जिसने बदला दो युवाओं का नसीब

Success Story: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल जो अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है.  यहां के दो युवाओं की कहानी आज पूरे देश के लोगों को इंस्पायर कर रही है, जिन्होंने अपने कबाड़ के स्टार्टअप के दम पर करोड़ों का कारोबार खड़ा कर लिया. 

Success Story: इंजीनियरिंग कर बन गए कबाड़ी वाले; बस में बैठे-बैठे आया एक आइडिया, जिसने बदला दो युवाओं का नसीब
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Arti Azad|Updated: Jun 02, 2024, 09:57 AM IST

Success Story Of The Kabadiwala: यह सुनकर ही अजीब लगेगा कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके दो युवा 'कबाड़ीवाला' बन गए, लेकिन ऐसा हुआ है और उन्होंने एक नहीं कई लोगों को अपनी तरह बना दिया. आज हम सफलता की कहानी में ऐसे दो युवाओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने कुछ अलग पर काम करने वाले लोगों को मोटिवेशन दी है. 

हम यहां 'द कबाड़ीवाला' स्टार्टअप के फाउंडर्स के बारे में बात कर रहे हैं . नाम सुनकर तो आप समझ ही गए होंगे कि हम कबाड़ से जुड़े काम के बारे में बात कर रहे हैं.  आइए जानते हैं कौन हैं कबाड़ीवाला...

जीरो से शुरुआत कर दोनों सीखते गए
साल 2014 में आईटी इंजीनियर अनुराग असाटी और कवींद्र रघुवंशी ने 'द कबाड़ीवाला' स्टार्टअप शुरू किया.  इन दोनों ने कड़ी मेहनत करके एक वेबसाइट तो बना ली, लेकिन इनके पास काम का कोई एक्सपीरियंस नहीं था, दोनों ने खुद लोगों से कबाड़ लेना शुरू किया. इसके बाद उन्हें कबाड़ लेने के ऑर्डर मिलने लगे और बस इसी दिन का तो उन्हें इंतजार था. धीरे-धीरे उनकी मेहनत ने असर दिखाना शुरू किया और उनकी किस्मत बदल गई. इन दोनों युवाओं के आइडिा पर मुंबई की इन्वेस्टर फर्म ने भरोसा दिखाया और इस तरह 15 करोड़ रुपये की बड़ी फंडिंग मिली. 

एक आइडिया ने बदली किस्मत
एक समय ऐसा भी था जब अनुराग के पास कभी कॉलेज की फीस जमा करने तक के पैसे नहीं थे, लेकिन बस में बैठे-बैठे आए एक आइडिया ने उनकी किस्मत ही बदल दी.  एक दोपहर जब अनुराग कॉलेज से लौट रहे थे, तब रास्ते में कबाड़ी का ठेला दिख कर विचार आया कि हमेशा हमें कबाड़ी वाले का इंतजार करना पड़ता है, उसके आने तक भर में कबाड़ सड़ता रहता है, तो क्यों न कुछ ऐसा किया जाए कि घर बैठे लोग कबाड़ बेच दें. कुछ दिन बाद उसकी मुलाकात अपने सीनियर से हुई. दोनों ने इस समस्या का समाधान निकाला. अनुराग और कवींद्र ने मिलकर न सिर्फ लोगों की कबाड़ की समस्या का समाधान निकाला, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि किसी काम को करने के लिए पैसा और पूरी प्लानिंग से ज्यादा उस काम के प्रति मेहनत और लगन की होना जरूरी है. 

पढ़ाई करने के लिए भी नहीं थे पैसे
अनुराग ने भोपाल में स्थित ओरिएंटल कॉलेज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. जहां उनके पास इंजीनियरिंग कॉलेज की फीस जमा करने तक के पैसे नहीं होते थे. पहले से ही उनके ऊपर लोन चल रहा था. हालांकि, कुछ समय बाद कॉलेज प्रबंधन ने उन्हें फीस में छूट दे दी थी. जैसे तैसे कर अपनी पढ़ाई पूरी कर अनुराग घर का खर्च चलाने के लिए नौकरी करने लगे. 

घरवालों से छुपाकर रखी बात
अनुराग और कवींद्र ने अपने काम का जिक्र दो साल तक अपने परिवार वालों से नहीं किया. दो साल तक घरों से आने वाली बुकिंग पर दोनों खुद ही कबाड़ उठाने जाते थे. शुरुआत में तो कई गलतियां हुईं, लेकिन दोनों ने गलतियों से सीखा और धीरे-धीरे कबाड़ इकट्ठा करने के काम को प्रोफेशनल तरीके से करने लगे. इसके बाद इन्हें लेकर लोगों का नजरिया बदलने लगा और उनका स्टार्टअप चल निकला. कबाड़ीवाला को पहला ऑर्डर उनके एक जूनियर ने दिया था. इसके साथ ही सलाह भी दी थी कि इसकी जगह कोई नौकरी कर लो.

खड़ी कर दी करोड़ों की कंपनी 
इसके बाद जब काम आगे बढ़ा तो फिर उन्होंने घर वालों को अपने काम और बिजनेस आइडिया के बारे में बताया. बच्चों की तरक्की और मेहनत देखकर परिवार के लोगों ने भी उनका पूरा सपोर्ट किया. आज अनुराग और कवींद्र दोनों न केवल भोपाल, बल्कि पूरे देश में मशहूर हो गए हैं. इनका सालाना टर्नओवर 10 करोड़ रुपये से ज्यादा है. इतना ही नहीं इनकी कंपनी ने सैंकड़ों लोगों के लिए  रोजगार के अवसर पैदा किए, जहां आज 300 से ज्यादा लोग काम कर रहे हैं. 

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