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अखबार खरीदने तक के नहीं थे पैसे, पर नहीं हारी हिम्मत और UPSC क्रैक कर बन गए IFS ऑफिसर

IFS P Balamurugan: पी बालामुरुगन के घर की आर्थिक स्थिति ऐसी थी कि उन्हें महज 9 साल की उम्र में अखबार बेचकर अपना घर चलाना पड़ रहा था. लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई-लिखाई में कभी को कमी नहीं की और अंत में यूपीएससी परीक्षा पास कर आईएफएस ऑफिसर बन गए.

अखबार खरीदने तक के नहीं थे पैसे, पर नहीं हारी हिम्मत और UPSC क्रैक कर बन गए IFS ऑफिसर
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Kunal Jha|Updated: Jul 11, 2024, 04:15 PM IST

IFS P Balamurugan UPSC Success Story: साल 2019 बैच के आईएफएस अधिकारी पी बालामुरुगन की संघर्ष भरी कहानी एक ब्लॉकबस्टर बायोपिक फिल्म के लिए बिल्कुल परफेक्ट है. आठ भाई-बहनों वाले बड़े परिवार में पले-बढ़े, अपने पिता द्वारा त्याग दिए गए और एक साधारण से फूस के घर में रहने के कारण, उन्हें भारी आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ा. हालांकि, इन कठिन चुनौतियों के बावजूद, बालामुरुगन ने निराशा के आगे झुकने से इनकार कर दिया. जहां, ज्यादातर लोग ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों से विचलित हो जाते हैं, वहीं अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बालामुरुगन दृढ़ रहे.

मां ने 8 बच्चों को पढ़ाने-लिखाने में नहीं छोड़ी कोई कसर 
दरअसल, आईएफएस पी बालामुरुगन चेन्नई के कीलकट्टलाई के रहने वाले हैं. वर्तमान में वह राजस्थान के वन विभाग में आईएफएस अधिकारी हैं. अपनी गरीबी के बावजूद, बालामुरुगन हमेशा एकेडमिक रूप से प्रतिभाशाली थे. हालांकि, उनकी मां केवल 10वीं कक्षा तक ही पढ़ी थीं, लेकिन उन्होंने अपने 8 बच्चों को पढ़ाने-लिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उनके पिता शराबी थे और उन्होंने 1994 में अपने परिवार को छोड़ दिया था.

पढ़ाई के लिए बेचना पढ़ा घर
पी बालामुरुगन आठ भाई-बहनों में छठी संतान थे, और उनके परिवार को काफी आर्थिक संघर्षों का सामना करना पड़ा. चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बावजूद, उनकी मां और मामा ने घर का खर्च चलाने के लिए कड़ी मेहनत की. अपने बेटे की शैक्षणिक प्रतिभा को पहचानते हुए, बालामुरुगन की मां ने हर चीज पर उनकी शिक्षा को प्राथमिकता दी. बालामुरुगन की मां ने चेन्नई के बाहरी इलाके में 4800 वर्ग फुट का घर खरीदने के लिए अपने गहने बेच दिए. पूरा परिवार दो कमरों के टूटे-फूटे मकान में रहता था. लेकिन, अपने बच्चों की शिक्षा जारी रखने के लिए, उनकी मां ने 1997-98 में घर का 1200 वर्ग फुट हिस्सा 1.25 लाख रुपये में बेच दिया था.

9 साल की उम्र में बेचने लगे अखबार
बालमुरुगन को छोटी उम्र से ही पढ़ने में गहरी रुचि थी. महज 9 साल की उम्र में उन्होंने एक न्यूजपेपर विक्रेता से संपर्क किया और तमिल न्यूजपेपर पढ़ने की अनुमति मांगी. जब बालामुरुगन को 90 रुपये की मासिक मैम्बरशिप लेने की सलाह दी गई, तो उन्होंने अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में बताया. विक्रेता ने उनकी पहल से प्रभावित होकर उन्हें न्यूजपेपर घर-घर बांटने के लिए 300 रुपये की नौकरी की पेशकश की, जो उन्होंने स्वीकार कर ली.

पढ़ाई में स्कूल और टीचर्स ने दिया खूब साथ
बालामुरुगन की नौकरी और पढ़ाई के प्रति उनके समर्पण के बारे में जानने पर, उनके स्कूल के शिक्षक बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने अपना समर्थन देना शुरू कर दिया. उन्होंने उनकी शिक्षा में सहायता के लिए उदारतापूर्वक उन्हें मैगजीन और अन्य स्टडी मटेरियल दिए. इस चुनौतीपूर्ण अवधि के दौरान स्कूल ने ही उनकी सहायता करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. कभी-कभी, उनके स्कूल ने उनकी फीस माफ कर दी, जबकि अन्य अवसरों पर उन्होंने उनकी परिस्थितियों के प्रति अपनी समझ और सहानुभूति का प्रदर्शन करते हुए, उन्हें सामान्य से देर से ट्यूशन फीस जमा करने की अनुमति दी.

धीरे-धीरे बदली घर की आर्थिक स्थिति
अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, पी बालामुरुगन ने 2011 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में डिग्री प्राप्त की. कैंपस प्लेसमेंट में उन्हें अच्छे पैकेज के साथ टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) में नौकरी मिल गई. साल 2012 में सबसे बड़ी बहन की नौकरी लगने के बाद घर की आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगा. उनका परिवार 5 कमरों वाले पक्के मकान में शिफ्ट हो गया.

ऐसे मिली सिविल सेवा में जाने की प्रेरणा
साल 2013 में एक व्यक्ति ने उनके घर पर कब्जा करने की कोशिश की और बालामुरुगन एक महिला आईएएस अधिकारी की मदद से अपना घर बचाने में सफल रहे. इससे उन्हें सिविल सेवा में काम करने की इच्छा हुई और उन्होंने इसके लिए ऑस्ट्रेलिया से नौकरी की पेशकश भी ठुकरा दी. आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और साल 2018 में वे यूपीएससी आईएफएस परीक्षा में सफल हुए और फिर 2019 में ट्रेनिंग पूरी करने के बाद उन्हें राजस्थान में सरकारी नौकरी मिल गई.

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