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डिब्बा कंपनी के पड़े 'खाने के लाले', कभी था रसोई की शान, अब बिकने की कगार पर पहुंचा Tupperware, जानिए क्यों हुआ दिवालिया

Tupperware Bankrupt: अमेरिकी किचनवेयर कंपनी टप्परवेयर ब्रांड्स दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गई है.   कंपनी के लंच बॉक्स, पानी की बोतल और दूसरे आइटम बनाने वाली, 74 सालों से हर घर के किचन में जगह बनाने वाली डिब्बा कंपनी दिवालिया हो गई है.

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Bavita Jha |Updated: Sep 19, 2024, 05:58 PM IST
Tupperware Bankrupt: अमेरिकी किचनवेयर कंपनी टप्परवेयर ब्रांड्स दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गई है.   कंपनी के लंच बॉक्स, पानी की बोतल और दूसरे आइटम बनाने वाली, 74 सालों से हर घर के किचन में जगह बनाने वाली डिब्बा कंपनी दिवालिया हो गई है. टप्परवेयर ने अपनी कुछ सहायक कंपनियों के साथ अमेरिका में दिवालियापन के लिए आवेदन किया है. 70 करोड़ के कर्ज में डूबी कंपनी प्रतिस्पर्धा के दौड़ में ऐसी पिछड़ी की अब बंद होने के कगार पर पहुंच गई है.  

 कभी हर घर की पहचान, अब बंद होने के कगार पर  

टप्परवेयर के एयरटाइट प्लास्टिक कंटेनर लगभग हर घर में मिलते रहे हैं, लेकिन कंपनी समय के साथ खुद को बदल नहीं पाई. प्रतिस्पर्धा की दौड़ में टप्परवेयर इस कदम पिछड़ गई है कि कर्ज के दलदल में फंसती चली गई. कंपनी पर 70 करोड़ डॉलर यानी करीब 5860 करोड़ रुपये का कर्ज हो गया. कंपनी ने दिवालियापन संरक्षण के लिए चैप्टर 11 दायर किया है. कंपनुी ने अमेरिका स्थित अपनी आखिरी फैक्ट्री भी जून 2024 में बंद कर दी. ब्लूमबर्ग के मुताबिक टप्परवेयर की संपत्तियां 500 करोड़ डॉलर से लेकर 1 अरब डॉलर के बीच है. जबकि कंपनी पर देनदारियां 1 अरब डॉलर से लेकर 10 अरब डॉलर तक पहुंच गई है.  
 
क्यों दिवालिया हुआ किचन की शान कहलाने वाला टप्परवेयर  
 
एक वक्त था, जब अगर लोगों के घरों में या हाथों में टप्परवेयर के डिब्बे या लंचबॉक्स होते थे तो उसे शान समझा जाता था.  साल 1946 में लोगों के बीच अपने एयरटाइट डिब्बों की वजह से पॉपुलर बनी कंपनी धीरे-धीरे प्रतिस्पर्धा की रेस में पिछड़ती चली गई. कंपनी को बाजार में अपनी लोकप्रियता बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. कंपनी के सेल्स में भारी गिरावट आई है. कंपनी पर वित्तीय दवाब लगातार बढ़ता जा रहा था. इस दवाब को कोविड ने और बढ़ा दिया. कोविड के बाद प्लास्टिक रेजिन जैसे कई जरूरी कच्चे माल की लागत बढ़ती चली गई. माल ढुलाई की लागत, मजदूरी का खर्च आदि बढ़ने से लागत बढ़ता चला गया, लेकिन इसके मुकाबले सेल्स में बढ़ोतरी नहीं हुई. प्रोडक्ट्स का मार्जिन काफी कम होता चला गया. 
 
भारी भरकम कर्ज में डूबी कंपनी
 
एक तरफ लागत बढ़ रही थी और सेल्स गिरता जा रहा था. टप्परवेयर पर कर्ज को बोझ बढ़ता चला गया. कंपनी 5860 करोड़ रुपये के कर्ज के दलदल में फंस गई. कंपनी फंड नहीं जुटा पाई तो उसने दिवालियापन का सहारा लिया. दिवालियापन के लिए आवेदन देने से पहले मार्च में ही कंपनी ने चेताया था कि उसके लिए कंपनी को चलाना मुश्किल हो रहा है. कंपनी आगे चल सकेगी कि नहीं कहना मुश्किल है.  
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