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Azadi Ka Amrit Mahotsav: नोटबंदी, GST या 1991 का रिफॉर्म... जानिए- किसे जनता ने बताया सबसे बड़ा आर्थिक फैसला?

Azadi Ka Amrit Mahotsav: ज़ी न्यूज़ ने आजादी के 75साल पूरा होने पर एक खास सर्वे किया है. जी न्यूज ने ओपिनियन पोल के जरिये यह जानने की कोशिश की है कि आज़ादी के बाद से अब तक देश में सबसे बड़ा आर्थिक फैसला कौन सा है? आइये जानते हैं देश की जनता का जवाब.

75 सालों का सबसे बड़ा आर्थिक फैसला?
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Zee News Desk|Updated: Aug 15, 2022, 08:08 PM IST

Azadi Ka Amrit Mahotsav: आज हमारा देश आजादी का 75वां साल पूरा कर लिया है, और देश भर में 'आजादी का अमृत महोत्सव' मनाया जा रहा है. भारत माता के वीर सपूतों को समर्पित है ये आजादी का अमृत महोत्सव. 'हर घर तिरंगा' अभियान के तहत पूरा देश तिरंगामय हो गया है. ज़ी न्यूज़ ने इस ख़ास दिन को और भी खास बनाने के लिए एक विशेष सर्वे अभियान चलाया, जिसके तहत आम लोगों से आज़ादी के इन 75 वर्षों में हुए विकास और बदलावों को जानने की कोशिश की गई. आम जनता से यह सवाल किया गया कि इन 75 सालों का सबसे बड़ा आर्थिक फैसला कौन सा रहा? दरअसल, ज़ी न्यूज़ की टीम ने इसके लिए लोगों को सवाल और विकल्प दोनों दिया. आइये जानते हैं जनता का जवाब.

75 सालों का सबसे बड़ा आर्थिक फैसला? 

1 नोटबंदी                               39.00%
2 GST                                  23.00%
3 1991 का आर्थिक सुधार         23.00%
4 बैंकों का राष्ट्रीयकरण              9.00%
5 कह नहीं सकते                      5.00%
6 अन्य                                    1.00%

इस सवाल के जवाब में 39 फीसदी लोगों ने आज़ादी के बाद से 'नोटबंदी' को अब तक का सबसे बड़ा आर्थिक फैसला बताया है, जबकि जीएसटी को 23 फीसदी लोगों की सहमती मिली है. वहीं, 23 फीसदी लोगों का मानना है कि '1991 का आर्थिक सुधार' फैसला अब तक का सबसे बड़ा फैसला है. इसके अलावा, 9 फीसदी लोगों ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण को आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा फैसला बताया है. वहीं, 1 फीसदी लोगों ने अन्य फैसलों को अपनी सहमती दी है, जबकि 5 फीसदी लोगों ने कई फैसलों को बड़ा फैसला कहा है.

लोगों ने नोटबंदी को क्यों माना बड़ा फैसला?

पीएम नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी के 5 दिन बाद गोवा में अपने संबोधन में कहा था, ‘मैंने सिर्फ देश से 50 दिन मांगे हैं. 50 दिन. 30 दिसंबर तक मुझे मौका दीजिए मेरे भाइयों बहनों. अगर 30 दिसंबर के बाद कोई कमी रह जाए, कोई मेरी गलती निकल जाए, कोई मेरा गलत इरादा निकल जाए. आप जिस चौराहे पर मुझे खड़ा करेंगे, मैं खड़ा होकर देश जो सजा करेगा वो सजा भुगतने को तैयार हूं.’ गौरतलब है कि 8 नवंबर साल 2016 में रात आठ बजे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 500 रुपये और 1000 रुपये के नोट बंद करने का ऐलान किया था. इसके बाद देशभर में अफरातफरी का माहौल देखने को मिला, बैंकों के बाहर रुपये को बदलने और जमा करने के लिए कतारें लगने लगीं. आज आज़ादी के 75 साल बाद देशवासियों ने इस फैसले को सबसे बाद आर्थिक फैसला बताया है. आखिर इस फैसले ने देश में क्या बदलाव किए? आइये जानते हैं.

क्या काले धन पर लगाम!

सरकार ने नोटबंदी का ऐलान डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए तो किया ही था, साथ ही काले धन पर लगाम लगाने के लिए भी इस फैसले को लिया गया था. इस फैसले ने जमाखोरों को बैंकों में जमा करने के लिए मजबूर कर दिया. इससे जिनके पास बेहिसाब नकदी थी, वे इसे बैंक में जमा करने लगे, या फिर उसे सार्वजनिक करने लगे. तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार, 8 नवंबर से 30 दिसंबर 2016 की अवधि के दौरान, 5.03 लाख रुपये के औसत जमा आकार के साथ लगभग 1.09 करोड़ खातों में 2 लाख रुपये से 80 लाख रुपये के बीच जमा किए गए थे. वहीं, 1.48 लाख खातों में औसत जमा आकार 3.31 करोड़ रुपये के साथ 80 लाख से अधिक जमा किए गए थे. इस जानकारी के बाद भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में यह साफ कर दिया गया कि 500 और 1000 के लगभग पुराने नोट वापस बैंकों में जमा हो गए हैं.

कैशलेस लेनदेन में बढ़ोतरी 

केंद्र सरकार ने हमेशा से डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने की कोशिश की है. नोटबंदी बाद से यह आंकड़ा बढ़ता ही गया, यानी कैश की संख्या लगातार बढ़ी है. 2019-20 में यह 12% तक पहुंच गया. 2020-21 में यह आंकड़ा 14.5% के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के ताजा आंकड़ों के अनुसार, मूल्य के हिसाब से चार नवंबर, 2016 को 17.74 लाख करोड़ रुपये के नोट चलन में थे, जो 29 अक्टूबर, 2021 को बढ़कर 29.17 लाख करोड़ रुपये हो गए.  यूपीआई के आने के बाद डेबिट और क्रेडिट कार्ड से होने वाले लेनदेन में भी कमी आई है. लेकिन कुल मिलाकर डिजिटल पेमेंट का दायरा बढ़ा है और यह नोटबंदी के पहले के मुकाबले कहीं अधिक मजबूत हुआ है.

टैक्स फ्लो में हुई बढ़ोतरी 

नोट बंदी के कई फायदे अब तक देखने को मिल रहे हैं. नोट बंदी से  क्या नोटबंदी से टैक्स फ्लो बढ़ा? इसका आंकलन थोड़ी जटिल हो जाता है. क्योंकि टैक्स फ्लो भी लगातार बढ़ा है. इतना ही नहीं, इस वित्तीय वर्ष के लिए भी रिकॉर्ड तोड़ आयकर रिटर्न भरा गया है. हालांकि, टैक्स रिटर्न की तादाद बढ़ने की कई वजहें हैं, फिर भी नोटबंदी भी उनमें से एक है.

जीएसटी पर 23 फीसदी की सहमती 

इस सर्वे में 23 फीसदी लोगों ने जीएसटी के फैसले को आज़ादी के बाद से अब तक का देश का सबसे बड़ा आर्थिक फैसला बताया. जीएसटी को लागू करने के बाद केंद्र की मोदी सरकार 17वीं लोकसभा में प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई. आपको बता दें कि ऐसा पहली बार हुआ जब किसी देश में जीएसटी लागू करने वाली सरकार दुबारा सत्ता में आई है. आपको बता दें कि मोदी सरकार ने 1 जुलाई 2017 को देश में जीएसटी लागू किया था, तब 226 वस्तुएं-सेवाएं 28% टैक्स के दायरे में थीं. हालांकि अब इसमें कई बदलाव हो चुके हैं.

आर्थिक उदारीकरण भी बड़ा फैसला 

इस सर्वे के तहत 23 फीसदी लोगों ने 1991 के आर्थिक उदारीकरण के फैसले को सबसे बड़ा फैसला बताया है.  आपको बता दें कि  भारत के वित्त मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह ने साल 1991 में आर्थिक उदारीकरण (1991 reforms) की शुरुआत की. उस वक्त भारत दुनिया में मदद मांगने वाले प्रमुख देशों में से एक था, जबकि आज भारत दुनिया को मदद उपलब्ध कराने की स्थिति में पहुंच गया है. 

(Disclaimer: आज़ादी के 75 वर्ष पूरा होने पर ZEE NEWS और ZEE दर्पण ने यह ओपिनियन पोल किया है. इसमें पूरे देश से 5 हजार से ज्यादा लोगों ने राय दी है. इस सर्वे में CAPI और CAWI रिसर्च पद्धति का इस्तेमाल किया गया है. 75 वर्षों में सबसे बड़े चेहरों और सबसे बड़े मुद्दों पर जनता की क्या राय है? इस पोल में हर सवाल के जवाब के लिए 10 विकल्प दिए गए थे.  लेकिन हमने टॉप-6 विकल्प को ही चुना है. इसलिए इस पोल में जवाब का प्रतिशत 100 नहीं होगा. इस सर्वे से हम किसी भी तथ्य में बदलाव या किसी को प्रभावित नहीं करना चाहते हैं. हमारा मकसद लोगों की राय को व्यक्त करना है.)

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