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Meera Minicar: यह थी देश की पहली Mini Car, कीमत थी 12 हजार रुपये, 20km का देती थी माइलेज

India First Micro Car: आजादी के बाद भारत का कार बाजार पूरी तरह सूखा था. ऐसे समय में कई कंपनियों ने बाजार में अपनी कारें लॉन्च करने की कोशिश की. कुछ सफल रहीं तो कुछ असफल. ऐसी ही एक कंपनी थी मीरा ऑटोमोबाइल्स (Meera Automobile).

Meera Minicar: यह थी देश की पहली Mini Car, कीमत थी 12 हजार रुपये, 20km का देती थी माइलेज
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Updated: Nov 20, 2022, 12:34 PM IST

Meera Minicar History in India: चीन और यूएस के बाद भारतीय कार बाजार दुनिया में तीसरे पायदान पर है. यहां कई दिग्गज कंपनियों सालों से अपनी पकड़ बनाए हुए हैं, जबकि पिछले कुछ सालों में कई कंपनियों ने एंट्री भी की है. हालांकि आजादी के बाद भारत का कार बाजार पूरी तरह सूखा था. ऐसे समय में कई कंपनियों ने बाजार में अपनी कारें लॉन्च करने की कोशिश की. कुछ सफल रहीं तो कुछ असफल. ऐसी ही एक कंपनी थी मीरा ऑटोमोबाइल्स (Meera Automobile). इस कंपनी ने टाटा नैनो से सालों पहले ही एक मिनी कार बना डाली थी. कंपनी का सपना एक ऐसी सस्ती और छोटी कार बनाने का था, जिसे आम आदमी खरीद सके. गाड़ी को नाम दिया गया था मीरा मिनी कार (Meera Mini Car).

बात साल 1949 की है. उस समय के बिजनेसमैन शंकरराव कुलकर्णी ने इस गाड़ी को तैयार किया था. आम आदमी को ध्यान में रखते हुए गाड़ी की कीमत बस 12 हजार रुपये रखी गई थी. इसका पहला प्रोटोटाइप 1949 में तैयार हुआ, जिसे कुलकर्णी मुंबई के आसपास चलाते थे. अपने अलग लुक के कारण यह देखते ही लोगों के दिमाग में बैठ जाती थी. कार को RTO से रजिस्टर भी कराया गया और इसका नंबर था MHK 1906. 

यह एक टू-सीटर कार थी. कुलकर्णी ने एक-एक करके इसके 5 मॉडल तैयार कर लिए थे. आखिरी मॉडल 1970 में आया, जिसे MHE 192 रजिस्ट्रेशन नंबर मिला. शंकरराव के पोते हेमंत कुलकर्णी के अनुसार, मीरा में टाटा नैनो जैसी कई समानताएं थीं. दोनों ही गाड़ियां सिंगल वाइपर, रियर इंजन, समान माइलेज (पेट्रोल पर 20 kmpl) और 5-सीटर क्षमता के साथ आती थीं. 

इस वजह से नहीं हुई लॉन्च
यह कार कभी भी बाजार में नहीं आ सकी, जिसकी वजह थी ब्यूरोक्रेसी. जब शंकरराव ने केंद्र सरकार से इस गाड़ी के लिए फ्रैक्ट्री लगाने के लिए संपर्क किया तो सरकार का सपोर्ट नहीं मिल पाया. 1975 में उनके प्रस्तावों को खारिज कर दिया, क्योंकि उस समय सुजुकी की भारतीय बाजार में प्रवेश करने की योजना थी. शंकरराव उस समय तक कार पर लगभग 50 लाख रुपये खर्च कर चुके थे. ऐसे में उनके लिए खुद से रकम खर्च करके फैक्ट्री लगाना नामुमकिन था.

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