Car Cost Cutting Measures: जब भी कोई कार निर्माता कंपनी अपनी किसी कार को बाजार में लॉन्च करती है तो उसके सामने एक बड़ी चुनौती इस बात की रहती है कि कार की प्राइसिंग क्या रखी जाए. दरअसल, कार के भविष्य तय करने में कीमत अहम योगदान निभाती है. ऐसे में कई बार कार निर्माता कंपनियां कार बनाते समय कई तरह की कॉस्ट कटिंग करते हैं, जिससे वह कार की कीमत को कंट्रोल कर पाएं. चलिए, कार कंपनियों द्वारा कॉस्ट कटिंग करने से जुड़ी कुछ सामान्य बातें बताते हैं.
अलग-अलग कारों में एक जैसे पार्ट्स
आपने कई बार नोटिस किया होगा कि एक कंपनी की अलग-अलग कारों में कई पार्ट्स एक जैसे ही होते हैं. उदाहरण के तौर पर मारुति सुजुकी बलेनो और मारुति सुजुकी ब्रेजा को ले लीजिए. इन दोनों का इंटीरियर बहुत हद तक एक जैसा लगता है. इंटीरियर के कई पार्ट्स एक जैसे हैं. इसके अलावा, जो इंजन मारुति सुजुकी ब्रेजा में मिलता है, वही इंजन अर्टिगा और एक्सएल6 में भी मिलता है. ऐसा क्यों? कंपनी चाहे तो हर कार में हर पार्ट नया और अलग दे सकती है. लेकिन, ऐसा न करने के पीछे कारण है.
अगर कंपनियां अपनी हर कार के लिए सभी पार्ट्स को नए तरीके बनाएंगी तो उसका खर्चा बढ़ जाएगा. किसी भी प्रोडक्ट के लिए रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर काफी ज्यादा पैसा खर्च होता है, उसके बाद ही उसे मैन्युफैक्चर किया जाता है. कंपनियां एक जैसे पार्ट्स देकर रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर खर्च होने वाले पैसे को बचा लेती हैं, जिससे उन्हें कार की कीमत को कंट्रोल करने में मदद मिलती है.
कई अन्य छोटी-मोटी चीजें
इसके अलावा भी कंपनियां बहुत सारे छोटे-छोटे ऐसे काम करती हैं, जिनसे कॉस्ट कटिंग की जाती है. जैसे- कई कारों में आपने देखा होगा कि हेड रेस्ट एड्जस्टेबल नहीं होते बल्कि फिक्स्ड हेड रेस्ट दे दिए जाते हैं, यह भी कॉस्ट कटिंग का ही एक तरीका है. कई कारों में कुछ ऐसे फीचर्स को हटा दिया जाता है, जो शायद उस प्राइस रेंज (जिसमें वह कार फिट होती है) की कार में मिलने चाहिए.
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