Makar Sankranti Importance: मकर संक्रांति का पर्व यूं तो सूर्य के मकर राशि अर्थात अपने पुत्र की राशि में प्रवेश के लिए जाना ही जाता है. इस दिन के बाद से मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं, जो धनु राशि में सूर्य के प्रवास के चलते बंद रहते हैं. इस त्योहार को एक और खास बात के लिए भी जाना जाता है, वह है संकल्प.
पितामह का संकल्प
महाभारत काल के भीष्म पितामह का संकल्प तो सभी को याद है कि उन्होंने सूर्य के उत्तरायण होने के लिए 58 दिनों तक बाणों की शैय्या पर प्रतीक्षा की और जैसे ही सूर्य उत्तरायण में हुए, उन्होंने अपने देह का त्याग कर मोक्ष को प्राप्त किया. इसी तरह यह पर्व हमें संकल्प की याद दिलाता है. इस दिन से लोग नए संकल्प लेते हैं और फिर उन्हें पूरे वर्ष पालन करने के साथ ही अगले वर्ष होने वाले मकर संक्रांति के पर्व पर उद्यापन करते हैं. इन संकल्पों में लोग कोई एक सत्कर्म को ग्रहण करते हैं फिर उसका पूरे वर्ष पालन करते हैं. पूरे वर्ष अभ्यास करने का परिणाम होता है कि फिर वह कर्म जीवन का हिस्सा बन जाता है. इन सत्कर्मों में चिड़ियों को दाना चुगाना, प्रातःकाल जागने के बाद सूर्य देव को जल चढ़ाना, संध्या को देवस्थान में दीपक जलाना, नित्य योगासन प्राणायाम, नियमों का कठोरता के साथ पालन करना, जरूरतमंदों की सेवा करने के साथ ही बड़े-बुजुर्गों की आज्ञा का पालन करना आदि होता है. यह संकल्प हमें सभी प्रकार की बुराइयों का त्याग करने को भी प्रेरित करता है.
यशोदा का व्रत
पौराणिक कथा के अनुसार, माता यशोदा ने श्रीकृष्ण को पुत्र रूप में पाने के लिए व्रत रखा था. दरअसल त्रेता युग में श्री राम के वनवास से लौटने के बाद कैकेयी ने उनसे कहा कि अगले जन्म में तुम मेरे गर्भ से जन्म लेकर मुझे अपनी माता बनने का सौभाग्य देना. कैकेयी का आग्रह राम द्वारा स्वीकार करते ही माता कौशल्या दुखी हो गईं तो श्रीराम ने कहा कि माता आप दुखी न हों. मैं भले ही माता कैकेयी के गर्भ से जन्म लूं, लेकिन पुत्र आपका ही कहलाऊंगा. इसी कारण द्वापर में भगवान राम ने श्रीकृष्ण के रूप में देवकी के गर्भ से जन्म लिया, लेकिन लालन-पालन माता यशोदा ने किया और श्रीकृष्ण यशोदानंदन कहलाए.