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Agriculture News: रिटायरमेंट के बाद शुरू की ऑर्गेनिक फार्मिंग, सफेद खीरा उगाकर कमाए लाखों रुपये

Organic Farming News: कॉलेज से रिटायर होने के बाद एक प्रोफेसर ने खेती शुरू की. आज वे अपने दो एकड़ के खेत में ऑर्गेकिन खेती करते हैं और बटरनट स्क्वैश और सफेद खीरा जैसी अनोखी फसलें उगाते हैं. साथ ही वो खेती में टिकाऊपन बनाए रखने वाली नई-नई तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं. 

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Updated: Jun 07, 2024, 01:04 PM IST

Organic Farming: रिटायरमेंट का मतलब कई लोग आराम से जिंदगी बिताना समझते हैं. लेकिन 67 साल के रमेशन टी.के. के लिए ये एक नए चैप्टर की शुरुआत थी. एक कॉलेज में जूलॉजी और फिशरी साइंस पढ़ाने वाले रिटायर्ड प्रोफेसर रमेशन अब चॉक और ब्लैकबोर्ड को छोड़कर खेती कर करते हैं. उनका मकसद केरल में खेती में क्रांति लाना है.

रिटायरमेंट के बाद लगाया पूरा ध्यान 

आज रमेशन परवूर के वडकेक्करा और चेंदमंगलम पंचायत में अपने दो एकड़ के खेत में ऑर्गेकिन खेती करते हैं. वे बटरनट स्क्वैश जैसी फसलें उगाते हैं. साथ ही वो खेती में टिकाऊपन बनाए रखने वाली नई-नई तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं. रमेशन को हमेशा खेती का शौक रहा है, लेकिन साल 2012 में रिटायरमेंट के बाद उन्होंने इसमें पूरा ध्यान लगाना शुरू किया. शुरुआत में वो पारंपरिक तरीकों से खेती करते थे और स्थानीय बीजों का इस्तेमाल करते थे. लेकिन उनकी वैज्ञानिक पृष्ठभूमि ने उन्हें आगे बढ़ाया. उन्होंने खेती में नई तकनीकें अपनाईं, जैसे कि ड्रिप इरिगेशन (बूंद-बूंद सिंचाई) और मल्चिंग (मिट्टी को ढकना).

सफेद खीरे से बनाई अपनी पहचान 

अब वे पूरी तरह से ऑर्गेनिक खेती के तरीके अपनाते हैं. वो सिर्फ प्राकृतिक खाद, जैसे गोबर, मुर्गी की बीट, केंचुआ खाद आदि का ही इस्तेमाल करते हैं. रमेशन बताते हैं कि "मेरी खेती पूरी तरह जैविक है. मैं पूरी तरह से रसायनिक खाद और कीटनाशकों से बचता हूं." रमेशन की एक बड़ी उपलब्धि उनकी बटरनट स्क्वैश की खेती है. ये एक ऐसी फसल है, जो केरल में आमतौर पर नहीं उगाई जाती. लेकिन, असली पहचान उन्हें स्थानीय सफेद खीरे उगाने से मिली. ये खीरे सालाना 100 क्विंटल तक उपज देते हैं. कोविड के मुश्किल समय में इन्हीं खीरों से उन्होंने एक नया काम शुरू किया.

लॉकडाउन के दौरान बनाया ग्रुप 

लॉकडाउन के दौरान खुद को व्यस्त रखने के लिए रमेशन ने अपने 10 रिटायर्ड साथियों के साथ मिलकर "स्नो व्हाइट एग्रीकल्चर ग्रुप" बनाया. इस पहल से उन्हें अपने समय को सही से इस्तेमाल करने का मौका मिला और साथ ही मुश्किल समय में वो स्थानीय खाने की आपूर्ति में भी मदद कर सके. रमेशन की खेती की सफलता सिर्फ उनकी मेहनत का नतीजा नहीं है, बल्कि इसमें समुदाय का भी साथ है. स्नो व्हाइट एग्रीकल्चर ग्रुप कुडुम्बश्री की महिलाओं के साथ मिलकर काम करता है. ये महिलाएं अतिरिक्त आमदनी के लिए खेत में मदद करती हैं. रमेशन बताते हैं कि, "कुडुम्बश्री की महिलाएं खेत में मदद करती हैं और साथ ही हमारे उत्पादों को स्थानीय तौर पर बेचने में भी मदद करती हैं."

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